Pandit Govind Ballabh Pant Biography (Essay) in Hindi - पंडित गोविंद बल्लभ पंत कौन थे

Pandit Govind Ballabh Pant Biography in Hindi – पंडित गोविंद बल्लभ पंत कौन थे

 

Pandit Govind Ballabh Pant Biography in Hindi:– पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 ई० को उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के खूंट ग्राम में हुआ था, यह  स्थान अब उत्तराखंड राज्य के अंतर्गत आता है , वह भारतीय राजनीति के दूरदर्शी नेता थे।

      पंत जी के पूर्वज मूल तारा महाराष्ट्र के रहने वाले थे।  बद्रीनाथ धाम की यात्रा के समय उनकी विद्वता और सूझबूझ से प्रभावित होकर अल्मोड़ा के राजा ने उन्हें अपने पास बचने को कहा  और वह वहां चले गए पहले पहलवान अल्मोड़ा के कूट नामक स्थान पर बसे पर बाद में तो सारा कुमाऊं क्षेत्र ही उनकी नैतिकता और पवित्र आचरण के कारण उनका हो गया।

 

      पंत जी के पिता श्री मनोरथ पंथ स्वराज विभाग में काम करते थे, इसीलिए वह प्रदेश में घूमते रहते थे

 

उन्हें रायबहादुर का खिताब मिला हुआ था | विभाग  मैं बड़े अफसर होने के कारण उस प्रदेश की राजनीति को अच्छी तरह समझते थे।  उनकी ननिहाल भीमताल के पास छकाता गांव में थी।  रायबहादुर बद्री प्रसाद जोशी अल्मोड़ा के में जुडिशल अधिकारी थे।  इसी कारण आपकी मां बल्लभ पंत अपने पिता के पास ले गई और वही उनकी शिक्षा दीक्षा शुरू हो गई। घर में कुर्मांचल को अंग्रेज सरकार द्वारा हड़पने की बातें होती थी, जिन्हें बालक पंत ध्यान से सुनता था।  इसीलिए उन्हें आरंभ से ही राजनीति में रुचि उत्पन्न होने लगी।

     गोविन्द पंत जी बचपन से ही बड़े कुशाग्र बुद्धि के थे , इसीलिए रायबहादुर बद्री प्रसाद अपने नाती का बड़ा ध्यान रखते थे, अल्मोड़ा जिले के कॉलेज में इंटरमीडिएट पास करने के बाद आपको इलाहाबाद भेज दिया गया, वहां के सेंट्रल में और कॉलेज में उनका दाखिला कराया गया | जहां से अपने आप ने दिए तथा बी.एस.सी. की परीक्षाएं उत्तर के उत्तर प्रदेश के अनेक नेता इसी कॉलेज में छात्र रहे हैं , जिनमें डॉक्टर काटजू ,राज्य श्री पुरुषोत्तम दास टंडन समाजवादी महान् विचारक आचार्य नरेंद्र देव और पंडित हृदयनाथ कुंजरू प्रसिद्ध थे।

 

Pandit Govind Ballabh Pant Education 

 

    जिन दिनों आप इलाहाबाद में अध्ययन कर रहे थे, उन दिनों स्वदेशी आंदोलन  अंगड़ाइयां ले रहा था।  विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जा रहा था इस आंदोलन को उग्र रूप देने वालों में पंजाब के लाला लाजपत राय और महाराष्ट्र के बाल गंगाधर राव तिलक ने के नाम प्रमुख थे जो अपने ओजस्वी भाषणों से देश प्रेम की चिंगारी सुन जा रहे थे।

 

अतः कालेज के छात्रों में भी जोश पैदा हो गया गोविन्द पंत जी विद्यार्थी काल से ही विद्रोही स्वभाव के थे उनके मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा के भाव तो पहले से ही थे। इन्हीं विचारों को उन्होंने 1996 के माघ मेले में त्रिवेणी पर इलाहाबाद के आम जनता में भाषण के रूप में रखा। यह भाषण बहुत ही कठोर था, और राजनीति में उनके प्रवेश को सूचित करता था।  अधिकारियों को यह अच्छा ना लगा उन्होंने पंत जी को कॉलेज से निकाल दिया पर मालवीय जी के बीच में पड़ने पर उन्हें फिर से कॉलेज में दाखिल कर लिया गया।

 

Pandit Govind Ballabh Pant Advocacy 

 

         सन् 1909 ई० में एल.एल.बी.की परीक्षा पास करने के बाद पंत जी ने काशीपुर में वकालत शुरु कर दी अथक परिश्रम और लगन के कारण वकालत खूब चली।  सन 1916 ई० में वहां के निवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए अपने कुमाऊं परिषद नामक एक संगठन की स्थापना की। और लगातार कुमाऊं के पिछड़े लोगों की तरक्की के लिए लड़ाई लड़ते रहे।

 

भारत के अनेक हिस्सों में निर्धन लोगों के बेगार लेने की प्रथा प्रचलित थी। पहाड़ी प्रदेशों में तो गरीब मजदूरों से जबरदस्ती बेगार कराई जाती थी।  पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी का नाम वकालत में खूब चमक रहा था, और उनके पास धन की भी कोई कमी नहीं थी | परंतु वह इस बेगार प्रथा के विरुद्ध थे। और उन्होंने इसके विरुद्ध जन आंदोलन छेड़ दिया, और इसे बंद करवा कर ही दम लिया।

 

      सन् 1920 से 21 के असहयोग आंदोलन में अनेक भारतीय नेताओं की जीवनधारा ने एक नया मोड़ ले लिया।  छात्रों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिए थे, और वकीलों ने अदालतों में जाना बंद कर दिया था, पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी ने भी वकालत छोड़ दी और पूरी तरह राजनीति में भाग लेने लगे सर्वप्रथम सन् 1923 ई० में पंडित मोतीलाल नेहरू ने आप की प्रतिभा और सूझबूझ का अनुमान लगाकर उस वर्ष ही आपको स्वराज्य दल का नेता चुन लिया।  उसी वर्ष से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए इस महत्वपूर्ण दायित्व को उन्होंने कुशलता के साथ निभाया।




Pandit Govind Ballabh Pant स्वराज की मांग 

 

      स्वराज की मांग को खटाई में डालने के लिए अंग्रेजों ने साइमन कमीशन का नाम एक ढोंग रचाया। तो सारे भारत में प्रदर्शनों की आड़ बाढ़ आ गई।  30 नवंबर 1928 ईस्वी को साइमन कमीशन का विरोध किया गया. देश के नौजवान काले झंडे लेकर लखनऊ की सड़कों पर बुलंद नारों के साथ में चल पड़े। उस समय देश के विभिन्न स्थानों में ब्रिटिश सरकार ने बर्बर अत्याचार के लाहौर में से एक जुलूस में लाला लाजपत राय घायल हुए लखनऊ में भी भारी प्रदर्शन किया गया।

 

           ब्रिटिश सरकार ने भीड़ पर भारी अत्याचार के लाठीचार्ज किया घुड़सवार ओं ने निहत्थे जनता को रौंदा। लाला लाजपत राय ने इस आंदोलन को ब्रिटिश ताबूत में अंतिम कील कहा था और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई थी।  एक दल का नेतृत्व पंत जी के हाथों में था। जय हिंद और साइमन वापस जाओ के नारे लगाते हुए पंत जी आगे बढ़ते ही जा रहे थे।

 

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लखनऊ में पुलिस जब लाठी चलाती हुई जवाहरलाल जी के पास पहुंची सशस्त्र पुलिस और गुड़ सवारों ने उन्हें उनके दल को घेर लिया क्रूरता के से लाठियां और कोड़े बरसाए जाने लगे।  यह देखा तो 6 फुट के ऊंचे और हटे कटे पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी नेहरू जी पर लेट गए, और उन्हें भयंकर मार से बचा लिया। नौजवान तब तक लाठियां और कूड़े खाते रहे, जब तक कि वह मूर्छित होकर गिर ना पड़े।

 

परंतु उनके होंठ फड़फड़ाए रहे और कहते रहे साइमन वापस जाओ। लखनऊ में पुलिस की मार से उनका शरीर टूट चुका था।  उसी वजह से बाद में चलकर वे अनेक रोगों के शिकार हो गए. इस निर्गम याद जी की कमर को आजीवन सीधा नहीं होने दिया। नेहरू जी द्वारा पंत जी का सम्मान करने का एक कारण इस घटना को भी बताते हैं।  ऐसी ही घटना इतिहास में प्राचीन काल में भी घटी थी।

 

जब महाराणा प्रताप का घोड़ा घायल हो चुका था तो उनके सरदार ने उनका छीनकर अपने माथे पर लगा लिया था। और उनसे प्रार्थना की थी , कि वह मेवाड़ के उद्धार के लिए अपने प्राणों को ना गवाएं उस समय वह कार्य ना करें करते तो संभवत भारत का इतिहास ही दूसरा होता। नेहरू जी ने पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी की इससे बड़ी भारी कुर्बानी बताया था।




    पंडित गोविन्द बल्लभपंत जी ने नमक कानून तोड़ा और सत्याग्रह आंदोलन में उनको जेल भेज दिया गया।

 

       सन् 1935 ई० में प्रांतीय असेंबलियों के चुनाव हुए तो पंत जी उत्तर प्रदेश असेंबली में कांग्रेश दल के नेता चुने गए। जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनी तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया।  उन दिनों असली सत्ता गोरे अधिकारियों के हाथ में थी।  परंतु पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी जैसे चतुर्वेदी ने इस स्थिति को बदल दिया।  पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी गोरे सरकारी अधिकारियों से भी उसी प्रकार काम लेते थे।  और उन्हें वही दर्जा देते थे , जो अपने भारतीय सरकारी अधिकारियों को गोरी अधिकारी ने इनके सहयोगी मंत्री श्री अजीत प्रसाद जैन के दौरे के समय अनुपस्थिति रहकर उनका अपमान किया था।

 

जब पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी को इस मामले का पता चला तो उन्होंने उसका एक छोटे पद पर तबादला करके देवरिया तहसील भेजने का आदेश दिया। इस मामले में प्रदेश के गवर्नर स्वयं पड़े।  और इस अधिकारी को श्री अजीत प्रसाद जैन से क्षमा मांगनी पड़ी तब जाकर यह मामला सुलझा।

 

            सन् 1942 ई० में भारत छोड़ो आंदोलन के परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने जब सब नेताओं को कैद कर लिया तब पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी भी बंदी बना लिए गए इस प्रकार देश की आजादी की लड़ाई के लिए उन्होंने अनेक बार जेल यात्राएं की अनेक यातनाएं होगी, लेकिन वे अपने आदर्शों और सिद्धांतों से वे दिए नहीं बल्कि उन पर हिमालय की तरह अडिग रहे।




Pandit Govind Ballabh Pant कुमाऊ का चीता

 

      पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जी को कुमाऊ का चीता भी कहा जाता है।  बात यह थी, कि आजादी से पहले जब विभिन्न प्रांतों में कांग्रेसी मंत्रिमंडल बने थे, तो पंत जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।  तब भी और उससे पहले वकालत के दिनों भी वे, जहां तक बस  चलता अंग्रेज अफसरों की न चलने देते। उनके वह कट्टर विरोधी थे। वह तीक्ष्ण बुद्धि के धनी और चीते की तरह साहसी थे।  वह तो अपनी भावुक काया और चेहरे से कुछ ही क्षणों में दूसरों का मन मोह लेते थे।

      15 अगस्त सन् 1947 ई० को जब भारत आजाद हुआ तो उन्हें पुनः उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस पद पर रहकर आपने देश के विकास के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। उत्तर प्रदेश के तराई अंचल में 16500 एकड़ एक जोत जमीन को कृषि योग्य बनाया। यहां एक कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना भी की गई।

 

वहां के फूलों के बगीचे, पुष्पों से लदे उद्यान, सुंदर इमारतें, दूध के केंद्र ,मनोरम जिले हवाई अड्डा सभी कुछ आज भी पंत जी की याद दिलाते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री काल में कुल मिलाकर उन्होंने उत्तर प्रदेश की उन्नति के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। देश भर में उत्तर प्रदेश में ही सबसे पहले जमीदारी प्रथा समाप्त की गई। मालगुजारी बंद हुई और सबसे पहले हिंदी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने का गौरव उत्तर प्रदेश को ही प्राप्त हुआ।

 

Pandit Govind Ballabh Pant Biography

    पंडित जवाहरलाल नेहरु को आपकी दूरदर्शिता पर अटूट विश्वास था।  अतः जब सरदार पटेल का देहावसान हुआ तो नेताजी नेहरु जी ने गृहमंत्री के रूप में आपको केंद्र सरकार में सम्मिलित कर लिया। पंत जी को प्रारंभ से ही 12 से 14 घंटे काम करने की आदत थी।  उत्तर प्रदेश में भी वह शाम 7 से 8 बजे तक ही कार्यालय से निकलते थे।

 

दिल्ली में भी उनका यही क्रम चलता रहा। कोई भी समय उनका ऐसा नहीं था जब वह किसी ना किसी काम में लगे ना रहते थे। उन्हें हर समय किसी ना किसी महत्वपूर्ण फाइल को देखते ही पाया जाता था। पंडित बल्लभ पंत जी की आदत थी , कि वह पराया अपने सहयोगियों के काम में दखल ना देते थे।

 

वह स्वयं कभी-कभी तो 18 से 20 घंटे तक काम करते थे , परंतु किसी दूसरे को उन्होंने इस बात के लिए नहीं टोका। परंतु इसका असर यह होता था, कि उनके साथ काम करने वालों उनसे प्रेरणा लेकर दिन भर काम में जुटे रहते थे।

 

      पंडित बल्लभ पंत जी में सहिष्णुता भरपूर थी।  उनके संबंध में नेहरू जी ने कहा था वह काफी ऊंचे आदमी थे।  अर्थात वह साधारण भीड़ में सेना थे।  उनमें धैर्य बहुत था , और वे प्राय: गुस्से में कभी ना आते थे  यदि कभी आते तो पता ना चलता।

 

     यह ताकत की निशानी है , गुस्से में ना बात कहना सोच समझ कर बात करना यह बड़ा गुण है।  उनका दिमाग बहुत तेज था, वह बहुत कल कल्चरड थे।

 

 1 दिन की बात है, कि उनके एक असंतुष्ट मित्र उनसे झगड़ा करने आ गए करीब 1 घंटे तक पंत जी से भी बुरी भली कहते रहे। जमकर आलोचना भी की पंत जी सुनते रहे। अंत में जब मित्र चुप हुए तो पंडित बल्लभ पंत जी ने मुस्कुराए और बड़ी नम्रता के साथ पूछा क्या आपको और कुछ कहना है। पंत जी के इस धैर्य नम्रता और सहनशक्ति का और मित्र पर इतना गहरा असर पड़ा कि वे उनकी प्रशंसा करते हुए लौटे।

 

     सन् 1959 ई० में उन्हें दिल का पहला दौरा पड़ा।

 

डॉक्टरों ने उन्हें पूर्ण विश्राम की सलाह दी, परंतु उन्होंने इसे ना माना क्योंकि वह कहते थे, कि काम ही तो सच्चा आराम है। यदि आदमी काम ना कर सके तो बेकार जिंदगी जीने का क्या लाभ।  मैं चाहता हूं, कि लोकसभा में बोलते बोलते ही मेरा अंत हो जाए। लोग पूछा करते थे, कि बल्लभ पंत जी की इस कार्य शक्ति का रहस्य क्या है।  वसुधा बल्लभ पंत जी बहुत कम खाते और बहुत कम बोलते थे।

 

प्रातः केवल यह एक चाय की प्याली के अतिरिक्त और कुछ नहीं लेते थ। , दोपहर के खाने में उबली साग सब्जियों के अतिरिक्त कुछ ना होता था।  रात को भी वे सीधा सात्विक निरामिष भोजन करते थे।  कम बोलने के संबंध में तो एक घटना बहुत प्रसिद्ध है, कि कोई व्यक्ति उनके पास शिकायत लेकर पहुंचा 1 घंटे भर अपनी शिकायत सुनाता रहा और पंत जी सुनते रहे। जब उसे अनुभव हुआ, कि इतनी देर में मेरे बोलने से शायद परेशां हो गए हो। तब बोलते बोलते रुक गया पंत जी ने पूछा रुक क्यों गए ?

 

    तब उस सज्जन को पंत जी के धैर्य पर आश्चर्य हुआ।

 

   पंत जी केवल उत्तर प्रदेश के ही ना थे वह संपूर्ण भारत के एक महान विभूति थे।  इसीलिए सन 1957 ई० में भारत सरकार ने अपना कर्तव्य समझकर उस दूरदर्शी राजनीतिक को भारत रत्न के सम्मान से विभूषित किया और पदक प्रदान किया |

    फरवरी सन् 1961 में वह बीमार पड़े और लगभग 15 दिन तक आ चेतना  अवस्था में पड़े रहे, उसके उपरांत 7 मार्च 1961 ई० को अपना शरीर त्याग

दिया। .

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