उपसर्ग की परिभाषा
हम वाक्य बनाते समय विभिन्न शब्दों का प्रयोग वाक्य में करते हैं। लड़का, घोड़ा, कुर्सी, मेज़, किताब, कलम आदि हिंदी के शब्द
हैं। शब्दों की रचना ध्वनियों के संयोग से होती है। शब्द की परिभाषा देते समय निम्नलिखित दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए।
(i) शब्द भाषा की स्वतंत्र इकाई है अर्थात् शब्दों का प्रयोग भाषा में स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है। मेज़, कुर्सी, कलम,
घोड़ा, घुड़सवार, ईमानदार, सुंदर, सुंदरता, असुंदर सभी हिंदी के शब्द हैं। स्वतंत्र होने के कारण ही इनको कोश में स्थान दिया जाता
है और शब्दों के अर्थ आप कोश से देख सकते हैं।
(ii) शब्द भाषा की सार्थक इकाई है। केवल अर्थवान या सार्थक इकाइयाँ ही शब्द कहलाती हैं। कलम तथा कमल तो
हिंदी के शब्द हैं, क्योंकि ये दोनों सार्थक हैं पर मकल/लकम शब्द नहीं हैं भले ही उन्हीं ध्वनियों से बने हैं।
हर भाषा में असीमित शब्द होते हैं, जो किसी-न-किसी भाव या विचार को व्यक्त करते हैं। हर भाषा इन शब्दों का भंडार
होती है लेकिन ये सभी शब्द एक ही प्रकार के नहीं होते। कुछ शब्द वस्तुओं, व्यक्तियों या स्थानों आदि के नाम बताने वाले होते
हैं जैसे-किताब, कुर्सी, दिल्ली, आगरा, शीला, घोड़ा, बच्चा आदि (संज्ञा शब्द) कुछ क्रियाओं-घटनाओं को व्यक्त करते हैं
जैसे-करना, लिखना, पढ़ना, सोना (क्रिया शब्द ) कुछ शब्द दूसरे शब्दों (संज्ञा या क्रिया) की विशेषता बताते हैं
जैसे-अच्छा, बुरा, छोटा, बड़ा (विशेषण) धीरे-धीरे, तेज़ी से, कल, आज (क्रियाविशेषण) आदि।
शब्द-निर्माण की प्रक्रिया तीन प्रकार से हो सकती है।
1. उपसर्गों के द्वारा जैसे- अन् + आदर
2. प्रत्ययों के द्वारा जैसे-सुंदर + ता
3. समास प्रक्रिया द्वारा जैसे- स्नान + गृह
1. उपसर्ग क्या है
उपसर्ग भाषा के वे सार्थक लघुतम खंड हैं, जो शब्द के आरंभ में लगकर नए-नए शब्दों का निर्माण करते हैं।
जैसे :-
- अन् + आदर = अनादर
- दुर + दिन = दुर्दिन
- बे+ ईमान = बेईमान
- वि + नाश = विनाश
- सु + योग = सुयोग
- प्र + हार = प्रहार
हिंदी में तीन प्रकार के शब्द मिलते हैं
तत्सम, तद्भव तथा अन्य भाषाओं से आगत विदेशी शब्द। इन तीनों कोटियों के शब्दों में मूल शब्द भी हैं जैसे-कर्म (तत्सम), काम (तद्भव) तथा ईमान, रेल (विदेशी) तथा यौगिक या व्युत्पन्न शब्द भी जो मूल शब्दों में उपसर्ग या प्रत्यय जोड़कर बनाए जाते हैं। इस दृष्टि से हिंदी में तीनों ही प्रकार के उपसर्ग प्राप्त होते हैं।
1. तत्सम उपसर्ग-तत्सम उपसर्ग वे उपसर्ग हैं, जो संस्कृत से हिंदी में आ गए हैं। संस्कृत में बाईस उपसर्ग हैं। इन उपसर्गों
से बने अनेक शब्द हमें हिंदी में मिलते हैं। कुछ शब्दों के उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं
उपसर्ग | अर्थ | उदाहरण |
अति | अधिक | अत्यंत, अत्याचार, अतिरिक्त, अतिक्रमण, अतिशय, अत्युत्तम, अत्यधिक। |
उप | निकट, छोटा, सादृश्य | उपवन, उपकार, उपस्थित, उपदेश, उपग्रह, उपमंत्री, उपचार, उपसंहार, उपनाम, उपसर्ग, |
उछ् (उत्) | ऊपर, श्रेष्ठ | उत्थान, उद्गम, उन्नति, उद्योग, उच्चारण, उल्लंघन, उद्देश्य, उत्तम, उद्घाटन, उत्कर्ष। |
आ | तक, समेत | आहार, आक्रमण, आजीवन, आजन्म, आकर्षण, आगमन, आमरण, आदान, आरक्षण। |
अव | बुरा, हीन, उप | अवसान, अवसर, अवकाश, अवनति, अवगुण, अवशेष, अवतरण, अवतार, अवज्ञा |
अभि | सामने, ओर | अभिनय, अभिमुख, अभिज्ञान, अभिमान, अभ्यास, अभियोग, अभिनव, अभिलाषा, अभिशाप, अभ्यागत, अभियान। |
अप | बुरा, हीन | अपयश, अपमान, अपव्यय, अपशब्द, अपकार, अपहरण, अपवाद, अपशकुन, अपकीर्ति। |
अनु | पीछे, समान, | अनुभव, अनुभूति, अनुकरण, अनुरोध, अनुशासन, अनुवाद, अनुरूप, अनुसार, अनुकंपा, |
अधि | ऊपर , श्रेष्ट , बाद में आने वाला | अधिकार, अधिनायक, अधिकरण, अध्यादेश, अध्यक्ष, अधिशुल्क, अध्ययन, अधिपति, अनुराग, अनुकूल, अनुगामी, अनुचर, अनुमान, अनुज। |
दुस/दुर | कठिन, बुरा | दुस्साहस, दुष्कर, दुस्साध्य, दुर्गति, दुर्भाग्य, दुर्बल, दुष्कर्म, दुर्लभ, दुर्गुण, दुर्दशा, दुर्घटना। |
नि | नीचे, निषेध | नियुक्त, निबंध, निवास, निषेध, नियम, निपात, निरोध, निरूपण, निवारण। |
परा | विपरीत, नाश | पराजय, पराभव, पराक्रम, परामर्श, पराधीन, पराभूत, परास्त। |
परि | चारों ओर परिचय | परिणाम, परीक्षा, परिवर्तन, परिक्रमा, परिचालक, परिष्कार, पर्यटन, परिधि, परिवार, |
प्र | अधिक, आगे | प्रसिद्धि, प्रयत्न, प्रबल, प्रस्ताव, प्राध्यापक, प्राचार्य, प्रहार, प्रताप, प्रदर्शनी, प्रयोग, प्रलय, प्रकार, प्रसार, प्रगति, प्रचार, प्रस्थान, प्रेरणा, प्रक्रिया, प्रवाह, प्रमाण, प्रभाव। |
सम् (सं) | पूर्णता, साथ, अच्छा | सम्मान, सम्मेलन, संशोधन, संयोग, संसर्ग, संशय, संपत्ति, संभव, संग्राम, संपूर्ण, संयम, संबोधन, सम्मति, संगम, संकल्प, सम्मुख, संतोष, संगीत, संबंध, संवाद, संवेदना, समुचित। |
वि | विशिष्ट, भिन्न | वियोग, विनाश, विदेश, विकार, विवाद, विशिष्ट, विरोध, विकल, विशुद्ध, विभाग, विराम, विपक्ष, विनय, विजय, विज्ञान, विमुख, विख्यात, विज्ञ । |
प्रति | विरुद्ध सामने | प्रतिध्वनि, प्रतिकूल, प्रतिनिधि, प्रत्यक्ष, प्रतिवादी, प्रतिदिन, प्रतिकार, प्रतिहिंसा, प्रतिष्ठा, प्रतिरूप, प्रतिरोध। |
सु | अच्छा | सुगम, सुबोध, सुलभ, सुशिक्षित, सुजन, स्वच्छ, सुपुत्र, सुदूर, स्वागत, सुकर्म, सुधार, सुकर। |
निस्/निर | रहित, नहीं | निष्काम, निस्संदेह, निस्तेज, निश्चय, निश्छल, निर्जन, निर्दोष, निर्दय, निर्मल, निर्वाह , निर्जीव, उपकृत, उपसचिव, उपनगर। |
संस्कृत में कुछ शब्द या शब्दांश जो प्रायः समास रचना के पहले भाग में आते थे, इतने अधिक प्रचलित हो गए कि उनका
प्रयोग हिंदी में उपसर्गों की भाँति होने लगा है जैसे-
उपसर्ग | अर्थ | उदाहरण |
अ | निषेध | अज्ञान, अभाव, अहिंसा, असुंदर, अधर्म, अकाल, अनुचित, अनेक, अनादि, असाध्य। |
कु | बुरा | कुकर्म, कुयोग, कुपुत्र, कुरूप, कुपात्र, कुमति, कुख्यात, कुकृत्य। |
सु | अच्छा | सुपुत्र, सुपात्र, सुकर्म, सुफल, सुमति । |
सत | अच्छा | सत्पुरुष, सत्कर्म, सद्गति, सदाचार, सज्जन, सत्संग, सद्भावना। |
स /सा | साथ सहित | सादर, साग्रह, सायास |
पुनर् पुनः | फिर | पुनर्जन्म, पुनर्विवाह, पुनर्कथन, पुनरुत्थान, पुनरुक्ति, पुनरुद्धार, पुनर्निर्माण, पुनर्जागरण। |
अध् | नीच | अधोपतन, अधोगति, अधोमुखी, अधःस्थल। |
अंतर/अंतः | अंदर | अंतर्राष्ट्रीय, अंतर्देशीय, अंतर्मुखी, अंतर्जातीय, अंतपुर, अंतरात्मा, अंतकरण, अंतर्धान। |
बहिस्/बाहिर | बाहर | बहिर्मुखी, बहिष्कार, बहिर्गमन, बहिरंग। |
स्व | अपना | स्वयंसेवक, स्वयंवर, स्वयंचालित, स्वयंपाठी। |
स्वयं | अपना | स्वचालित, स्वदेश, स्वराज्य, स्वतंत्र, स्वतेज, स्वजन, स्वावलंबन। |
पुरा | पुराना, पहला | पुरातत्व, पुरातन, पुरावृत्त। |
प्राग | पुराना | प्रागैतिहासिक, प्राक्कथन, प्राग्वैदिक। |
चिर | बहुत देर | चिरस्थायी, चिरजीवी, चिरकाल, चिरकुमार, चिरायु, चिरपरिचित। |
सह | साथ | सहपाठी, सहमति, सहकारी, सहोदर, सहगान, सहचर, सहयोग। |
सम | बराबर | समकोण, समकालीन, समकालिक। |
2. तद्भव उपसर्ग- तद्भव उपसर्ग मूलतः संस्कृत के (तत्सम) उपसर्गों से ही विकसित हुए हैं। इन्हीं को हिंदी उपसर्ग भी कहा
गया है। कुछ प्रमुख तद्भव उपसर्ग इस प्रकार हैं
उपसर्ग | अर्थ | उदाहरण |
अ/अन | अभाव, निषेध | अनपढ़, अनजान, अनहोनी, अनबोल, अछूत, अथाह, अनबन, अचेत, अनमोल। |
उन | कम | उनचास, उनसठ, उनहत्तर, उनतालीस। |
औ | हीन | औगुन, औघट, औतार। |
क/कु | बुरा | कपूत, कुचाल, कुढंग, कुसंगति। |
नि | रहित | संस्कृत निर् से विकसित हुआ है तथा रहित के अर्थ में प्रयुक्त होता है जैसे-निहत्था, निकम्मा, निडर। |
पर | दूसरी पीढ़ी | परदादा, परपोता, परनाना। |
सु | अच्छा | अच्छा सपूत, सुडौल, सुजान, सुघड़। |
अधः | आधा | अधजला, अधपका, अधमरा, अधकचरा। |
दू | बुरा, हीन | दुबला, दुलारा, दुधारू, दुसाध्य। |
बिन | बिना | बिनब्याही, बिनजाने, बिनखाए, बिनमाँगे। |
भर | पूरा | भरपूर, भरमार, भरसक, भरपेट। |
चौ | चार | चौपाई, चौपाया, चौराहा, चौकन्ना, चौमासा। |
3. आगत (विदेशी) उपसर्ग- जो उपसर्ग विदेशी भाषाओं से हिंदी में आ गए
उपसर्ग | अर्थ | उदाहरण |
ब | के साथ, से | बखूबी, बदौलत, बगैर, बनाम। |
बा | साथ, से | बाकायदा, बाअदब, बावजूद। |
बे | बिना | बेअदब, बेरहम, बेगुनाह, बेचैन, बेईमान, बेवफ़ा, बेखटके, बेघर, बेहोश, बेसमझ। |
बद | बुरा | बदनाम, बदमाश, बदतमीज, बदचलन, बदकिस्मत, बदबू, बदसूरत, बदहज़मी। |
खुश | अच्छा | खुशबू, खुशकिस्मत, खुशहाल, खुशनसीब, खुशमिज़ाज, खुशदिल। |
ना | अभाव | नालायक, नाकारा, नाराज़, नासमझ, नाउम्मीद, नाबालिग, नापसंद, नाचीज़। |
गैर | भिन्न | गैरहाज़िर, गैरकानूनी, गैरसरकारी, गैरज़रूरी, गैरजिम्मेदार। |
ला | नहीं, अभाव | लाइलाज, लाजवाब, लापरवाह, लावारिस, लापता। |
हम | आपस में, साथ | हमराज़, हमउम्र, हमदर्द, हमदम, हमशक्ल, हमराह, हमजोली, हमवतन, हमनाम। |
दर | में | दरगुज़र, दरअसल, दरमियान, दरकार। |
सर | मुख्य | सरपंच, सरताज। |
कम | थोड़ा | कम उम्र, कमज़ोर, कमअक्ल, कमबख्त, कमसमझ। |
हर | प्रत्येक | हरवक्त, हरहाल, हरदिल, हररोज़, हरघड़ी, हरतरफ, हरएक। |
उपसर्गों के आधार पर शब्द-निर्माण के कुछ प्रमुख बिंदु
उपसर्ग लगाकर शब्द-निर्माण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
• प्राय जिस प्रकार का शब्द है, उसी प्रकार का उपसर्ग उस शब्द के साथ लगता है अर्थात् तत्सम शब्द के साथ तत्सम
उपसर्ग, तद्भव शब्द के साथ तद्भव उपसर्ग तथा विदेशी शब्द के साथ विदेशी उपसर्ग जैसे-सु तत्सम उपसर्ग है, यह
तत्सम शब्द पुत्र के साथ लगकर सुपुत्र शब्द बनाता है पर पूत (तद्भव) के साथ सुपूत नहीं।
• कभी-कभी जब कुछ उपसर्ग भाषा में बहुप्रचलित हो जाते हैं या कभी-कभी साहित्यकार नए-नए प्रयोग करने लगते हैं,
तब भिन्न स्रोत के उपसर्ग, भिन्न स्रोत के शब्दों के साथ भी प्रयुक्त हो जाते हैं जैसे-बेजोड़, अथाह आदि।
• संस्कृत के निषेधवाची अन् उपसर्ग का रूप हिंदी में अन के रूप में परिवर्तित हो जाता है जैसे-अनदेखा, अनजाना,
अनकहा, अनसुनी आदि।
• तत्सम उपसर्गों में कुछ उपसर्ग ऐसे भी हैं जिनके एक से अधिक रूप भी मिलते हैं जैसे-दुर्, दुस्, दुष्, दुश् आदि जो
निम्नलिखित विवरण के अनुसार ही लगते हैं।
- दूर – दुर्लभ, दुर्गुण, दुर्बोध (सघोष ध्वनियों से बनने वाले शब्दों में)
- दुस् – दुस्साहस, दुस्साध्य, दुस्तर (स, त अघोष ध्वनियों के पूर्व)
- दुष् – दुष्कर, दुष्कर्म, दुष्प्राप्य (क, प आदि अघोष ध्वनियों के पूर्व)
- दुश् – दुश्चरित्र, दुश्चिता (च आदि ध्वनियों के पूर्व)
इसी प्रकार निर्, निस्, निष्, निश् रूपों के प्रयोग भी मिलते हैं।
• एक उपसर्ग एक से अधिक अर्थों में भी प्रयुक्त हो सकता है।
• उपसर्गों से जो नए-नए शब्द बनते हैं उनमें कभी तो नए शब्द की व्याकरणिक कोटि वही रहती है, जो मूल शब्द की है और कभी उसकी व्याकरणिक कोटि बदल जाती है जैसे-
व्याकरणिक कोटि में परिवर्तन
- अ + थाह = अथाह (संज्ञा) (विशेषण)
- अ + पढ़ = अनपढ़ (क्रिया) (विशेषण)
- अन + बन = अनबन (क्रिया) (संज्ञा)
- नि + डर = निडर (संज्ञा) (विशेषण)
व्याकरणिक कोटि में परिवर्तन नहीं
- अन + होनी → अनहोनी
- अन् + आवश्यक →
- गैर + ज़िम्मेदारी → गैरजिम्मेदारी
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