आई.वी.एफ.बेहतर या माइक्रो सर्जरी | IVF or Micro Surgery

IVF or Micro Surgery :- जमाना गुजर गया जब संतान होना या न होना विधु विधाता की इच्छा पर निर्भर माना जाता था और संतान ना होने पर भाग्य को कोसने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं किया जा सकता था।  दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लूसी ब्राउन के जन्म के बाद से इस क्षेत्र में इतनी तकनीकी प्रगति हो चुकी है, कि संतानोत्पत्ति के असमर्थ माताओं के लिए भी अपनी संतान होने का सपना सपना नहीं रह गया है।  सबसे ताजा तकनीकी है जमे हुए मानव भ्रूण को गर्भाशय में जन्म देने की।  एक क्षण के लिए यह बहुत जटिल तकनीकी प्रतीत होती है , पर अमेरिकी वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिए इन विंट्रो फर्टिलाइजेशन नाम की यह जनन प्रक्रिया बहुत सामान्य रूप से ले चुकी है। 


अमेरिका में हर साल जन्म लेने वाले करीब 3800000 बच्चो में से करीब दो लाख का जन्म कृतिम विधियों प्रजनन सेवाओं की सहायता से होता है।  अमेरिकी कांग्रेस के तकनीकी मूल्यांकन विभाग की एक रिपोट के अनुसार 1987 में उस देश में प्रजनन हीनता के इलाज पर करीब 100 करोड डॉलर खर्च किए गए थे। 

 

इस इलाज और कृत्रिम प्रजनन की तकनीकी का लाभ उठाने वालों की संख्या पिछले दो दशक में तेजी से बढ़ी है।  ऐसे जोड़ों में करीब 85% का उपचार तो पारंपरिक विधियों से ही कर दिया जाता है।  यानी शल्य चिकित्सा और कृत्रिम गर्भाधान से आज भी यह दोनों विधियां प्रजनन हीनता के इलाज के सर्वाधिक सफल विधियां हैं। 


IVF तकनीक


आई.वी.एफ.की एक विशेषता यह है, कि अंडाणु और शुक्राणु की प्रक्रिया के बाद एक अंडाणु में स्थापित कर देने के पश्चात शेष बचे निषेचित अंडाणु को द्रव नाइट्रोजन के टैंक में जमा दिया जाता है। या यूं कहें, कि विकृत कर दिया जाता है।  अगर मां के गर्भाशय में स्थापित अंडाणु नहीं पनपता तो ही मिश्रित अंडाणु में से किसी एक को फिर गर्भाशय में रख दिया जाता है।  बाद में यह अंडाणु भ्रूण का रूप ले लेता है।  और संबंधित महिला गर्भवती हो जाती है। 

 

निषेचित अंडाणु जिन्हें हम भ्रूण से पहले ही अवस्था भी कह सकते हैं।  इसको महीनों वर्षों और शायद अनंत काल तक ले लिए जमाए रखा जाता है।  और आश्चर्य की बात है , कि वह पूर्व अवस्था में लाए जाने पर भी सक्रिय हो जाते हैं।  हिमीकरण की इस प्रक्रिया को क्रायोप्रिजर्वेशन नाम दिया जाता है। लेकिन इसे लेकर कई नैतिक और कानूनी विवाद भी उठ खड़े हुए हैं।  जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे |

 

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संतानहीन दंपतियों के लिए संतान प्राप्ति का एक और विकल्प है, अंडाणु दान का।  जिन महिलाओं के शरीर में अंडाणु नहीं बनते या वे क्रियाशील नहीं होते वे इस विधि के तहत मातृत्व सुख प्राप्त कर सकती हैं।  इसमें किसी अन्य महिला के अंडाणु को पहली महिला के प्रति के शुक्राणु से क्रिया के पश्चात पहली महिला के गर्भाशय में स्थापित किया जाता है।

 

अमेरिकी कानूनों के अनुसार इस तरह पैदा होने वाले शिशु पर कानून दंपति कानूनन दंपति का ही अधिकार रहता है। जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय अस्पताल में बांझपन निवारण कार्यक्रम के निदेशक डॉ एन. अनुसार ये ऐसे लोग हैं  जिन्हें अब तक बांझ समझा जाता था  लेकिन ऐसा नहीं है। 

Surrogacy (IVF or Micro Surgery )


संतानहीन, दंपतियों के लिए शायद सर्वाधिक आशा मान्यवर नया विकल्प है किसी अन्य महिला के गर्भाशय के इस्तेमाल का।  यह विधि उन दंपतियों के लिए वरदान है।  जिनमें महिला के शरीर में गर्भाशय नहीं होता या इतना कमजोर होता है , कि संतानोत्पत्ति के काबिल नहीं होता।  इस दंपति के शुक्राणु और अंडाणु को प्रयोगशाला में क्रिया कराकर किसी ऐसी महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है, जो उनके लिए संतानोत्पत्ति का भार उठाने को तैयार हो।

 

आमतौर पर पैसे के लिए स्त्रियां भी मिल जाती है , यूं भी यह एक बहुत बड़ा परोपकार है |.ऐसे शिशु अनुवांशिक रूप से उस दंपति से ही जुड़े होते हैं कभी-कभी ऐसा भी होता है, कि किसी महिला के न होने की हालत में उसके पति के शुक्राणु को कृत्रिम रूप से किसी अन्य महिला के अंडाणु से क्रिया कराई जाती है।  वह पराई महिला बच्चे को जन्म देती है | और बाद में बच्चा उसके पिता को सौंप देती है।  जिसका शिशु पर कानूनी अधिकार होता है।  इस प्रक्रिया को बेबी एम नाम दिया जाता है। 

 

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लेकिन अमेरिका में ऐसे ही मामले में बच्चा पैदा करने वाली महिला का मन बदल गया और उसने बच्चा उसके पिता को सौंपने से इंकार कर दिया।  बच्चे के पिता ने कृतिम संतानोत्पत्ति के बदले उसे $10000 देने का अनुबंध किया था।  उसने न्यूजर्सी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।  न्यायालय ने आदेश दिया, कि बच्चे पर उसके पिता का अधिकार है , जिसने उस महिला की सेवाएं खरीदी हैं। 

 

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इन विंट्रो फर्टिलाइजेशन



इन विंट्रो फर्टिलाइजेशन के लिए अमेरिका के निजी अस्पतालों में अभी भारी भरकम फीस वसूली जाती है।  और फिर भी करीब 12.5% मामलों में ही सफलता मिलती है।  इसीलिए अब ऐसी विधियों की खोज चल रही है | जिनमें संयुक्त अंडाणु को महिला के गर्भाशय से स्थापित करने से पहले ही उसके विकसित होने की संभावना का परीक्षण किया जा सकेगा।  इस परीक्षण में यह जांच भी की जा सकेगी, कि कहीं भावी शिशु किसी गंभीर बीमारी के अनुवांशिक कारण को लेकर पैदा नहीं होगा। 

 

गैमीट इंट्राफैलोपियन ट्रांस्फर



कृत्रिम ढंग से संतानोत्पत्ति के एक अन्य विधि में अंडाणु और शुक्राणु को प्रयोगशाला में संपर्क नहीं कराया जाता | बल्कि पुरुष के शुक्राणु को सीधे महिला के शरीर में प्रवेश कराया जाता है | और वही अंडाणु से संयोग करता है | गैमीट इंट्राफैलोपियन ट्रांस्फर नाम की यह प्रक्रिया क्रतिम ढंग से संतानोत्पत्ति की ऐसी अकेली विधि है, जिसे कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी है |

आई.वी.एफ.बेहतर या माइक्रो सर्जरी IVF or Micro Surgery 



रीता परेशान थी | उसके विवाह को 7 वर्ष हो चुके थे, पर वह अभी भी नि: संतान थी | जांच से पता चला कि उसकी दोनों फैलोपियन नलिया बंद थी , कुछ डॉक्टर उसे आई.वी.एफ कराने की सलाह दे रहे थे | तो कुछ माइक्रो सर्जरी द्वारा नालियों खुलवाने की | रीता असमंजस में थी, कि क्या करें, क्या ना करें ?

उपरोक्त समस्या हर उस स्त्री के सामने आती है, जिसकी दोनों फैलोपियन नलिया बंद हो जाती है | इस समस्या के दो ही समाधान होते हैं | आई.वी.एफ.या माइक्रो सर्जरी ,|

आई.वी.एफ. IVF or Micro Surgery 


आई. वी .एफ. यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को ही परखनली शिशु तकनीकी के नाम से जाना जाता है | इस पद्धति में महिला को हार्मोन के इंजेक्शन देकर और उसमें एक ही माह में कई अंडाणु पैदा किए जाते हैं | फिर इन अंडाणुओं को अंडाशय से निकाला निकालकर निषेचित कराया जाता है ,  उसे स्त्री के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है | जहां पर वह भ्रूण के रूप में विकसित होने लगता है | गर्भाशय में सफल प्रत्यारोपण की संभावनाएं 15 – 25% प्रति चक्र होती हैं | अतः सामान्यतया 3 से 6 बार प्रत्यारोपण करना पड़ता है | यह एक तथ्य है, कि शत-प्रतिशत सफलता की संभावना तब भी नहीं होती। 

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सफल प्रत्यारोपण के बाद प्रसव होने के होने तक भ्रूण गर्भपात जैसे खतरे से ग्रसित हो सकता है | सामान्यतया 15 – 20% भ्रूण गर्भपात से नष्ट हो जाते हैं | अतः यदि गर्भपात होता है, तो आई.वी.एफ.को पुनः दोहराना पड़ता है | एक बार सफल आईवीएफ के पश्चात शिशु पैदा होने पर अगर स्त्री दोबारा गर्भवती होना चाहती है , तो उसे पुनः आई.वी.एफ.कराना पड़ेगा |


आई .वी.एफ.का खर्च विभिन्न क्लिनिको में भिन्न-भिन्न होता है | पर 60000 से लेकर 1. 5 लाख खर्च होना सामान्य बात है |

माइक्रो सर्जरी IVF or Micro Surgery 

अब माइक्रो सर्जरी को लें , माइक्रो सर्जरी द्वारा बंद नालियों को खोलना संभव है | इस सर्जरी में अत्यंत सूछ्म औजारों का प्रयोग करके माइक्रोस्कोप में देखकर ऑपरेशन किया जाता है | माइक्रोस्कोप से नलियों का आकार लगभग 4 से 10 गुना बड़ा दिखाई पड़ता है | और नालियों को खोलना भी आसान हो जाता है | अभी तक बहुत खराब मूल्यों का समाधान नहीं था, पर अब वेंन ग्राफ्ट को नली में डालकर ऐसी खराब नालियों का समाधान भी संभव हो गया है |


उपरोक्त विधि में पैर के सिरा निकालकर फैलोपियन नली में अंतर्सतह की जगह रख देते हैं | जबकि वह सतह पूर्वक बंद की जाती है | इससे सिरा को आवश्यक रक्त की पूर्ति होती है | वैसे पूरी नली को बदलने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन असफल रहे हैं | पूरी नली को बदलने पर रक्त प्रवाह बंद हो जाता है | और परिवर्तित की भी बंद हो जाती है | जबकि अंतर्सतह को बदलने से रक्त प्रवाह सामान्यतया चलता रहता है। 

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माइक्रो सर्जरी द्वारा बंद नालियों को खोलने में शत प्रतिशत सफलता की उम्मीद नहीं होती | समानता 25 से 90% सफलता की भी उम्मीद होती है | एक बार सफलता के पश्चात गर्भपात आदि होने पर स्त्री पूरी गर्भवती हो सकती हैं | एक सफल प्रसव के पश्चात पर पुनः बिना किसी ऑपरेशन के गर्भवती हो सकती है | इस ऑपरेशन का खर्च 10 से ₹40000 तक आता है |


अब आप स्वयं देखें कि अगर किसी स्त्री में माइक्रो सर्जरी सफल होती है | तो वह 10 से ₹40000 में ही अपनी समस्या से निजात पा सकती है | अगर वह सफल नहीं होती है , तो उसे 10 से ₹40000 की हानि होती है | इसके विपरीत अगर 70000  से लेकर 1.5 लाख रुपए खर्च करके कोई स्त्री आई.वी.एफ से सफलता प्राप्त कर सकती हैं | तो पुनः गर्भवती होने के लिए उसे पुनः 70000  से लेकर 1.5 लाख रुपए चाहिए अगर वह सफल नहीं होती है  तो उसे इतने धन की हानि होगी। 


अब प्रश्न उठता है , कि कितने लोग ऐसे हैं, जो बार-बार 60,000 से लेकर 1.5 लाख रुपए खर्च कर सकते हैं | शायद 1% से अधिक नहीं जबकि सा 10 से ₹40000 लगभग 20 से 30% लोग खर्च कर सकते हैं |

फिर भी डॉक्टर आई.वी.एफ.के पीछे क्यों भागते हैं | क्योंकि पश्चिमी देशों के डॉक्टर जो कुछ कह देते हैं | वह हम उसका अंधानुकरण करने लगते हैं | विदेशों में आई.वी.एफ.अधिक प्रचलित इसीलिए है | क्योंकि वहां माइक्रो सर्जरी आई.वी.एफ.से 10 गुना महंगी है , वहां आई.वी.एफ. सस्ता है |

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फरवरी 98 में मुंबई अस्पताल में एक अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी हुई थी | जिसका विषय था, फैलोपियन नलिया वहां कनाडा के डॉक्टर गोमेल ने कहा था , कि भारत में तो सर्वप्रथम माइक्रो सर्जरी भी करानी चाहिए।  जब माइक्रो सर्जरी असफल हो जाए, तभी आई.वी.एफ.के बारे में सोचना चाहिए।  

समझदारी की बात तो यह है, कि पैसा बर्बाद करने की जगह बच्चा गोद ले लें, पर अगर पैसे की अधिकतम कि नहीं है | तो पहले माइक्रो सर्जरी करानी चाहिए।  माइक्रो सर्जरी के असफलता के पश्चात ही आई.वी.एफ.का सहारा लेना चाहिए।  |||

 

 

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