एंटीबायोटिक के अंधाधुंध सेवन से बचें
Side Effect of Antibiotics :- कई बार दर्द ही दवा बन जाता है, लेकिन आजकल दवा ही दर्द का कारण बन गई है ,इसकी एक मिसाल है, एंटीबायोटिक दवाइयां जिनके अंधाधुंध इस्तेमाल ने आज महामारी का रूप धारण कर लिया है|
यह दवाइयां अंधाधुंध इस्तेमाल करने के कारण न केवल बेअसर हो रही हैं, बल्कि दुष्प्रभाव भी पैदा कर रही हैं| जीवाणु से होने वाली बीमारियों से निजात दिलाने वाली एंटीबायोटिक दवाइयों का बेवजह इस्तेमाल पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर हो रहा है | लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया में खासतौर पर भारत में इन दवाइयों के बहुत अधिक इस्तेमाल के कारण स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं का जन्म होने लगा है |
Antibiotics Side Effect
- एंटीबायोटिक दवाइयों के अधिक एवं अंधाधुंध इस्तेमाल से मुंह में छाले दस्त पीलिया और पूरे शरीर में खुजली जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं |
- Antibiotics के लगातार इस्तेमाल से होने वाली समस्या सूडोमैम्ब्रेनस, कोलाइटिस भी कहलाती हैं |
- एंटीबायोटिक के बहुत अधिक इस्तेमाल से ड्रग फीवर भी हो सकता है |
- चिकित्सकों के पास ऐसे मरीज आते हैं, जिन्होंने पहले से ही एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन किया होता है, लेकिन यह देखा गया है, कि जब यह मरीज एंटीबायोटिक दवाइयां (Antibiotics Medicine) बंद कर देते हैं, तो उनकी बीमारी दूर हो जाती है |
- करीब 30 से 40% मरीज एंटीबायोटिक दवाइयां बंद करने पर ही ठीक हो जाते हैं |
खुद ही एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन करने लगना
आजकल लोग हर किसी तकलीफ में चिकित्सक से सलाह के बगैर अपने आप ही किसी केमिस्ट से पूछ कर एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन करने लगते हैं | इससे जीवाणुओं में इन दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता (buffering capacity) विकसित हो जाती है| और यह एंटीबायोटिक दवाइयां बेअसर (Ineffective) हो जाती है ।
कई मरीज तो तीन-चार एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन एक साथ करते हैं, यही नहीं, कई चिकित्सक वायरल एवं फंगल बीमारियों (Fungal diseases) में भी मरीज को एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन करने की सलाह देते हैं |
जबकि इन बीमारियों में एंटीबायोटिक दवाइयों की कोई भूमिका नहीं है | आमतौर पर वायरल बुखार पौष्टिक आहार एवं आराम करने पर स्वता ठीक हो जाता है | लेकिन आजकल लोगों की जिंदगी इतनी व्यस्त हो गई है, कि वह चाहते हैं, कि दवाइयां खा कर तत्काल कामकाज कर सकें |
कई मरीज चिकित्सक से खुद ही एंटीबायोटिक दवाइयां लिखने को कहते हैं|
कई मरीजों की भ्रांति है कि उन्हें अधिक शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवाइयां अधिक फायदा करेंगे । लेकिन दरअसल कोई दवाई ज्यादा है ,या कम शक्तिशाली नहीं होती है । एंटीबायोटिक दवाइयों की जरूरत के अनुसार समुचित इस्तेमाल (Proper use of antibiotics according to need) से ही मरीज को कोई लाभ होता है | अन्यथा मरीज को नुकसान ही होता है । कई लोगों की यह धारणा होती है, कि एंटीबायोटिक दवाइयों नुकसानदायक एवं दुष्प्रभाव पैदा करने वाली होती है (Antibiotics are harmful and cause side effects.)|
इसीलिए वे जरूरी होने पर भी इन दवाइयों का सेवन करने से बचते हैं, लेकिन उन्हें यह जानना चाहिए कि जरूरी होने पर इन दवाइयों के सेवन से कतराना नहीं चाहिए | अन्यथा संक्रमण जानलेवा हो सकता है | जीवाणु संक्रमण होने पर और एंटीबायोटिक दवाइयां लेने पर संक्रमण पूरे शरीर में फैल कर सेप्टीसीमिया का रूप ले सकता है, अगर सेप्टीसीमिया पूरे शरीर में फैल जाए , तो गुर्दे एवं अन्य महत्वपूर्ण अंग खराब हो सकते हैं | दरअसल संक्रमण तभी होता है, जब जीवाणु शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को पराजित कर देते हैं, ऐसे में जीवाणुओं को मारने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन आवश्यक होता है (Antibiotics are necessary to kill bacteria.)|
अक्सर यह देखा जाता है, कि कई चिकित्सक मरीज को एंटीबायोटिक दवाई की कम खुराक लेने की सलाह देते हैं Side Effect of Antibiotics
लेकिन कई बार इनसे कोई लाभ नहीं होता है, दरअसल दवाई की खुराक मरीज को उम्र एवं शारीरिक वजन के हिसाब से दी जानी चाहिए | मिसाल के तौर पर साधारण तौर पर उपयोग की जाने वाली दवाई जैसे एंपीसिलीन , अमौक्सीसिलीन की 500 मिलीग्राम की खुराक 50 किलोग्राम वजन के मरीज को रोजाना तीन से चार बार देनी चाहिए | लेकिन ज्यादातर चिकित्सक 250 मिलीग्राम की खुराक तीन तीन बार लेने की ही सलाह देते हैं| जबकि यह बच्चों की खुराक है, कम खुराक में दवाई लेने पर जीवाणुओं में दवाई के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती हैं | इसके अलावा एंटीबायोटिक दवाई जितने दिन लेने को कहा जाए , इतने दिन लेनी चाहिए |
आमतौर पर 7 दिन तक एंटीबायोटिक दवाई लेनी चाहिए,
हालांकि गैस्ट्रोइंनेराइटिस जैसी बीमारियों में 3 से 5 दिन तक भी एंटीबायोटिक दवाई ली जा सकती है | जबकि टाइफाइड और निमोनिया जैसी बीमारियों में 2 हफ्ते तक एंटीबायोटिक दवाई चलती है | अक्सर यह देखा जाता है, कि मरीज ठीक होते ही एंटीबायोटिक दवाई अपने आप बंद कर देते हैं, लेकिन ऐसी स्थिति में यह एंटीबायोटिक दवाई बेअसर हो जाती है , और यही संक्रमण दोबारा हो जाता है| तथा उसे ठीक होने में ज्यादा समय लगता है |
आजकल जीवाणुओं में मल्टीड्रग रेजिस्टेंस विकसित हो गया है, Side Effect of Antibiotics
अर्थात जीवाणुओं में कई कई दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है, आमतौर पर तपेदिक की दवाई पर रोजाना 25 से ₹30 का खर्च आता है, लेकिन मल्टीड्रग रेजिस्टेंट विकसित हो जाने पर मरीज को एंटीबायोटिक दवाइयों (Antibiotics) पर रोजाना 300 से ₹500 खर्च करना पड़ता है| यही नहीं सामान्य स्थिति में तपेदिक की दवाई 1 साल तक लेनी पड़ती है, जबकि मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस विकसित हो जाने पर 1:30 से 2 साल तक दवाई लेनी पड़ती है | एंटीबायोटिक (Antibiotics) देने से पहले मरीज के रक्त के नमूने का कल्चर करके देखा जाए, कि उसे किस किस्म का बैक्टीरियल संक्रमण है, या उस मौसम में कौन से जीवाणु ज्यादा सक्रिय हैं, |
Side Effect of Antibiotics
आजकल कुछ ऐसी एंटीबायोटिक दवाइयां विकसित हुई है, जिन्हें कम ही बार देने की जरूरत पड़ती है, मिसाल के तौर पर गले के निमोनिया के लिए विकसित एजोब्रोमाइसिन की 500 मिलीग्राम की गोली केवल नाश्ते के समय लेनी होती है | यह दवाई परंपरागत एंटीबायोटिक दवाइयों की तुलना में सुरक्षित एवं हानि रहित है
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