बर्लिन उत्तर-बर्लिन की स्वतंत्रता की दो अवधारणाएँ – Berlin’s two concepts of independence
स्वतंत्रता की संकल्पना की व्याख्या करने के लिए इजाया बर्लिन ने स्वतंत्रता को दो भागों में बाँटा। 1969 में प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध किताब “टू कंसेप्ट्स ऑफ लिबर्टी” में उन्होंने स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता और सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया।
नकारात्मक स्वतंत्रता-
नकारात्मक स्वतंत्रता में ‘नकारात्मक’ शब्द इस बात का संकेत करता है कि यह व्यक्ति की आजादी को सीमित करने वाले हर काम को नकारता है। आमतौर पर इसे हस्तक्षेप या दखलंदाजी से आजादी के रूप में समझा जाता है। नकारात्मक स्वतंत्रता का दायरा इस सवाल के जवाब से तय होता है कि ‘मैं किस क्षेत्र का मालिक हूँ।’
बर्लिन आगे कहते हैं कि ‘यदि तो मैं उस मुझे वह काम करने रोकते हैं, जो मैं उनके द्वारा न रोके जाने पर कर सकता था, सीमा तक गैर-आजाद हूँ। यदि इस क्षेत्र में दूसरे आदमियों का एक न्यूनतम सीमा से ज्यादा दखल हो गया है, तो यह कहा जा सकता है कि मेरा दमन हो रहा है या यह भी कहा जा सकता है कि मुझे दास बना लिया गया है।
मसलन, मान लीजिए कि एक व्यक्ति चुनाव लड़ना चाहता था, लेकिन दूसरे लोगों ने बल-प्रयोग के द्वारा उसे चुनाव लड़ने से रोक दिया। इसका मतलब है कि इस संभावित उम्मीदवार की स्वतंत्रता का दमन हुआ है। बहरहाल, बर्लिन यह स्पष्ट करते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी लक्ष्य को हासिल करने में असमर्थ है, तो इसका अर्थ यह है कि वह आजाद नहीं है। उन्होंने लिखा है कि केवल दूसरे लोगों द्वारा थोपी जाने वाली पाबंदियाँ ही मेरी आजादी को प्रभावित करती हैं।’
नकारात्मक स्वतंत्रता दो मुख्य पूर्वमान्यताओं पर आधारित है
(अ) हर व्यक्ति सबसे बेहतर तरीके से अपना हित जानता है। यह सूत्र इस मान्यता पर आधारित है कि व्यक्ति तर्क कर सकते हैं, इसीलिए उनमें विचार-विमर्श करने और जानकारियों के आधार पर सही विकल्प को चुनने की क्षमता होती है।
(ब) राज्य की भूमिका बहुत ही सीमित है। दरअसल, यह पिछले सूत्र का ही विस्तार है। चूंकि व्यक्ति को तार्किक कर्ता माना गया है, इसलिए राज्य व्यक्ति के लक्ष्यों और उद्देश्यों के बारे में फैसला नहीं कर सकता है।
बर्लिन (1969) के अनुसार,
आजादी के रूप में नकारात्मक स्वतंत्रता खुद काम करना नहीं है, बल्कि यह काम करने का अवसर है। ‘आजादी की अवसर अवधारणा’ (Opportunity concept of freedom) के रूप में यह आजादी के अवसर की मौजूदगी पर जोर देता है। इसके लिए यह बात महत्त्वपूर्ण नहीं है कि व्यक्ति इस अवसर का प्रयोग करें। स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा की मुख्य समस्या यह है कि यह किसी काम (या गतिविधि) की गुणवत्ता के प्रति उदासीन है। मसलन, यह अपनी पसंद की नौकरी करने की स्वतंत्रता और भुखमरी की स्वतंत्रता में कोई अंतर नहीं करता है। दरअसल, नकारात्मक स्वतंत्रता की संकल्पना में गरीबी को हमेशा आजादी के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जाता है।
फ्रेड्रिक हेयक और रॉबर्ट नॉजिक ऐसे दो विचारक हैं, जिनके लेखन में नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा अभिव्यक्त हुई है। हेयक स्वतंत्रता को एक नकारात्मक अवधारणा के रूप में देखते हैं। इसका कारण यह है कि यह ‘एक विशिष्ट बाधा के न होने का वर्णन करता है। यह विशिष्ट बाधा है-दूसरे आदमी द्वारा किया जाने वाला बल-प्रयोग’। ऐसा अवसर सामने आने पर जब हम कोई काम कर लेते हैं तो यह सकारात्मक बन जाता है। हेयक द्वारा दी गई व्यक्तिगत आजादी की परिभाषा इसके अनुपूरक के रूप में हैं। इसके अनुसार, व्यक्तिगत आजादी ‘ऐसी स्थिति है जिसमें एक आदमी किसी दूसरे आदमी की मनमानी इच्छा को मानने के लिए मजबूर नहीं होता है।’ हेयक नकारात्मक स्वतंत्रता को आजादी की संपूर्ण अवधारणा नहीं मानते हैं। इसका कारण यह है कि वे मानते हैं कि स्वतंत्रता, न्याय और कल्याण के बीच एक निश्चित जुड़ाव होना ही चाहिए। उन्होंने इसकी व्याख्या करते हुए यह लिखा है कि ‘कानून के अंतर्गत आजादी की संकल्पना इस मान्यता पर आधारित है कि हमें कानूनों को सामान्य अमूर्त नियत मानते हुए इनका पालन करना चाहिए। ऐसा करते हुए हमें यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि इनका हम पर क्या प्रभाव पड़ता है। ऐसा करते वक्त हम किसी खास आदमी की इच्छा के अनुसार काम नहीं करते हैं, इसलिए हम आजाद होते हैं।’
नॉजिक यह मानते हैं कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सबसे प्रमुख खतरा इस बात से है कि उस व्यक्ति पर उसकी सहमति के बिना ही दायित्व थोप दिए जाएँ। इस तरह के दायित्वों की संख्या – कम-से-कम रखकर लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए। ऐसा करने पर लोगों के बीच स्वैच्छिक समझौतों और आपसी लेन-देन की ज्यादा संभावना होगी। स्पष्ट तौर पर, नॉजिक यह मानते हैं कि स्वतंत्रता के लिए अधिकारों की एक न्यूनतम रूपरेखा की जरूरत है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति पर किसी भी तरह का दायित्व थोपने से पहले उसकी सहमति लेना एक अनिवार्य शर्त है।
सकारात्मक स्वतंत्रता-
सकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा में यह बुनियादी विचार शामिल है कि हर व्यक्ति के आत्म के दो भाग होते हैं-उच्चतर-आत्म और निम्नतर-आत्म। व्यक्ति का उच्चतर-आत्म उसका तार्किक आत्म होता है और व्यक्ति के निम्नतर-आत्म पर इसका प्रभुत्व होना चाहिए। ऐसा होने पर ही कोई व्यक्ति सकारात्मक स्वतंत्रता के अर्थ में मुक्त या स्वतंत्र हो सकता है।
बर्लिन (1969) ने इस संबंध में लिखा है कि ‘स्वतंत्रता शब्द का सकारात्मक अर्थ किसी व्यक्ति की खुद अपना मालिक होने की इच्छा से उत्पन्न होता है….मैं किसी दूसरे आदमी की मर्जी के अनुसार काम नहीं करना चाहता हूँ, मेरी यह इच्छा है कि मैं सिर्फ अपने लिए काम करूँ…….. सबसे बढ़कर मेरी यह इच्छा है कि मैं एक विचारशील, इच्छा रखने वाले, सक्रिय व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान के प्रति जागरूक रहूँ…. मेरी यह इच्छा है कि मैं अपने द्वारा चुने गए विकल्पों के लिए जवाबदेह रहूँ।
साथ ही, मेरे पास यह क्षमता हो कि मैं अपने द्वारा चुने गए विकल्पों की व्याख्या अपने विचारों और लक्ष्यों के आधार पर कर पाऊँ।’ सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ सिर्फ यह नहीं है कि किसी तरह की दखलंदाजी न हो। दरअसल, इसमें यह बात भी शामिल है कि व्यक्ति अपना मालिक हो और उसके उच्चतर-आत्म का उसके निम्नतर-आत्म पर प्रभुत्व हो।
सकारात्मक स्वतंत्रता काम करने की आजादी है। इसे ‘आजादी की प्रयोग अवधारणा’ (Exercise concept of freedom) भी कहा जा सकता है। सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि व्यक्ति इन अवसरों का प्रयोग करे और उनका फायदा उठाए, जबकि नकारात्मक स्वतंत्रता में सिर्फ अवसरों का मौजूद होना ही काफी है।
नकारात्मक स्वतंत्रता व्यक्ति को बाहर से किसी तरह का दिशा-निर्देश मिलने के विचार को खारिज करती है। दूसरी ओर, सकारात्मक स्वतंत्रता इस विचार को एक विकल्प के रूप में स्वीकार करती है कि व्यक्ति को कानून या अभिजन (elite) के द्वारा दिशा-निर्देश मिलना चाहिए। यदि कानून व्यक्ति को तार्किक लक्ष्यों की ओर बढ़ने का दिशा-निर्देश देता है, तो यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का दमन करने के बजाय उसे स्वतंत्र (या मुक्त) करता है।
रूसो सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नैतिक कानूनों का पालन करके ही सच्ची स्वतंत्रता हासिल की जा सकती है। वे यह भी मानते हैं कि नैतिक कानून विवेकशील लोगों की इच्छा और अभिव्यक्ति होते हैं। नव-मार्क्सवादी दृष्टिकोण से हरबर्ट मयूंजे (Herbert Marcuse) ने भी स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा का समर्थन किया है। उनका यह मानना है कि श्रमिक वर्ग अपना सच्चा लाभ देखने में असमर्थ होता है। इसलिए, इस बात की जरूरत है कि क्रांतिकारी अभिजन उसे मुक्ति या लिबरेशन की ओर आगे बढ़ने के लिए दिशा-निर्देश दें।
सकारात्मक स्वतंत्रता में यह विचार भी शामिल है कि सामान्य जीवन पर सामूहिक नियंत्रण होना चाहिए। मसलन, पर्यावरण को प्रदूषण-मुक्त रखने के लिए सामूहिक कोशिश की जरूरत होती है और इससे सभी लोगों को फायदा होता है। यह मुमकिन है कि इसके लिए कुछ हद तक बल-प्रयोग करना पड़े, लेकिन अमूमन इसमें सबका हित शामिल होने के कारण इसे स्वीकार कर लिया जाता है। बर्लिन सहित बहुत से उदारवादी विचारकों ने यह विचार किया है कि स्वतंत्रता की सकारात्मक भी जुड़ा हुआ है कि शासक निरंकुश बन सकते हैं।
एक ऐसे स्थाई अवधारणा के साथ यह खतरा अल्पसंख्यक समूह पर विचार कीजिए, जिसे हमेशा दमन का शिकार होना पड़ता है। इस अल्पसंख्यक समूह के सदस्य उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी करते हैं जिसकी प्रमुख विशेषता बहुमत का शासन है। ऐसे में, यह कहा जा सकता है कि एक लोकतांत्रिक शासन वाले देश के नागरिक होने के कारण ये स्वतंत्र हैं। लेकिन इसके बावजूद यह समूह अल्पसंख्या में होने के कारण दमन का शिकार हो सकता है और ऐसी स्थिति में इसे स्वतंत्र नहीं माना जा सकता है।
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