Mother Teresa in Hindi | Mother Teresa Birthday | Mother Teresa Death

Mother Teresa in Hindi | Mother Teresa Birthday | Mother Teresa Death

भारत रत्न मदर टेरेसा जन्म 26 अगस्त, 1910 देहावसान  5 सितंबर, 1997

Mother Teresa Birthday

Mother Teresa in Hindi:- स्नेह और ममता की देवी मदर टेरेसा का मूल नाम था, – एग्नेस गोवाक्सा बेजाक्सिड |  इनका जन्म युगोस्लाविया के अंतर्गत स्कपजे  शहर के अन्य नियम परिवार में 26 अगस्त 1910 ई० को हुआ था |जब यह 7 वर्ष की थी तभी उनके पिता युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे | युद्ध की विभीषिका और पिता के वियोग में मदर टेरेसा के बाल मन को बुरी तरह झकझोर कर दिया था |

     जब भी 12- 13 वर्ष की थी, तब दार्जिलिंग से हजारों मील दूर युगोस्लाविया  के स्कपजे  शहर के एक स्कूल में पढ़ा करती थी |  क्लास में शिक्षिकाओं के बीच दार्जिलिंग पहाड़ की चोटियों पर जेसुइटों पर किए जाने वाले काम की सराहना हुआ करती थी |  कोलकाता में जेसुइट पादरियों के कामकाज के किस्से चला करते थे |  उनके प्राप्त छुट्टियों में कोलकाता के बातें लिखी होती थी , यह  सब कक्षा में पढ़ कर सुनाया जाता था | टेरेसा  के किशोर मन में तभी से कोलकाता के चित्र करने लगे थे |




मदर टेरेसा का छात्र जीवन

    अपने छात्र जीवन में मदर टेरेसा ने जब   ‘लेडी विद द लैंप ‘  नामक पाठ पढ़ा , तो उन पर  ‘ फ्लोरेंस नाइटेंगल ‘  की प्रेरणादायक जीवनी का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा  | “फ्लोरेंस नाइटिंगेल”  दीन दुखियों और अपाहिजों की सेवा करते हुए अपना जीवन अर्पण कर दिया था |  मदर टेरेसा ने भी तत्क्षण मन ही मन पक्का इरादा कर लिया था | कि वह आगे चलकर फ्लोरेंस नाइटिंगेल की तरह असहायों दीन दुखियों की सेवा करेंगी |

          25 सितंबर 1928 को मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने  “सिस्टर्स ऑफ  लोरेटो”  को ज्वाइन किया , और आयरलैंड चली गई  | कुछ ही माह बाद 23 मई 1929 को उन्होंने लोरेटो नेविशिएट  मैं प्रवेश किया | 25 मई 1921 को अपने गुरु सेंट टेरेसा ऑफ लीसेक्स के नाम पर उन्होंने अपने कार्य की शुरुआत  “सिस्टर  टेरेसा ”  नाम से की |  बाद में 25 मई 1937 को उन्होंने अपना नाम  “मदर टेरेसा”  स्वीकार किया |




मदर टेरेसा को प्रेरणा कहा से मिली

      शिक्षण के समय उन्हें  “डॉटर्स ऑफ सेंट ऐन” का भार मिला | सेंट मेरी स्कूल के बाद मोतीझील बस्ती थी  | पहले पहल मदर टेरेसा को बस यही दरिद्रता के साक्षात दर्शन किए थे |

    10 सितंबर सन 1946 ई० की बात है, वह जब रेलगाड़ी में यात्रा करके कोलकाता में दार्जिलिंग जा रही थी, तब उन्होंने रेल की खिड़की से देखा कि असहाय  स्त्री पुरुष और बच्चों के पास पहनने के लिए कपड़े खाने के लिए भोजन सोने के लिए बिस्तर और रहने के लिए मकान तक नहीं है |

उनका मन कराह उठा | एक प्रेरणा जाग उठी | और उनके  जीवन ने नया मोड़ ले लिया  | बस उसी दिन से लोरेटो के वैभवशाली वातावरण से बाहर निकलकर फुटपाथ पर पड़े, असहाय व गरीबों की सेवा करने का मन बना लिया |

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    जितने ईसाई मिशनरी नर्स अथवा समाज सेविकाओं के रूप में भारत अथवा किसी भी अन्य देश में आते हैं, उन्हें अपने संघ के कुछ नियमों का पालन करना होता है | उदाहरण के लिए वे किसी बस अथवा प्राइवेट टैक्सी आदि से सफर नहीं कर सकते, उन्हें संघ के एक निश्चित स्थान पर ही रहना पड़ता है |  और वहां के अधिकारियों के आदेश के अनुरूप सेवा कार्य में भाग लेना पड़ता है |

एग्नेश अन्य लड़कियों के साथ लोरेटो संघ की कार में आती जाती थी | और संघ के नियमों के अनुरूप शिक्षा आदि का कार्य करना पड़ता था |  उन्होंने एक दिन यह बात यहां के फादर से कही, फादर ने बाद में यह समस्या कोलकाता के बिशप के पास पहुंचाई |  बिशप ने उनसे कहा कि इसकी आज्ञा के लिए रोम में पॉप को पत्र लिखना होगा | उन्होंने एक दिन अपने मन की बात वहां के फादर से कहीं फादर ने बाद में यह समस्या कोलकाता के बिशप के पास पहुंचा। युवक ने उससे कहा कि इसके आगे के लिए रोम पॉप को पत्र लिखना होगा | सन् 1948 ई० में उन्हें पॉप की आज्ञा मिल  गई | कि वह कोलकाता की बस्तियों में जाकर सेवा कार्य शुरू कर दें |

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    गरीबों के सेवा कार्य में जुटने के पूर्व मदर टेरेसा ने नरसिंह का प्रशिक्षण लेना उचित समझा |  प्रशिक्षण के लिए वह पटना गई | नर्स का प्रशिक्षण देने से पूर्व उन्होंने अपनी मन की वेशभूषा त्याग दी, और नीली किनारे की मोटी खद्दर की साड़ी पहन ली | सन 1948 ई०  में ही मदर टेरेसा ने भारत की नागरिकता भी अपना ली |

    अब मदर टेरेसा कोलकाता की सड़कों पर निकल  आई थी, दीन दुखियों और असहाय की मदद के निमित्त उसके पास केवल ₹5 थे |  सियालदह के पास एक पुराने मकान में आस्ट्रेलिया के कुछ अनाथ शिशु को लेकर यहीं से प्यार और ममता की नई दुनिया की शुरुआत कर दी  | कमरे में जगह कम थी , जेब में पैसे नहीं थे, कभी कभी भूखे पेट ही रहना पड़ता था ,परंतु मदर टेरेसा निराश नहीं हुई, उनके हृदय में तो प्यार और ममता का सागर हिलोरे ले रहा था |




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            21 दिसंबर 1948 ई० को उन्हें मोतीझील बस्ती में पहला स्कूल खोलने की अनुमति मिली  | दूसरे वर्ष मौलाली के निकट माइकल गोमेज के घर में रहने को जगह मिल गई |  टेरेसा के पास साधन सामग्री के नाम पर केवल एक लकड़ी का संदूक और पैकिंग केस था |  इसी को  मदर टेरेसा ने लिखने पढ़ने की डेस्क बनाया |  ब्लैक बोर्ड के अभाव में मदर टेरेसा ने जमीन पर ही एक पतली डंडी के अक्षर लिखने की शुरुआत की ,जहां चाह होती है वहां राह मिल ही जाती है  | दूसरे दिन एक सहृदय व्यक्ति कुर्सी और मेज दान में दे दिए गए |




मदर को पॉप ने स्वीकार कर लिया

    सन् 1950 ई० में मदर को पॉप ने स्वीकार कर लिया  | 7 अक्टूबर 1950 को ” मिशनरी ऑफ चैरिटी सिस्टर्स ” का दीपक जगमगा उठा  | शुरू में मां दीन दुखियों  असहाय और बेघर लोगों के सड़क पर ही सेवा क्या करती थी, उन्हें कहीं ले जाने तक पाने के लिए उनके पास जगह ही कहां थी  | एक दिन बरसात में सड़क पर दम तोड़ते एक आदमी को देखकर मैं बेचैन हो उठी |  उसी क्षण उन्होंने निश्चय कर लिया था, कि दीन दुखियों के लिए अवश्य ही आश्रम बनाना होगा  |

 

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2 महीने में स्थान भी मिल गया | कालीघाट के काली मंदिर के पीछे एक पुरानी धर्मशाला कोलकाता के नगरसभा ने मां के हाथों में सौंप दी |  बाहर एक साइन बोर्ड लगा दिया गया, उस पर अंग्रेजी और बंगला में लिखा था, कोलकाता और प्रतिष्ठान  निर्मल ह्रदय , मुमूर्ष, निराश्रयों का आशय स्थान | ‘ साइन बोर्ड को देखते ही संकीर्ण विचारधारा के लोगों ने विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया  | बात गाली धरना और मारपीट तक पहुंच गई |  मां आई और उन्होंने बड़े धीर और स्थिर चित्त से प्रार्थना की ,  “कि मुझे मारना चाहे मार ले पर जो मृत्यु पथ  के यात्री हैं कुछ घड़ी उन्हें शांति से जी लेने दो”  उनकी बाटे सुनकर सब लोग शांत होकर लौट गए।




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     कुछ दिनों बाद उस मंदिर के एक पुजारी को टीवी जैसे रोग ने दबोच लिया, जो उन दिनों असाध्य था | मदर टेरेसा अपनी संतान की तरह ही उसकी देखरेख की और पुजारी को मौत के मुंह से बचा लिया | उस पुजारी ने मां का एहसान जताते हुए 35 वर्षों से मां काली की पूजा अर्चना करता आ रहा हूं , आज तुमने ही मां काली के साक्षात दर्शन कर धन्य हो गया|

 

फिर क्या था, सभी पुजारी मां के भक्त हो गए | मदर टेरेसा उनके लिए साक्षात काली मां की प्रतिमा बन गई |  आज काली घाट पर स्थित एक निर्मल ह्रदय आश्रय स्थल ही नहीं वरन् भारत और विश्व के तीन दर्जन से भी अधिक निर्मल हृदय संस्थान असहाय की सेवा में लगे हुए हैं |  70 से भी अधिक कोठियों के लिए आश्रय स्थल है, जहां उनका इलाज कर करने के साथ-साथ उन्हें सफल और सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा भी दी जाती है, साथ ही टीवी क्लीनिक, कई चिकित्सालय , कर्मशियाल स्कूल और तकनीकी विद्यालय, हैं जहां बेरोजगारों को  रोजी  के काबिल बनाया जाता है | स्विट्जरलैंड ,ऑस्ट्रिया, बेनेजुएला,  फ्रांस, अमेरिका, कनाडा ,इटली, आस्ट्रेलिया, हालैंड, डेनमार्क, इंग्लैंड  न्यूजीलैंड आदि ,देशों में मिशनरीज ऑफ चैरिटीज के अनेक दीप जलाकर मां की यशोगाथा कह रहे हैं |




उन्हें लगभग 124 सम्मानो से पुरस्कृत किया

    विश्व भर में मदर टेरेसा का नाम है | अपने जीवन में उन्हें लगभग 124 सम्मानो से पुरस्कृत किया जा चुका था | उनको सम्मानित करने का सिलसिला हमेशा अंतहीन रहा , उन्हें अगस्त सन् 1962 ई० में “पद्मश्री” से सम्मानित किया गया |  तथा उस समय उनके द्वारा पुरस्कार प्राप्त करने के क्षण इतने भाव पूर्ण हो गए थे, कि नीली किनारी वाली खद्दर की साड़ी पहनकर जब वे मंच पर पहुंची , तब उनके सादगी पूर्ण जीवन और दूध से निर्मल व्यक्तित्व से तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की आंखें छलछला आई थी |

विश्व शांति के “नोबेल पुरस्कार”  से सम्मानित – (Mother Teresa in Hindi)

 

    1 वर्ष बाद “रैनन मैग्सेसे अवार्ड”  जनवरी सन् 1971 ई० में वेटिकन सिटी में पॉप जॉन पॉल 13 वें का “जॉन पीस प्राइज”  उसी वर्ष दो अन्य पुरस्कार “गुड से में रिटर्न अवार्ड ” और जॉन एफ . केनेडी इंटरनेशनल अवार्ड “ से अलंकृत किया गया | और उसी वर्ष कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका ने “डॉक्टर ऑफ ह्यूमन लैटराल “ की  उपाधि प्रदान की |  अगले वर्ष नवंबर 1972 ई० में जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार मिला |  सन् 1979 ई० में उन्हें विश्व शांति के “नोबेल पुरस्कार”  से सम्मानित किया गया |




     एक अत्यंत साधारण लड़की आज मदर टेरेसा (Mother Teresa in Hindi) के रूप में करुणा सेवा और ममता के साक्षात देवी बनकर अपने अनगिनत निर्मल हृदय आश्रय स्थलों के माध्यम से  विश्व को अपने विशाल करुणा के आंचल की स्नेह और शीतल छाया दे रही है |  मदर टेरेसा ने कोलकाता के लारेटो कान्वेंट में काम करते हुए कोलकाता की गरीबी के अनेक उदाहरण  देखें, तो उनके मन में आया कि क्यों ना वे अपनी एक अलग संस्था बनाकर असहाय और रोगी लोगों की सेवा करें |

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     कोलकाता के लारेटो संघ में कार्य करते हुए उन्हें 2 वर्ष हो चुके थे  और अब उनका नाम एग्नेस के बजाय टेरेसा  पड़ चुका था | इसके बाद फिर कुछ समय आराम करने के लिए दार्जिलिंग चली गई | परंतु रास्ते भर वह कोलकाता के दीन दुखियों के प्रति द्रवित होकर उनकी सेवा से संबंधित कार्यों के विषय में ही सोचती रही  | आज विश्व का कहना था, कि वह सेवा कार्य तो भले ही करें , परंतु उनका रहन-सहन और कपड़े आदि संघ के नियमों के अनुरूप ही होने चाहिए |




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परंतु मदर टेरेसा (Mother Teresa in Hindi) को यह मंजूर ना था, अगले दिन वह बाजार गई और अपने पहनने के लिए एक सफेद धोती, जिसमें किनारे पर तीन नीली धारियां थी, खरीद लाई  | उन्होंने संघ के वस्त्रों का परित्याग कर दिया, और वह धोती पहन कर जब विशप से मुलाकात करने गई, तो विशप उन्हें पहचान भी ना सके |  उस समय भी उन्हें समझाया गया, कि वह सेवा का कार्य संघ के नियमों का पालन करते हुए ही कर सकती है, परंतु मदर टेरेसा ने निश्चय कर लिया था |  कि वह दुखियों दरिद्र और कष्ट से पीड़ित लोगों की सेवा उन्हीं के बीच रहकर करेंगी |

 

अब कठिनाई यही थी , उन्होंने अभी तक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया था, उपचार और नरसिंह आदि का उन्हें अनुभव ना था|  इसीलिए फादर ने उन्हें पटना में अमेरिका मेडिकल मिशन मेरी सिस्टर नामक संस्था में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया |  उन्होंने दिन रात वहां काम करके 3 महीने में ही सामान्यतया सभी प्रकार के रोगों का उपचार की ट्रेनिंग ले ली |  जबकि पूर्ण जानकारी के लिए बहुत अधिक समय लगता है, उसके बाद में वह फिर कोलकाता लौट आई |

 

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     कोलकाता में उनके सामने अब समस्या यह थी, कि कहीं कोई स्थान उन्हें अपने कार्य के लिए प्राप्त हो | आखिर उन्हें एक झोपड़ी मिली और उन्होंने उसी में कार्य प्रारंभ कर दिया |  पहले पहल वह कुछ निर्धन बच्चों को शिक्षा देने लगी |  धीरे-धीरे उनकी सेवा का क्षेत्र व्यापक होता गया, उन्हें एक मकान काली के मंदिर के पास मिला | वह मंदिर की धर्मशाला का एक कमरा ही था | इसमें वह कुछ रोगियों का उपचार किया करती थी |

 

प्रारंभ में लोगों ने इनका बहुत विरोध किया और वे नगर निगम के अधिकारियों के पास भी पहुंचे , ताकि इस ईसाई महिला को वहां से निकाल कर लोगों को धर्म भ्रष्ट होने से बचाया जाए, परंतु जब निगम का अधिकारी वहां पहुंचा तो उसने देखा, कि वह तो निर्धन गरीब बीमार लोगों की सेवा में लगी हुई हैं |  किसी के घाव साफ करने में, किसी की पट्टी बांधने में, और किसी को स्वस्थ हो जाने की सांत्वना देने में काम में लगी है | अपने हाथ से किसी रोगी को कुछ खिला रही हैं | ऐसी स्थिति में उन्हें निकालना असंभव था |  उस अधिकारी ने उन्हें निकालने वाली भीड़ से कहा कि यदि आप माताएं और पत्नियां उसी प्रकार का कार्य करें, तो क्या मैं उन्हें यहां से निकाल सकता हूं |

 

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    इसी प्रकार एक बार काली के मंदिर का पुजारी बहुत बिमार  हुआ, वह मदर टेरेसा के पास जाने में झिझक रहा था |  क्योंकि उसने धर्मशाला के कमरे से उन्हें निकालने के लिए बहुत हो हल्ला मचाया था |  जब मदर टेरेसा (Mother Teresa in Hindi) को पता चला तो स्वयं उन्होंने उसकी सेवा कर उसे स्वस्थ कर दिया |  उसे क्या मालूम था, कि ऐसा में विश्वास करने वाली महिला सेवा कार्य में उससे भी अधिक विश्वास करती है |  उसी से प्रेरणा लेकर वह इस सेवा कार्य में लगी है |  पुजारी के मुख से अनायास की निकल पड़ा, कि मैंने काली की सेवा में इतने वर्ष रहकर भी मां से साक्षात दर्शन आज किए हैं |

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    मदर टेरेसा ने सेवा कार्य के लिए अपनी संस्था का नाम  “मिशनरी ऑफ चैरिटी”  रखा |  उनके साथ काम करने वाली युवतियों के लिए वह आवश्यक रखा गया |  कि वह उम्र भर अविवाहित रहेंगी |  आज कोलकाता के ‘निर्मल हृदय’ तथा अन्य अनेक आश्रमों सेवा संस्थानों का जाल भारत में ही नहीं संसार के अनेक नगरों में भी फैला हुआ है |

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      मदर टेरेसा ने राजनीतिक अथवा औद्योगिक रूप से लोगों की समस्या और कष्ट दूर करने के बजाय उनके शारीरिक और मानसिक कष्टों को दूर करने का प्रथम कर्तव्य समझा | उन्होंने अनाथ बच्चों और विधवाओं तथा रोगियों के लिए अनेक संस्थानों तथा केंद्र खोलें |  पहले-  पहल जहाँ  जहाँ उनके मन में केवल कोलकाता के कार्य करने की इच्छा थी |  वह आज बढ़कर सारे विश्व में फैल चुकी है | नेपाल, पाकिस्तान, मलाया, युगोस्लाविया ,माल्टा ,इंग्लैंड, और दक्षिण अमेरिका, में भी मदर टेरेसा के सेवा केंद्र चल रहे हैं |




मदर टेरेसा सम्मान- (Mother Teresa in Hindi)

    माँ मदर टेरेसा (Mother Teresa in Hindi) की निस्वार्थ सेवा भाव से प्रभावित होकर अनेक सरकारों ने उन्हें सम्मान के साथ-साथ धन से भी सहयोग किया | इसके अतिरिक्त मदर टेरेसा को कार्य में सुविधा देने के लिए भारत सरकार ने रेल और युवा सेवा के निशुल्क यात्रा करने का भी प्रबंध किया | मदर टेरेसा (Mother Teresa in Hindi) को जितने पुरस्कार धनराशि अथवा जो भी सहायता प्राप्त होती थी  | वह सब दीन दुखियों की सेवा कार्य के लिए भी उपयोग में लाई जाती थी | उसमें से निजी उपयोग के लिए कुछ भी नहीं रखती थी |  सचमुच सेवा धर्म बहुत कठिन कार्य है, परंतु जो मेरा अभिमान होकर इस कार्य में जुट जाता है | संसार उसके लिए पलके बिछा देता है, विश्व भर में सम्मान प्राप्त मदर टेरेसा ने कोलकाता में वर्षों पूर्व नीले किनारे वाली जो सादी  सी धोती  अपनाई थी, आज भी वही  वेश इस तपस्विनी मां की पहचान बन गया है |

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    मार्च सन् 1980 में मां टेरेसा (Mother Teresa in Hindi) भारत के सर्वोच्च नागरिक अलंकरण “भारत रत्न “ से विभूषित किया  गया | 5 सितंबर 1997 को हृदयाघात के कारण  कोलकाता में उनका देहावसान हो गया | ||||




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