रॉल्स के न्याय के सिद्धांत का परीक्षण कीजिए

रॉल्स के न्याय के सिद्धांत का परीक्षण कीजिए Examine Rawls’s theory of justice

Rawls’s theory of justice- रॉल्स का न्याय का सिद्धांत- वितरणात्मक न्याय को अमरीका के सुप्रसिद्ध दार्शनिक जॉन रॉल्स ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक A Theory of Justice में स्पष्ट किया है। इस पुस्तक की तुलना प्लेटो, मिल और कांत की रचनाओं से की गई है। इस पुस्तक का मूल उद्देश्य न्याय की धारणा का एक ऐसा सुनिश्चित सैद्धांतिक आधार प्रदान करना रहा है जो उपयोगितावादी धारणा का स्थान ले सके तथा जो आधुनिक उदारवादी प्रजातांत्रिक कल्याणकारी राज्य की आवश्यकताओं के अनुरूप हो।

रॉल्स न्याय को सभी सामाजिक संस्थाओं का सर्वप्रथम एवं मौलिक गुण मानते हैं और इस बात का विश्लेषण करते हैं कि न्याय के किन सिद्धांतों को सर्वोचित ठहराया जा सकता है। ऐसा करते हुए वह हॉब्स, लॉक और रूसो की भाँति सामाजिक समझौते पर आधारित न्याय के सिद्धांत की रचना करते हैं।

 

रॉल्स के अनुसार, क्योंकि न्याय किसी भी सामाजिक व्यवस्था की नींव है, अतः सभी राजनीतिक और वैधानिक निर्णय इन नियमों के अंतर्गत ही लिए जाने चाहिए। रॉल्स के अनुसार न्याय वितरण का गुण है और इसका संबंध समाज में वस्तुओं और सेवाओं के वितरण से है। रॉल्स न्याय की धारणा का विकास इस दृष्टिकोण से करता है कि समाज में सभी व्यक्ति स्वतंत्र एवं समान हैं।

 

उनकी यह स्वतंत्रता उनके दो नैतिक नियमों के स्वामित्व के साथ जुड़ी हुई है



(i) न्याय की समझ की क्षमता (capacity for a sense of justice), तथा

(ii) अच्छाई की अवधारणा (conception of good)। ‘समाज के संपूर्ण सहयोगी सदस्य के रूप में’ रहने के लिए ये नियम जिस सीमा तक उपलब्ध हैं, उसी सीमा तक वह समाज समान है। इसकी और व्याख्या करते हुए रॉल्स लिखता है कि ‘न्याय की समझ’ का अर्थ है ‘न्याय की सार्वजनिक धारणा, जो उचित सहयोगी की माँग करती है, को समझने, लागू करने तथा उसके अनुसार कार्य करने की क्षमता’।

यह समझ एक ऐसी इच्छा की अभिव्यक्ति करती है कि दूसरों के साथ संबंध के संदर्भ में इस प्रकार का व्यवहार किया जाये जिनका वे भी सार्वजनिक तौर पर अनुमोदन कर सकें तथा ‘अच्छाई की अवधारणा’ में वह सब कुछ निहित है जो मानव जीवन के लिए मूल्यवान है। सामान्यतः इसमें उन सभी अंतिम उद्देश्यों को शामिल किया जाता है जो हम अपने लिए प्राप्त करना चाहते हैं और साथ ही साथ दूसरे लोगों के साथ लगाव तथा अन्य समूहों तथा समुदायों के प्रति निष्ठा। 

रॉल्स का सिद्धांत हॉब्स, लॉक की भाँति सामाजिक समझौते पर आधारित है अतः रॉल्स भी प्राक्-प्राकृतिक अवस्था (pre-social state of nature) की बात करता है जिसमें लोग सहमति के आधार पर उस समाज का स्वरूप निश्चित करेंगे जिसमें वे रहना पसंद करेंगे जो निष्पक्ष चयन की परिस्थितियों में न्यायसंगत होगा।

रॉल्स के न्याय के दो नियम-

 

अपने हितों को अधिकतम सीमा तक आगे बढ़ाते हुए और मूल पदार्थों का वितरण करने के दृष्टिकोण से, रॉल्स के अनुसार, लोग न्याय के दो नियमों को चुनेंगे

(1) प्रत्येक व्यक्ति को व्यापक स्तर पर मौलिक स्वतंत्रताओं का ऐसा समान अधिकार जो दूसरों समान अधिकार के अनुरूप हो, तथा के इसी दोनों

(2) सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं को इस तरह क्रमबद्ध किया जाये कि वे

(A) अवसर की निष्पक्ष समानता के अंतर्गत पद तथा प्रतिष्ठा की प्राप्ति सभी के लिए सुलभ हो, तथा

(B) समाज के न्यूनतम सुविधा प्राप्त लोगों को अधिकतम लाभ पहुँचाये।

 

पहला सिद्धांत-रॉल्स के अनुसार न्याय का पहला सिद्धांत, अर्थात् समान स्वतंत्रता का सिद्धांत, दोनों सिद्धांत में प्रथम श्रेणी का सिद्धांत है जिसे दूसरे सिद्धांत से पहले संतुष्ट किया जाना चाहिए अर्थात् स्वतंत्रता पर कोई भी सीमा केवल स्वतंत्रता के संदर्भ में ही लगाई जा सकती है, धन अथवा आय में वृद्धि करने के दृष्टिकोण से नहीं।

                          जैसा रॉल्स लिखते हैं, बिना पर्याप्त कारणों के (व्यक्ति के) व्यवहार के विरुद्ध कानूनी तथा अन्य सीमाएँ लगाना आम धारणा है परंतु यह धारणा किसी विशेष स्वतंत्रता के लिए कोई विशिष्ट प्राथमिकता का निर्माण नहीं करती। इसके विपरीत, स्वतंत्रता की प्राथमिकता का अर्थ है कि न्याय का पहला सिद्धांत मूल स्वतंत्रताओं को विशेष स्थान देता है। सार्वजनिक कल्याण तथा पूर्णतावादी मूल्यों के लिए इनका महत्त्व सर्वोच्च है। इनमें समान स्वतंत्रताओं से किसी भी सामाजिक समुदाय को केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि उनकी यह स्वतंत्रता आर्थिक निपुणता तथा विकास से संबंधित नीतियों में बाधा डालती है। स्वतंत्रता की प्राथमिकता का अभिप्राय है कि मूल स्वतंत्रता केवल किसी अन्य स्वतंत्रता में वृद्धि के संदर्भ में ही सीमित या वंचित की जा सकती है।

संक्षेप में, ये मूल स्वतंत्राएँ हैं:


(i) विचार की स्वतंत्रता।

(ii) अंत:करण की स्वतंत्रता (इसमें धार्मिक, दार्शनिक स्वतंत्रता तथा इस विश्व के प्रति हमारे नैतिक विचार भी निहित हैं),

(iii) राजनीतिक स्वतंत्रतायें। ये स्वतंत्रतायें प्रतिनिधि-प्रजातांत्रिक संस्थाओं, भाषण, अभिव्यक्ति तथा प्रेस की स्वतंत्रता तथा इकट्ठे होने की स्वतंत्रता की माँग करती है,

(iv) संगठन बनाने की स्वतंत्रता,

(v) व्यक्तित्व की स्वतंत्रता एवं अखंडता। इनका अर्थ है दासता तथा कृषिदासता से मुक्ति, आवागमन की स्वतंत्रता, व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता, तथा

(vi) कानून के शासन के अंतर्गत आने वाले अधिकार एवं स्वतंत्रतायें।इसके अतिरिक्त इन मूल स्वतंत्रताओं में रॉल्स जिन्हें निहित करता है, वे हैं व्यक्तिगत संपत्ति रखने तथा उसका उपयोग करने का अनन्य अधिकार। ऐसा इसलिए है कि यह स्वतंत्रता व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा आत्म-सम्मान की भावना का आधार है। तथापि इन मूल स्वतंत्रताओं में दो व्यापक धारणाओं को निहित नहीं किया गया-अधिग्रहण एवं वसीयत संबंधी कुछ अधिकार, उत्पादन के साधनों एवं प्राकृतिक साधनों के स्वामित्व का अधिकार, तथा उत्पादन के साधनों तथा प्राकृतिक साधनों के नियंत्रण में भागेदारी का अधिकार, जो रॉल्स के अनुसार, सामाजिक संपत्ति होने चाहिए।

 

ये मूल स्वतंत्रतायें हमें


(1) न्याय के नियमों को समझने, लागू करने तथा पालन करने की क्षमता के योग्य बनाती हैं, तथा

(ii) अच्छाई की धारणा का निर्माण करने, उसमें संशोधन करने तथा उसे प्राप्त करने के योग्य बनाती है। > दूसरा सिद्धांत-रॉल्स के अनुसार सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं के प्रबंध से संबंधित न्याय के दूसरे सिद्धांत का अर्थ है कि समाज कुछ ऐसे कार्यक्रम भी आरंभ कर सकता है जिसमें कुछ लोगों को दूसरों की अपेक्षा अधिक शक्ति, आय तथा सम्मान दिया जाये।

उदाहरण के लिए, उच्च प्रबंधकों तथा विशेषज्ञों अथवा लेखाकारों को आम मजदूरों अथवा क्लर्कों आदि से अधिक वेतन अथवा सुविधायें दी जायें, बशर्ते कि ये इन दो शर्तो को पूरा करें:


(1) ऐसे कार्यक्रमों से उन लोगों के जीवन में सुधार आये जिनका जीवन इस समय बदतर है अर्थात् इससे समाज के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार हो तथा समाज के निम्नतम वर्ग के लोगों का उनके कल्याण के अनुरूप सशक्तीकरण हो, तथा

(ii) समाज के ये विशेषाधिकारी पद अवसर की उचित समानता के आधार पर सभी के लिए खुले हों, अर्थात् वे किन्हीं बेफजूल मानदंडों के आधार पर किये जाने वाले भेदभावों के आधार पर प्रतिबंधित न किये जायें।


न्याय के इस दूसरे सिद्धांत में हमें समाजवादी विचारों की झलक मिलती है जिसके अनुसार उत्तरदायित्व एवं बोझ का आवंटन योग्यता के अनुसार होना चाहिए तथा लाभों का वितरण आवश्यकता के अनुसार। ऐसा अनुमान हम आसानी से लगा सकते हैं कि समाज के निम्नतम वर्ग की आवश्यकताएँ सबसे अधिक होती हैं और जिन्हें विशेष शक्तियाँ (जो कि सामाजिक असमानता ला सकती हैं) दी गई हैं उनके उत्तरदायित्व एवं बोझ भी अधिक हैं। तथापि यह योग्यता सिद्धांत कि विशिष्ट कुशलताओं को पुरस्कृत किया जाना चाहिए।

आर्थिक और सामाजिक स्तर पर रॉल्स पुनर्वितरणात्मक न्याय के पक्ष में हैं। इनके अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा ही नहीं है बल्कि सबसे अधिक जरूरतमंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बनाकर मूल पदार्थों को पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध करवाना है। तथापि रॉल्स पूर्णतया समतावादी वितरण का समर्थन नहीं करते। वह असमानताओं का भी समर्थन करते हैं-अधिकतम सामाजिक भलाई के उपयोगितावादी दृष्टिकोण से नहीं बल्कि समाज के निम्नतम लोगों की जीवन दशा में सुधार के दृष्टिकोण से।

 

रॉल्स का तर्क है कि प्राकृतिक योग्यतायें और जन्म की परिस्थितियाँ समाज में विशेषाधिकारों और असमानताओं को जन्म देती हैं। क्योंकि इन असमानताओं को खत्म नहीं किया जा सकता, इसलिए एक न्यायपूर्ण समाज का कर्तव्य है कि वह अपने स्रोतों का प्रयोग, जिसमें योग्य व्यक्तियों के प्रयत्न और क्षमतायें निहित हैं, इस ढंग से करे जिससे समाज के निम्नतम वर्ग की दशा में सुधार हो सके और विशेषाधिकारों से उत्पन्न होने वाली असमानताओं की क्षतिपूर्ति हो सके। केवल योग्य व्यक्ति को पुरस्कृत करना मनमाना न्याय होगा। न्याय का सही अर्थ ‘योग्य व्यक्तियों को पुरस्कृत करना नहीं बल्कि निम्नतम लोगों की क्षतिपूर्ति करना है।’ जैसा कि रॉल्स लिखते हैं, ‘न्याय पुरस्कार का सिद्धांत न होकर क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है’। 

 

आलोचना-

 

नोज़िक जैसे इच्छास्वातंत्र्यवादी लेखक रॉल्स के इस तर्क को पूर्णतया अस्वीकार कर देते हैं कि व्यक्तिगत योग्यतायें और क्षमतायें समाज की सार्वजनिक संपत्ति हैं और उनका सामाजिक न्याय के आधार पर पुनः वितरण किया जाना चाहिए। नोज़िक ने रॉल्स के भेदमूलक सिद्धांत की इस आधार पर आलोचना की है कि इसे लागू करने से अमीर वर्ग हो सकता है निम्न वर्ग के साथ सहयोग करना मना कर दे, ठीक उसी तरह जिस तरह रॉल्स का अभिप्राय है कि सामाजिक सहयोग के नाम पर अमीर वर्ग द्वारा निम्नतम वर्ग की सहायता की जाएगी।

 

नोज़िक पूछता है कि अमीर लोग अपनी असमानता तथा सामाजिक सहयोग के खातिर न्यूनतम वर्ग की सहायता करने के लिए बाध्य क्यों होंगे; ऐसा भी तो हो सकता है कि वे निम्नतम वर्ग से अमीरों की असमानता तथा व्यय को स्वीकार करवा लें। इसके अतिरिक्त नोज़िक का यह भी मानना है कि अमीरों द्वारा उपभोग की जाने – वाली प्राकृतिक योग्यतायें (लाभ) किसी के अधिकार का हनन नहीं करतीं अतः उन्हें अपने आत्म-स्वामित्व का अधिकार है। नोज़िक का मानना है कि रॉल्स का यह विचार कि असमानताओं को निम्नतम वर्ग की सहायता के अनुसार प्रबंधित किया जाना चाहिए, अपने आप में नैतिक दृष्टिकोण से मनमर्जीपूर्ण है।

रॉल्स के सिद्धांत की एक अन्य आलोचना माइकल वालज़र तथा सेंडल जैसे समुदायवादियों ने की है जिनका मानना है कि रॉल्स हमें हमारे मूल्यों, परंपराओं तथा आकांक्षाओं से पृथक करके न्याय के बारे में विचार करने के लिए कहता है।

 

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