Guru Ghasidas Biography in Hindi - गुरु घासीदास बाबा कौन थे

Guru Ghasidas Biography in Hindi

 

नाम – गुरु घासी दास

जन्म दिनाक – 18 दिसंबर 1756

जन्मस्थान – गिरौद ( छत्तीसगढ़)

पिता का नाम – महंगुदास जी

माता का नाम – अमरौतिन

पत्नी का नाम – सफुरा

Guru Ghasdas Baba गुरु घासी दास  (1–54–1CE50 BC [1]) 19 वीं सदी के प्रारंभ में हिंदू धर्म के सतनामी संप्रदाय के पैरोकार थे। घासी दास, रायपुर जिले के गिरोड़पुरी में एक किसान थे।  जिन्होंने सतनाम को कई निम्न-जाति के भारतीयों, खासकर छत्तीसगढ़ के लोगों को उपदेश दिया।

 

घासी दास का गुरुत्व उनके बेटे, बालकदास द्वारा चलाया गया।  गुरु घासीदास (1756-1836) छत्तीसगढ़ में सतनामी समुदाय के संस्थापक थे। उनका जन्म रायपुर जिले के गिरोधपुरी गाँव में हुआ था।




उनके जीवनकाल के दौरान, भारत में राजनीतिक माहौल शोषण का था। घासीदास ने कम उम्र में जाति व्यवस्था की बुराइयों का अनुभव किया, जिसने उन्हें जाति-ग्रस्त समाज में सामाजिक गतिशीलता को समझने और सामाजिक असमानता को खारिज करने में मदद की। समाधान खोजने के लिए, उन्होंने छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर यात्रा की।

 

संत गुरु घासीदास ने “सतनाम” (“सत्य”) और समानता पर आधारित छत्तीसगढ़, भारत में सतनामी समुदाय की स्थापना की। गुरु की शिक्षाएं और दर्शन हिंदू और बौद्ध धर्म के समान हैं। गुरु घासीदास ने सत्य का एक सफेद प्रतीक बनाया, जिसे “जयस्तंभ” कहा जाता है – एक सफेद और सीधा लकड़ी का टुकड़ा, जिसके ऊपर एक सफेद झंडा होता है। श्वेत प्रतीक जो एक ऐसे शख्स को दर्शाता है जो सत्य “सतनाम” का अनुसरण करता है वह हमेशा दृढ़ रहता है और वह सत्य का सफेद स्तंभ है (satya ka stambh)। सफेद झंडा शांति का संकेत देता है।

 

गुरु घासीदासबाबा  के वंशज

 

गुरू वंशज गुरू अगमदास जी ने….ही..सतनामी को सतनामी कहा जाने का अधिकार 1926 में दिलाया, और हिन्दु लोगो को भी सतनामी समाज से जोड़ने के उद्देश्य से ही…हिन्दु सतनामी महासभा नाम रखा।

 

क्योकि उस समय तक रामनामी और सूर्यवंशी जो कि सतनामी ही थे उन समुदाय के लोग हिन्दु संस्कृति को अपना चुके थे।  सतनामी से अलग हो चुके थे जिसे सतनामी समाज में मिलाने के लिये या यूं कहे कि उन्हे सतनामी बनाने के लिये ही हिन्दु सतनामी महासभा का नाम दिया गया।

सतनामी एवं सतनाम धर्म विकाश परिषद गुरू अगमदास जयंती “सतनामी सम्मान दिवस” के रुप में मनाकर गुरूजी के कार्य को याद करता है।



 

पंथी नृत्य

 

पंथी नृत्य, छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के महत्वपूर्ण नृत्य रूपों में से एक है। यह भारतीय लोक नृत्य छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय का प्रमुख अनुष्ठान है। समुदाय माघी पूर्णिमा पर गुरु घासीदास के जन्म की सालगिरह मनाता है।

 

इस दिन पंथी पूजा की जाती है। दुर्ग क्षेत्र के आदिवासी समूहों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक विरासत इस नृत्य के माध्यम से स्पष्ट रूप से चित्रित की गई है। नृत्य में विभिन्न प्रकार के चरण और पैटर्न शामिल हैं। नर्तक इस अवसर के लिए अपने आध्यात्मिक सिर को स्तब्ध करते हुए गीतों पर नृत्य करते हैं। गाने उनके गुरु के त्याग और प्रसिद्ध संत कवियों की शिक्षा की भावना को दर्शाते हैं।

 

गुरु घासीदास Guru Ghasidas Baba के उपदेश

 

छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों की तरह छोटी – छोटी जातियां निवासरत है जिसे वर्तमान समय में अनुसूचित जाति , जनजाति  तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के नाम से जाना जाता है इन्ही जातियों का मिश्रित रूप “बहुजन समाज ” कहलाता है 

  • मूर्ति पूजा का विरोध – Guru Ghasidas Baba




 

           ईश्वर निर्गुण और निराकार है जिसकी कोई मूर्ति नहीं है ,ईश्वर की धारणा मानव की स्वाभाविक गुण है आत्मा में ही परमेश्वर का वास होता है जो आँखों से हमें दिखाई नहीं देता है जिसे अपने सद कर्म व आचरण से आभास किया जा सकता है |
  • समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्ष – 

बाबा जी ने सभी मनुष्यों को एक सामान दर्जा दिलाने संघर्ष किया तथा ” मनुष्य जाती ” को सर्वोपरि प्राथमिकता दिया | उन्होंने मनुवादियों द्वारा बनाई जाति व्यवस्था को तोड़ने का आव्हान किया तथा ऊँच – नीच, जाती- पाती के भेद भाव को तोड़कर समाज में समता लाने का प्रयास किया |

  • “सतनामी बनो ,संगठन बनाओ ,सघर्ष करो” , का नारा देना

बाबाजी ने जाती एवं वर्ण व्यवस्था को बहुजन समाज के विरोध में पाया , उस समय भी  पाखंड वाद अपने चरम पर था जिसके विरोध में बौध्ध धर्म खड़ा था , जिसे समाप्त करने के लिए बाबा जी ने “सतनामी बनो ,संगठन बनाओ ,सघर्ष करो , का नारा दिया | संगठन ही वह शक्ति है जिसके द्वारा अपना आत्म सम्मान हासिल किया जा  सकता है |

  • जाति विहीन समाज के स्थापना हेतु संघर्ष – 

बाबा जी ने समता मूलक समाज की स्थापना किया जातियों में जकड़े दलितों के शोषण एवं जातीय अपमान को देखा था , जिसको तोड़ने के लिए ऐसे समाज की स्थापना किया जंहा ऊँच नीच छोटे बड़े का कोई भेद नहीं है |




  • नारी सम्मान हेतु संघर्षGuru Ghasidas Baba

 

“सबो जीव के आत्मा एकेच आय” 

बाबाजी नारी जाति का बड़ा आदर करते थे नारी पवित्रता की देवी है नारी ही स्त्री पुरुष की जननी है तथा संसार व मानव निर्माण का कार्य वे ही करते है | उन्होंने बाल विवाह ,सती प्रथा का विरोध किया तथा विधवा विवाह संपन्न कराया एवं स्त्री को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार दिलाया |



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