Benefits of Being Optimistic - आशावादी बने रहने के फायदे

Benefits of Being Optimistic – आशावादी बने रहने के फायदे

 

हमें आशा के समान साहस एवं शक्ति देने वाला दूसरा शब्द शायद ही शब्दकोश में मिल सके। जब हमारे जीवन में आशा ईश्वर के विश्वास के फल स्वरुप प्रस्फुटित होती है। तो उसका फल हमें निराश नहीं कर सकता। आशा मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। यह हमें सभी असफलताओं से बचाती है। हमारे जीवन में कभी अवसाद नहीं आने देती, और इस बात की प्रतिती  कराती  है ,कि जो ईश्वर में विश्वास करते हैं, उनकी सहायता स्वयं ईश्वर करता है। यह आशा हमें कर्तव्य पालन के लिए उकसाती  है। उन्नति के शिखर पर पहुंचने में सहायता करती है, सदा सकारात्मक सोचने को बाध्य करती है।

 

आशावादी बने रहने के फायदे – Being Optimistic

     कुछ समय पहले दो व्यक्ति प्रायः एक ही रोग से पीड़ित हुए। पहला तो दूसरे ही दिन मृत्यु को प्राप्त हो गया। किंतु दूसरा 2 सप्ताह में अच्छा हो गया। पहला रोग का आक्रमण होते ही जीवन से निराश हो गया था। जबकि दूसरे को जीने की पूरी आशा थी। उसने निराशा का यह भाव कि यह रोग उसे मार सकता है, एक क्षण के लिए भी अपने हृदय में आने नहीं दिया।

    जब जीवन किसी कार्य में प्रवृत्त होता है, तो उसे आशा की निरंतर आवश्यकता होती है। एक व्यापारी जिसे  एक बार बड़ा घाटा हुआ, और हालत ऐसी पैदा हो गई, कि यदि कोई आर्थिक रूप से उसकी सहायता ना करें, तो उसे अपना व्यापार ही बंद करना पड़े। उसके घाटे की बात सब जानते थे, फिर भी उसने साहस नहीं छोड़ा। एक परिचित साहूकार के पास गया, उसे उससे आवश्यक रुपए उधार मिल गया। फल स्वरुप कुछ ही समय में उसका व्यापार फिर से चमक उठा।

   थोड़े समय में ही उसने साहूकार का सब रुपया ब्याज सहित उतार दिया। रुपया चुकाते समय व्यापारी ने साहूकार को इस बात के लिए धन्यवाद दिया, कि उसने बिना किसी बाधा के ढेर सारा रुपया दे दिया था, उसे पता नहीं था कि साहूकार ने उसके बातों में उसकी आशा पढ़ ली थी। जो किसी भी कीमती चीज से बढ़कर होती है। वह समझ गया था, कि यह व्यापारी विश्वास और आशान्वित ढंग से कार्य करता रहेगा और निश्चित रूप से पुनः सफल होगा।




   इसमें विश्वास से पैदा हुए आशा और इस विश्वास से पैदा  हुई आशा कि जो ईश्वर करता है, वह हमारे भले के लिए ही करता है। यही आशा सशक्त एवं संजीवनी आशा होती है। इस आशा का प्रतीत आशावाद से कोई मुकाबला नहीं है। यह आशा दुनिया की सारी बुराइयों, सारी समस्याओं का मुकाबला करती है। पर कभी किसी के प्रति कटु नहीं होने देती। इस आशा की जड़ में दुनिया के हर एक प्राणी लिए प्रेम रहता हैं, निश्चय ही जो ईश्वर में विश्वास करता है, उसे कभी निराश नहीं होना पड़ता।

     आशा को दृढ़ बनाने के लिए भी आशा पैदा करनी होती हैं। गिरते हुए व्यक्ति को उठाने के लिए ऊपर देखना होता है, मनुष्य में जब एक भावना पैदा होने लगे, कि जीवन तुच्छ है, छोटा है, तब उसे कोई बड़ी चीज देखनी चाहिए। जैसे ही अवस्था में एक व्यक्ति ने हिल स्टेशन पर भ्रमण किया, और जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण ही बदल गया। उसने जीवन को महान माना और जीवन के प्रति उसकी उपेक्षा चली गई।

 

लाइफ को उलझनों में  बचाये

 

    जीवन की आध्यात्मिक उलझन को सुलझाने के लिए जीवन को ऊंचा उठाने के लिए कई बार सुंदर दृश्यवली से परिपूर्ण स्थानों में जाने सात्विक भोजन करने शुद्ध वायु में रहने और कुछ बड़ी चीजें देखने की आवश्यकता होती है। इसीलिए धर्म शास्त्रों में जगह-जगह व्रत उपवासों  का विधान है। और बद्रिकाश्रम, केदारनाथ और रामेश्वरम आदि तीर्थ स्थान समुद्र तट पर एवं शैल शिखरों पर बने हुए हैं।  इन स्थानों की यात्रा करने वाला व्यक्ति शरीर और मन दोनों के ताप को दूर करने में समर्थ होता है।

    गीता और रामायण आदि सभी धर्म ग्रंथों का पाठ मनुष्य को ऊंचा उठाने के लिए है। इस अर्थ में आग वाहन करने पर मनुष्य को लगता है। कि वह संसार के दम घोटने वाले वायुमंडल से निकलकर आत्मानुभूति के निर्मल एवं शांत वातावरण में पहुंच रहा है। सभी धर्म उपदेश में मनुष्य को बड़ा बनाने ऊँचा उठाने, जीवन देने वाला संजीवन होता है। इसको पढ़ते या सुनते रहने वाले पर कभी वह अवसाद नहीं आता जो निराशा को जन्म देता है।




आशा बांटी जा सकती हैं – Hope can be shared- Being Optimistic

 

     सकारात्मक सोच बांटी जा सकती हैं। पर यह काम वही कर सकता है, जिसके जीवन में आशा का दीप पूरे प्रकाश से जगमगाता रहता है। आशा के अग्रदूत होने का अर्थ है। लोगों को निराशा रूपी राक्षसों के हाथों पिटने से बचाना जो लोगों को निराशा को पीटना सिखाते हैं। वह बड़भागी हैं। और जीने की कला से परिचित हैं।

    आशा सकारात्मक (Being Optimistic) विचार की सूचक है, आशावान व्यक्ति का मन सफलता प्रसन्नता और सुख में जीवन का संदेश ग्रहण करता है। आशान्वित व्यक्ति में जीवन भर समस्याओं का सामना करने की शक्ति और साहस होता है। इसी से वह अपने लक्ष्य को पाने में सफलता प्राप्त करता है।

   यदि आप आशावादी हैं, तो इस बात का ध्यान रखें, कि आशा वा इच्छा उसी वस्तु अथवा कार्य की करनी चाहिए, जो युक्तियुक्त हो।  ईश्वर नियति का नियंता और सृष्टि का सृष्टा है, मनुष्य को वह वो ही वस्तु देता है, जो उसके योग्य होती है, यदि आप हर समय अपनी गरीबी भुखमरी दीन हीनता असफलता और अभावों का गुणगान करते हैं, तो इसका अभिप्राय यह हुआ कि आप निराशावादी और नास्तिक हैं।

    ईश्वर सब की आवश्यकताएं पूरी करता है। लेकिन उन अवश्यकता को पूरी करने से पूर्व  वह  उचित पात्र को परखता है। यदि आपको कोई वस्तु नहीं मिल पाई तो इसका अर्थ यह नहीं, कि इसमें ईश्वर ने आपके साथ भेदभाव किया है। बल्कि सच्चाई यह है कि उसने आपको उस वस्तु के लायक नहीं समझा।

   मनुष्य की आशाएं और आकांक्षाएं ही उसे किसी कार्य के लिए प्रेरित करती हैं। यदि यह भावनाएं आपमें जागृत नहीं होंगी, तो आप उस कार्य को कभी नहीं कर पाएंगे। जो व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है। वह परिश्रमी उत्साहित प्रफुल्लित और निरंतर प्रयत्नशील रहता है। और सफलता की सीढ़ियां चढ़ता जाता है। वह चुस्त-दुरुस्त व कार्य कुशल होता है। जिसमें महत्वाकांक्षा नहीं होती, वे ढी़ला ढ़ाला और आकर्मण्य होता है। ऐसा व्यक्ति अभाव में जीने का आदी बन जाता है। और अपने विचारों में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन लाना है। उसके लिए असंभव होता है।

   यह सच है, कि संतोष से मनुष्य को परम शक्ति प्राप्त होती है। लेकिन इसका अर्थ कदापि नहीं है, कि आप अकर्मण्य में हो जाएं। जो वस्तु आपको मिल सकती है, उसके लिए तो आपको निरंतर प्रयास करना ही चाहिए। उस वस्तु के अभाव में संतोष कर लेना अकर्मण्यता है।  वास्तव में मनुष्य की सफलता उसकी मनोदशा पर निर्भर करती है। यदि आप महत्वाकांक्षी हैं, तो आप अपनी शक्ति सामर्थ्य पर विकास करेंगे । यथार्थ के समर्थक होंगे सदा सकारात्मक विचार रखेंगे। तन मन से उत्साहित रहेंगे, सदा प्रयत्नशील रहेंगे।




सफलता और प्रसन्नता आदि इसी संसार में है, लेकिन अभागे व्यक्ति उन्हें नहीं प्राप्त कर पाते हैं।   अकर्मण्यता और निष्क्रियता मानव जीवन के लिए अभिषाप हैं। ये मनुष्य को दुखमय सागर की ओर ले जाते हैं। जो व्यक्ति जीवन की मूलभूत आवश्यक्ताओं के बिना जीवन यापन करता है, वह संतोषी नहीं अकर्मण्य है। ऐसी मनोदशा वाले व्यक्तियों को चाहिए, कि वह अपने विचारों में बदलाव लाएं आशा (Being Optimistic) का दामन पकड़ कर अपने मन में दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास पैदा करें।

 

आशा का दामन पकड़ कर अपने मन में दृढ़ इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास पैदा करें।

 

   महत्वाकांक्षा व्यक्ति के जीवन में प्राण और शक्ति का संचार करती है। और उसे क्रियाशील बनाती है। तथा संघर्ष के लिए प्रेरणा देती है। जो व्यक्ति महत्वाकांक्षी नहीं होता, निराशा से घिरा रहता है। वरना केवल अपना सर्वनाश करता है। अपितु परिवार के लिए भी कष्टकारी होता है।

   मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है, उसने मनुष्य को सर्वोत्तम शक्तियां सर्वोत्तम गुण और सर्वोत्तम सुविधाएं दी हैं। उसने मुझको पृथ्वी पर इसीलिए भेजा है, कि वह अपनी आशा (Being Optimistic), आकांक्षा और अपेक्षा के अनुसार अपना सर्वोत्तम विकास करें। जबकि प्रायः होता यह है, कि मनुष्य अपने दुर्बल विचारों के कारण अपने को निर्धन बना लेता है। ऐसे में वह अपना विकास भला कैसे कर पाएगा।

   सर्वोत्तम विकास के लिए मनुष्य को अपनी मनोदशा में परिवर्तन लाना होगा। निराशा से बचना होगा तथा आत्मवंचना से वार करना होगा। इच्छाशक्ति मनुष्य को कार्य करने की प्रेरणा देती है। यदि इच्छा शक्ति ने मनुष्य को निर्धनता से लड़ने के लिए प्रेरित करती है। तो वह उससे निबटने में अवश्य सफल होगा। लेकिन जो महत्वाकांक्षी नहीं होते वह निराशा को नियति मान लेते हैं। ऐसा करके वे अपनी इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास दोनों को आघात पहुंचाते हैं। इसीलिए हमें स्वयं की चाहिए, कि हम आशावादी बने स्वयं में एक संजीवनी आशा को जागृत करें। निराशावादी की मनोवृत्ति को छोड़ें। फिर निर्धनता का निधन होने में देर नहीं लगेगी।

     ईश्वर उनकी सहायता करता है, जो अपनी सहायता आप करते हैं, जो व्यक्ति इस बात को सदा ध्यान में रखता है, वह अनेक मुसीबतों से पार हो जाता है। मैं एक ऐसे व्यवसाई को जानता हूं। जो एक समय काफी मुश्किलों का सामना कर रहा था। हर समय उसके मस्तिष्क में एक विचार कौंधता रहता था। कि क्या वह अपने व्यवसाय को बचा सकेगा ?  दुर्भाग्यपूर्ण, परिस्थितियां, बाजार की बुरी दशा नियामक  नीतियों और देश की अर्थव्यवस्था की बदहाली  ने उसे बुरी तरह प्रभावित कर दिया था।

    एक दिन एक ऐसा विचार उसके मस्तिष्क में आया जिसने उसकी सारी परेशानियों को दूर कर दिया। वह अपने ऑफिस में इतना हताश बैठा था, कि उसने सोचा क्यों ना गले में फंदा डालकर छत से छत के पंखे से लटक जाऊं। और सारी समस्याओं से मुक्त हो जाऊं। जो उसे बुरी तरह धराशाई कर दे रही हैं। तभी वह वाक्य उसके मस्तिष्क में विद्युत की भांति कौंध गया कि ईश्वर उनकी सहायता करता है। जो अपने सहायता आप करते हैं। इस बारे में उसके निराशा को दूर कर दिया, और उसकी जगह आशा का संचार होने लगा। अकस्मात उसका मूड खुशनुमा और उत्साह पूर्ण हो गया।




आशापूर्ण विचार से उसे बड़ी मानसिक शांति पहुँचती है

 

   इस परिवर्तन से वह स्वयं चमत्कृत हो रहा था, यदि परिस्थितियां थोड़ी बिगड़ चुकी थी। किंतु अब वह स्वयं बदल गया था। कम से कम थोड़ा तो बदल ही गया था, इस आशापूर्ण विचार से उसे बड़ी मानसिक शांति पहुंची, और वह पहले से कहीं अच्छा अनुभव  करने लगा।  पहले जहां वह मानसिक उलझनों के कारण कुछ सोच नहीं पा रहा था। अब व्यवसायिक समस्याओं पर शांति से विचार कर रहा था। कुछ शब्द होते हैं, जो अशांत मन को शांत कर देते हैं।

    उसे वह मार्ग सुझाव दे गया, जिस पर चलकर उसकी समस्याओं का निवारण हो सकता था ।  वह आशा के साथ उस मार्ग पर चला और कुछ ही समय में कठिन समस्याएं भी सरलता से सुलझ गई।

 

समस्या को सही तरह से सुलझाने की शक्ति अपने भीतर मौजूद है

 

    अपनी व्यक्तिगत अथवा व्यवसायिक समस्याओं को सुलझाने के बहुत जरूरी मामले से सबसे पहले आपको यह मानना होगा, कि उस समस्या को सही तरह से सुलझाने की शक्ति अपने भीतर मौजूद है । दूसरी शर्त यह  कि आपको एक योजना बनानी होगी, और उस पर  अमल करना होगा। आध्यात्मिक और भावनात्मक योजना का अभाव अनिश्चित कारण है, जिससे कि कई लोग समस्याओं को सरलता पूर्वक नहीं सुलझा पाते।

     बहुत से लोग मानवीय मस्तिष्क की आपातकालीन शक्तियों के द्वारा सफलता प्राप्त करते हैं। प्रायः प्रत्येक मनुष्य में कुछ अतिरिक्त शक्तियां होती हैं। जिनका उपयोग आपातकालीन स्थितियों में किया जा सकता है। प्रतिदिन के साधारण जीवन में यह आपातकालीन शक्तियां सोई रहती हैं। किंतु असाधारण परिस्थितियों में व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर इन अतिरिक्त शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

    यदि आप दृढ़ इच्छाशक्ति से किसी कार्य को प्रारंभ करें, तो उसे प्रसन्न करने में ईश्वर आपकी सहायता अवश्य करेगा। प्रारंभ में कठिन और विषम लगने वाला कार्य आपको सरल प्रतीत होने लगेगा। और जब आप किसी कार्य का आरंभ ही नहीं करेंगे तो वह पूरा कैसे होगा?

     दो भाई समान वातावरण में पले बढ़े हैं और उनकी शिक्षा-दीक्षा एक समान हुई है वह दोनों जब कार्यक्षेत्र में उतरते हैं, तो उनमें से एक उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है। जबकि दूसरा सामान्य जीवन यापन करता है, जब दोनों के पारिवारिक परिवेश और  शिक्षा दीक्षा समान थी, फिर ऐसा क्यों हुआ?

 इसका केवल एक ही उत्तर है, कि एक मैं महत्वाकांक्षा और आशा रूपी अतिरिक्त पूंजी थी। और इस अतिरिक्त पूंजी को उसने अपने कार्य में लगाया। जिस कारण व सफलता और उन्नति के पथ पर बढ़ता चला गया। जबकि दूसरे में इस पूंजी का अभाव था। इस कारण वह सामान्य जीवन निर्वाह करने को विवश है।

    मनुष्य में यदि आशा वा महत्वाकांक्षा की पूंजी नहीं है, तो वह ईश्वर प्रदत्त अपनी शक्ति सामर्थ्य का सदुपयोग नहीं कर पाएगा। अंग्रेजी में कहा जाता है, वर्षा के दिनों के लिए कुछ बचा कर रखें। इसका अर्थ है, कि यदि आप सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं। तो संकट की घड़ी के लिए धन व अन्य बचा कर रखें।




   लेकिन जब कोई वर्तमान में कष्ट भोग कर रहा हो, तो भविष्य के लिए वह क्या बचा पाएगा?  इस प्रकार तो आप निरंतर संकटों में घिरते चले जाएंगे।

 

  प्रायः लोग धन संचयी वृत्ति के होते हैं, लेकिन धन होने के बावजूद बहुत से लोगों का आचार व्यवहार विकृत और निकृष्ट होता है। ऐसे लोग जीवन के आनंद से वंचित रहते हैं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति ना करके केवल धनवान कहलाने के लिए धन संचय करना मूर्खता है। संकीर्ण मनोवृत्ति का परिचायक है, इसी प्रकार संचयी आवृत्ति के विपरीत अपव्यवयी  वृत्ति भी हानिकारक है। आपने यदि आज की सारी आवश्यकताएं पूरी कर ली है। और कुछ धन बच गया है, तो उसका दुरुपयोग मत करिए। और उसे कल के लिए  सुरक्षित  बचाकर रखिये।  आवश्यकता से अधिक  व्यय करना अपव्यय है। इस प्रकार हम देखें तो संचयी और अपव्ययी  दोनों ही प्रवृत्तियाँ मनुष्य जीवन के संतुलन को बिगाड़ देती है।

आशा और इच्छा शक्ति के बाद विश्वास आता है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास ही नहीं होता, और ईश्वर पर भी विश्वास नहीं करता। वह भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाता। यदि आप में आत्मविश्वास नहीं है। तो आप अपनी बुद्धि शक्ति और सामर्थ्य का उपयोग सही ढंग से नहीं कर पाएंगे। मनुष्य तभी सफल एवं संपन्न होता है। जब उसके मन में आशापुर विश्वास होता है। इस विश्वास के सम्मुख अवरोध असफलता, विपन्नता आधी धराशाई हो जाते हैं। मनुष्य जो कुछ भी प्राप्त करता है, वह आशा, आकांक्षा, इच्छा, विश्वास और कर्तव्य शक्ति पर आधारित होता है।

   मनुष्य जैसी आशा करता है। वैसा ही बन जाता है। इस कथन में तथ्य और यथार्थ भरा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य की इच्छा शक्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन मात्र इच्छाशक्ति से कुछ नहीं होता, कर्तव्य शक्ति भी आवश्यक है। किंतु कोई भी शक्ति आशा की शक्ति से बढ़कर नहीं है। यदि आप आशावादी हैं, महत्वाकांक्षी और आत्मविश्वास ही हैं तो संसार की प्रत्येक वस्तु आपके मन के द्वार खोलकर आपके जीवन में प्रवेश कर जाएगी ,और आपको सुखी संपन्न एवं सफल बनाएगी।।।।।

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