इस पर प्रश्न कर्ता को काफी हैरानी हुई, उसने आश्चर्य से कहा, ऐसा कैसे हो सकता है। मौसम क्या तुम्हारा गुलाम है? “
इस पर गडरिया मुस्कुराया और बड़ी सहजता से उत्तर दिया- “ बंधु ! मौसम हर हाल में वैसा ही होगा, जैसा ईश्वर को मंजूर है, और जिस बात से ईश्वर प्रसन्न है, उसी से मैं प्रसन्न रहता हूं। इसीलिए मौसम भी मेरे ही अनुकूल रहेगा। “
गडरिया की बात सुनकर वह प्रश्नकर्ता आश्चर्य से उसका चेहरा देखता रह गया।
जीवन का सुख प्राकृतिक तापमान पर निर्भर नहीं होता। बशर्ते कि हम ऐसा संकल्प कर लें, आत्मिक आलोक कभी भौतिक प्रकाश पर निर्भर नहीं होता, वरन् बाहरी रोशनी से ज्यादा जगमग आत्मिक आलोक होता है। यह एक ऐसा सत्य है, जिसे जान लेने पर हमारे जीवन में प्रगति के द्वार स्वतः खुल जाते हैं।
इन सभी की बातो से ये बात तो साबित होती है को Power of Positive Thoughts या सकारात्मक विचारो की शक्ति क्या है |
सफलता का रहस्य जाने व्यवहार कुशल बनें- Power of Positive Thoughts
यदि आप सफलता का रहस्य या सच्चे सुख की अनुभूति प्राप्त करना चाहते हैं, तो पहले आपको अपने व्यवहार को कोमल बनाने का अभ्यास करना होगा।
दूसरे लोग आपके बारे में कुछ भी क्यों ना कहे, आपके साथ कैसा भी व्यवहार क्यों ना करें, आप कभी उनसे दुर्व्यवहार ना कीजिए। घृणा का उत्तर घृणा से ना दीजिए। यदि कोई व्यक्ति आप से नफरत करते रहता है, तो स्वभाविक है, कि जाने या अनजाने आपके व्यवहार में कहीं कोई भूल रह गई हो, या कहीं कोई गलतफहमी हो गई हो, जिसे थोड़े से शिष्ट व्यवहार से या व्यवहारिक तर्क से दूर करें।
उस गलतफहमी को मिटाएं। देखे कि वह आपको गलत क्यों समझ रहा है, घृणा दुश्मनी को जन्म देती है, यह तुच्छ है । हीन तथा अंधी है, जबकि प्रेम महान कांति मान, दूरदृष्टि और सुख कारक माना गया है। सब प्रकार की घृणा का त्याग कीजिए। मानव मात्र में प्रेम की पवित्र वेदी पर इसका बलिदान कीजिए। अपने किसी प्रकार के कष्ट का विचार छोड़िए। अब से इस बात का निरंतर ध्यान रखिए, कि आप किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाएंगे, ना किसी का जी दुखाएंगे।
अपने मन के सभी कपाट खोलिए, और उनमें से मधुर सुधा रस बहने दीजिए। सब के लिए सुरक्षा और शांति के पवित्र भावना रखिए। भले ही वह आपका शत्रु ही क्यों ना हो, चाहे आपकी बुराई ही क्यों ना करता हो, आप से ईर्ष्या ही क्यों नहीं रखता हो। यदि आप ऐसा परिवर्तन अपने भीतर ले आएंगे, तो कोई कारण नहीं कि आप उन्नति के मार्ग पर आगे ना बढ़े।
Secret of Success- दुर्गुणों को त्यागें
उन्नति की कामना रखने वालों को झूठे घमंड तथा अभिमान जैसी गलत भावनाओं को तिलांजलि दे देनी चाहिए। या मस्तिष्क को निरस्त कर देने वाले भद्दे विचार हैं। अत इन्हें त्यागना ही श्रेयस्कर है। जो व्यक्ति एक एक करके धीरे-धीरे इन्हें त्यागने में जितना सफल होता है, उतना ही वह अपने दोषों, दुखो, कष्टों एवं संकटों से ऊपर उठता जाता है, और इस प्रकार वह पूर्ण और परम आनंद का उपभोग करता है।
मानसिक विकारों को तिलांजलि दें
आपको जिन मानसिक विकारों को त्यागने की सलाह दी गई है, वह पवित्र एवं नम्र हृदय की वेदी पर ही संभव है। जब तक व्यक्ति अपने दोषों को पहचान कर उनका त्याग नहीं करता। तब तक उसके लिए उन्नति करना असंभव है।
स्टॉकलैंड में एक जिल्दसाज था । जिसका नाम आवेगो था। वह किताब पर जिल्द चढ़ा रहा था, कि जिल्द पर छापा चढ़ाते समय एक रद्दी कागज उसके हाथ लगा, जिसे वह पढ़ने लगा, उस कागज पर लिखे शब्द थे-
“ चलते चलो जनाब बढ़ते चलो! जो कठिनाइयां तुम्हारे सामने आएंगी, वे क्रमशः तुम्हारी प्रगति के साथ ही साथ सुलझती जाएंगी। बढ़ते चलो उजाला हो जाएगा, और तुम्हारे मार्ग में नित बढ़ने वाली स्वच्छता के साथ चमक-दमक आती जाएगी।
वह रद्दी कागज उस पत्र की प्रतिलिपि थी, जो अलेम्बर्ट ने अपने एक युवक मित्र को लिखा था। किंतु अरेगो नामक उस बाइन्डर ने उसे ही अपना मार्गदर्शक बना लिया। इसी पर चलते हुए वह अपने युग का नक्षत्रवेत्ता बन गया। उसका कहना था, कि प्रगति का यह परामर्श ही मेरा सबसे महान गुरु बन गया।
इस प्रकार हमें ज्ञात होता है, कि किस प्रकार कभी कभी साधारण सी बात भी, मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ले आती है। कितना बड़ा परिवर्तन हो जाता है, किसी छोटी सी बात से।
इससे सिद्ध होता है, कि संकल्प और अवसर को पहचान कर मनुष्य क्या नहीं कर सकता। संसार के अधिकांश महापुरुषों की सफलता का यही रहस्य है।
संकल्पशक्तिः लक्ष्य प्राप्ति में सहायक – Resolution: Assistant in Achieving Goals
रूजवेल्ट एक बार जो संकल्प कर लेता था, उसे पूरा करके ही रहता था। संकल्प और अवसर का उपयोग बड़े ही महत्व के कदम हैं।
एडमंड वर्क मानता था, कि हमारा प्रतिद्वंदी ही हमारा वास्तविक सहायक है, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों के विरुद्ध हमारा जो संघर्ष होता है, वह हमें हमारे उद्देश्य से परिचित कराता है, वह हमें विवश करता है, कि हम अपने धेय्य पर प्रत्येक कोण से चिंतन करें, उसकी सहायता से हम केवल ऊपरी धरातल को ही नहीं बल्कि गहराई को भी छुपाने के योग्य हो जाएंगे।
कूपर इंस्टीट्यूट के संस्थापक ने एक शिलान्यास के अवसर पर शिला पर एक शब्द अंकित करवाए- ` इस संस्था के निर्माण से मैं इस लक्ष्य की पूर्ति चाहता हूं, कि हमारे युवकों के सामने सारे वैज्ञानिक भंडार खुलकर सामने आ जाएं। युवक वर्ग सृष्टि का सौंदर्य निहारें, स्पष्टता से प्यार करना सीखे। `
चार्ल्स नॉर्डहॉफ ने भी स्थान पर लिखा है, ` जो बालक माता- पिता का लाडला होता है, शीत ऋतु में जबकि अन्य बालक बर्फ पर खेलते हैं, वह अंगीठी के पास दो दुबका बैठा होता है, और देर तक आराम से बिस्तर पर सोया रहता है, जेबे सदा मिठाई से भरी रहती हैं। और उसकी जान की चिंता में उसके मां-बाप रात दिन सूखा करते हैं, ऐसा लड़का चाहे अपने ऐसे साथी को देखकर तरस खाए, और दुख माने, जो पांव से नंगा फिरता है, प्रातः उठकर गाय भैंसो को चराता है, जिसके पास पहनने को मात्र दो जोड़ी वस्त्र है, मिठाई खाना तो क्या जिसे उसके दर्शन भी दुर्लभ है, मगर इतिहास और अनुभव इस तथ्य के साक्षी हैं, कि उपयोगी इंसान बनने और संसार में मानव ख्याति प्राप्त करने का अधिकारी केवल बलिष्ठ और मेहनती बालक ही है। ‘
प्रकृति को बेकारी और गति हीनता से बहुत गहरा है, चाहे यह दुर्गुण अमीर में हो या गरीब में, आलस्य और कर्म हीनता तो व्यक्ति को अंधकार के गर्त में डुबो देते हैं, इससे बचने के लिए उचित अवसर पर लाभ उठाने की भी दृष्टि आवश्यक है।
अगर हम मुसीबत को खींचकर छाती से लगाते हैं, तो स्वाभाविक है कि दुर्बल भावनाओं का प्रवाह हमारी ओर हो जाएगा, और वह हमारे अस्तित्व को अपने भंवर में फंसा कर आखिर हमें डुबो ही देगा।
श्रम का रहस्य- Secret of Labour
बहुत वर्ष पहले की बात है, कि बोस्टन की गलियों में एक निर्धन अंधा फेरीवाला सुई धागा बटन और सीने पिरोने की वस्तुएं गठरी में बांधकर घर घर बेचा करता था। डॉक्टर सैवेज को सदा उस पर दया आती थी।
एक बार साहस बटोर कर उन्होंने उससे उसका हाल पूछा, और यह सुनकर उन्हें बड़ी हैरानी हुई, कि वह अंधा अपनी स्थिति से पूर्ण संतुष्ट था, उसे उसने कहा मेरी पत्नी बड़ी वफादार है, और अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए मेरा काम ठीक-ठाक चल रहा है, वैसे मैं भाग्य को कोसने लगूँ, तो अपने आप को तुच्छ समझने के सिवा क्या पा लूंगा। देखा आपने कितना संतुष्ट था, वह अपने उस जीवन से कोई और होता तो अपने अंधेपन को ढाल बनाकर भीख मांगने जैसा धंधा अपना सकता था। किंतु उसने लोगों को मोहताज बनाना गवारा नहीं किया, उसे उस प्रकार पेट भरने से वह संतुष्टि नहीं मिलती, जो इस प्रकार मेहनत करके प्राप्त हो रही थी।
साहस का दामन ना छोड़े
जे.कुक नामक एक व्यक्ति अपने जीवन के 51 वर्ष तक धनपति बना रहा, किंतु 52 वें वर्ष में अचानक वह कंगाल हो गया। किंतु उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने फिर से मेहनत की और पुनः उतना ही धन अर्जित कर लिया। उसने लाखों रुपए का कर्ज चुकाया। और सभी से वह वादे किए थे, उन पर खरा उतर कर दिखाया। एक बार एक परिचित ने उससे पूछा कि इतना धन उसने कैसे जुटा लिया?
इस पर जे.कुक ने बड़ी सहजता से उत्तर दिया-“ माता-पिता से जो स्वभाव मुझे पैतृक रूप में मिला था, मैंने उसमें परिवर्तन नहीं आने दिया। होश संभालने से लेकर आज तक मैं आशापूर्ण स्वाभाव वाला रहा हूं। मैंने किसी कष्ट, क्लेश को अपने समीप नहीं आने दिया। मुझे हमेशा यह विश्वास रहा कि हमारा देश दौलत से भरा पड़ा है, और इस दौलत को प्राप्त करने के लिए केवल इतना ही पर्याप्त है, कि परिश्रम किया जाए। और अवसर पर अवसर का लाभ उठाया जाए। सदा अवसर पर नजर रखो यही मेरी सफलता का रहस्य है |
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