राजनीतिक सिद्धांत क्या है ? इसकी प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए। What is political theory and discuss its relevance.
राजनीतिक सिद्धांत : प्रकृति एवं प्रासंगिकता-राजनीतिक सिद्धांत राज्य से संबंधित ज्ञान है जिसमें ‘राजनीतिक’ का अर्थ है-‘सार्वजनिक हित के विषय’ तथा ‘सिद्धांत’ का अर्थ है’क्रमबद्ध ज्ञान’। डेविड हैल्ड के अनुसार, राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन से संबंधित धारणाओं और सामान्य नियमों का वह समूह है जिसमें सरकार, राज्य और समाज की प्रकृति, उद्देश्य तथा प्रमुख विशेषताएँ एवं व्यक्ति की राजनीतिक क्षमताओं के बारे में विचार, परिकल्पनाएं और विवरण निहित होते हैं।
हैकर के अनुसार, ‘
राजनीतिक सिद्धांत जहाँ एक तरफ अच्छे समाज और अच्छे राज्य से संबंधित नियमों की निष्पक्ष खोज हैं, वहाँ दूसरी तरफ यह राजनीतिक और सामाजिक वास्तविकता का निष्पक्ष ज्ञान है’। एक अन्य लेखक जॉर्ज केटलिन के अनुसार, राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक विज्ञान और राजनीतिक दर्शनशास्त्र दोनों का मिश्रण है।
जहाँ राजनीति विज्ञान संपूर्ण सामाजिक जीवन के नियंत्रण के विभिन्न स्वरूपों की प्रक्रिया की तरफ ध्यान दिलाता है, अर्थात् इसका संबंध साधनों से है, वहाँ राजनीतिक दर्शन का संबंध उन साध्यों तथा मूल्यों से है जब व्यक्ति इस तरह के प्रश्नों पर विचार करता है-राष्ट्रीय हित क्या होता है? या एक अच्छा समाज क्या होता है?
इसी तरह कोकर के अनुसार,
‘राजनीतिक सिद्धांतों के संबंध राजनीतिक सरकार, इसके स्वरूपों तथा गतिविधियों के उस अध्ययन से है जो केवल उन तथ्यों के आधार पर ही नहीं किया जाता जिनकी व्याख्या, तुलना तथा परख का संबंध तत्काल तथा अस्थायी प्रभावों से है, बल्कि उन तथ्यों तथा मूल्यांकन के आधार पर भी किया जाता है जो व्यक्ति की चिरस्थायी आवश्यकताओं, इच्छाओं तथा विचारों से संबंधित होते हैं।
राजनीतिक सिद्धांतों का संबंध दार्शनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से राज्य तथा राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन है। इस संदर्भ में ‘राजनीतिक सिद्धांत’ के- अतिस्क्ति कुछ अन्य शब्दावलियों का प्रयोग भी किया जाता है, जैसे-राजनीतिक चिंतन, राजनीतिक दर्शन, राजनीति शास्त्र आदि।
यद्यपि इनका संबंध भी राज्य, राजनीति और राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन से है, फिर भी राजनीतिक सिद्धांत इनसे संबंधित होते हुए भी इनसे भिन्न हैं। –
राजनीतिक सिद्धांत किसी एक व्यक्ति का क्रमबद्ध चिंतन होता है जो विशिष्ट रूप से राज्य अथवा राजनीतिक समस्याओं के बारे में चर्चा करता है। यह चिंतन कुछ परिकल्पनाओं (Hypothesis) पर आधारित होता है जो तर्कसंगत और युक्तियुक्त हो भी सकते हैं और नहीं भी, तथा जिनकी भरपूर आलोचना भी की जा सकती है। राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक वास्तविकता की व्याख्या करने का एक मॉडल प्रदान करता है।
राजनीतिक सिद्धांतों में दर्शन और विज्ञान का सम्मिश्रण होता है।
विज्ञान का संबंध वास्तविक राजनीतिक व्यवहार, व्यावहारिक प्रमाणों के आधार, व्यक्ति और राजनीतिक संस्थाओं के बारे में सामान्य निष्कर्ष तथा समाज में शक्ति की भूमिका आदि विषयों की व्याख्या और उनका वर्णन करने से है। इसके विपरीत, राजनीतिक सिद्धांतों का संबंध केवल व्यावहारिक पक्ष से ही नहीं, बल्कि उन उद्देश्यों का निर्धारण करने से भी है जो राज्य, सरकार तथा समाज के राजनीतिक जीवन में व्यक्ति के उचित व्यवहार तथा शक्ति के न्यायोचित प्रयोग के लिए अपनाने चाहिए।
संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांत न तो शुद्ध चिंतन है और न ही दर्शन अथवा विज्ञान। अपने अध्ययन को परिष्कृत करने के लिए ये इन सबसे सहायता लेते हैं, परंतु फिर भी ये सबसे भिन्न हैं। समकालीन राजनीतिक सिद्धांत दर्शन और विज्ञान में समन्वय करने का प्रयत्न कर रहे हैं।
समकालीन राजनीतिक सिद्धांत (Contemporary Political Theory)
1970 के बाद अमरीका, यूरोप तथा अन्य देशों में राजनीतिक चिंतकों ने नैतिक मूल्यों पर आधारित राजनीतिक सिद्धांतों में दोबारा से रुचि लेनी आरंभ की है। इस पुनर्जागरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण जहाँ नैतिक मूल्यों में उभरता हुआ संघर्ष था, वहाँ दूसरी तरफ सामाजिक विज्ञानों तथा साहित्य में में परिवर्तन थे। इसके अतिरिक्त द्वितीय विश्व युद्ध के सायों की समाप्ति, यूरोप के पुनरुत्थान तथा मार्क्सवाद और समाजवाद की विचारधारा में संकट ने राजनीतिक विचारधाराओं में अनिश्चितता-सी ला दी। चाहे वह उदारवाद था या प्रजातंत्र, मार्क्सवाद था या समाजवाद, उभरते हुए सामाजिक आंदोलनों ने सबको चुनौती दी-वे आंदोलन जो राजनीतिक सिद्धांतों के विषय क्षेत्र को पुनः परिभाषित करना चाहते थे।
व्यवहारवाद के प्रभुत्व के युग में राजनीतिक सिद्धांतों को राजनीति विज्ञान ने अभिभूत किया हुआ था। सिद्धांतों में ज्ञान और खोज को न्यायसंगत स्थान नहीं दिया गया। यद्यपि व्यवहारवाद की धारणा राजनीतिक सिद्धांतों पर अधिक देर तक हावी नहीं रही, तथापि राजनीतिक और सामाजिक विज्ञानों के विकास में यह ‘विज्ञानवाद’ (Scientism) के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ गई। >
प्रासंगिकता (Relevance)
राजनीतिक सिद्धांतों की प्रासंगिकता को इनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों और इनमें निहित उद्देश्यों के आधार पर समझा जा सकता है। राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक मूल्यों की वह व्यवस्था है जो कोई समाज अपनी राजनीतिक वास्तविकता को समझने और आवश्यकता पड़े तो इसमें परिवर्तन करने के लिए अपनाता है।
यह अच्छे जीवन की प्रकृति, इसे प्राप्त करने के लिए संभव संस्थाएँ, राज्य के उद्देश्य, इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम राज्य प्रबंध जैसे विषयों का उच्च स्तरीय अध्ययन है। राजनीतिक सिद्धांतों की प्रासंगिकता इस बात में है कि ये ऐसे नैतिक मानदंड प्रदान करते हैं जिनसे राज्य की नैतिक योग्यता की जाँच की जा सके। आवश्यकता पड़ने पर ये वैकल्पिक राजनीतिक प्रबंध और व्यवहार का ढाँचा भी प्रदान करते हैं।
समग्र रूप में, राजनीतिक सिद्धांत
(i) राजनीतिक घटनाओं की व्याख्या करते हैं,
(ii) राजनीतिक व्याख्या के दार्शनिक और वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं,
(iii) राजनीतिक उद्देश्यों और कार्यों का चयन करने में सहायता करते हैं, तथा
(iv) राजनीतिक व्यवस्था का नैतिक आधार प्रदान करते हैं। जैसा ऊपर स्पष्ट किया गया, मानव समाज की मौलिक समस्या सामाजिक इकट्ठा रहना है।
इस संदर्भ में राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है जो समाज के सामूहिक कार्यकलापों को प्रबंधित करती है। सिद्धांतों की प्रासंगिकता उन दृष्टिकोणों और पद्धतियों की खोज करना है जो राज्य और समाज की प्रकृति, . सरकार का सर्वश्रेष्ठ रूप, व्यक्ति और राज्य में संबंध तथा स्वतंत्रता, समानता, संपत्ति, न्याय आदि की धारणाओं का विकास कर सकें।
इन अवधारणाओं का विकास उतना ही आवश्यक है जितना समाज के लिए शांति, व्यवस्था, सामंजस्य, स्थायित्व और एकता। वास्तव में सामाजिक स्तर पर शांति और व्यवस्था बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि हम स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसी धारणाओं की व्याख्या और इनका कार्यान्वयन कैसे करते हैं।
2. समकालीन समाज कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जैसे-गरीबी, जनसंख्या, भ्रष्टाचार, जातीय तनाव, प्रदूषण, व्यक्ति-समाज और राज्य में विवाद आदि। राजनीतिक सिद्धांतों का महत्त्वपूर्ण कार्य इन समस्याओं का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण करके राजनेताओं को वैकल्पिक साधन प्रदान करना होता है। डेविड हैल्ड के अनुसार, राजनीतिक सिद्धांतों का महत्त्व इस बात से प्रकट होता है कि एक क्रमबद्ध अध्ययन के अभाव में राजनीति उन स्वार्थी और अनभिज्ञ राजनीतिक नेताओं के हाथ का खिलौना मात्र बनकर रह जाएगी जो इसे शक्ति प्राप्त करने के एक यंत्र के अतिरिक्त कुछ नहीं समझते।
संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांतों की प्रासंगिकता को निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता है
1. ये राज्य और सरकार की प्रकृति तथा उद्देश्यों का क्रमबद्ध ज्ञान उपलब्ध करवाते हैं।
2. ये सामाजिक और राजनैतिक वास्तविकता तथा किसी भी समाज के आदर्शों एवं उद्देश्यों में संबंध स्थापित करने में सहायता करते हैं।
3. ये व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर अधिकार, कर्त्तव्य, स्वतंत्रता, समानता, संपत्ति, न्याय आदि के बारे में सचेत करवाते हैं। > >
4. ये सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को समझने तथा उससे संबंधित समस्याओं, जैसे-गरीबी, हिंसा, भ्रष्टाचार, जातिवाद आदि के साथ जूझने के लिए सैद्धांतिक विकल्प प्रदान करते हैं।
5. सिद्धांतों का कार्य केवल स्थिति की व्याख्या करना नहीं होता। ये सामाजिक सुधार अथवा क्रांतिकारी तरीकों से परिवर्तन संबंधी सिद्धांत भी प्रस्तुत करते हैं।
जब किसी समाज के राजनीतिक सिद्धांत अपनी भूमिका सही तरीके से निभाते हैं तो वे मानवीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाते हैं। जनसाधारण को सही सिद्धांतों से परिचित करवाने का अर्थ केवल उन्हें अपने उद्देश्य और साधनों को सही तरीके से चुनने में सहायता करना ही नहीं है, बल्कि उन रास्तों से भी बचाना है जो उन्हें निराशा की तरफ ले जा सकते हैं।
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