Women Empowerment Essay in Hindi – महिला सशक्तिकरण पर निबंध
Women Empowerment Essay- महिला सशक्तिकरण “:- की शब्दावली का प्रयोग यू तो लगभग पिछले एक दशक से होता आ रहा है , लेकिन पिछले 507 वर्षों से यह कुछ विशेष प्रचलन में है। यदि इस संदर्भ में भारत को देखें तो दृश्य होता है, कि यहां आजादी के बाद सरकारी कार्यक्रमों तथा योजनाओं में पहले तीन दशकों तथा तक महिलाएं महिला कल्याण के शब्दावली का प्रयोग आमतौर पर किया जाता रहा है।
80 के दशक में स्थान पर महिला विकास की शब्दावली अधिक प्रचलित हुई कालांतर में 90 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में महिला समानता या उन्हें बराबरी के हक दिलाने पर जोर देने की बात की जाने लगी। 90 के दशक में के अंतिम चरण में और विशेषकर 21वीं शताब्दी में प्रवेश करते ही चारों और महिला सशक्तिकरण का स्वर तेज होता गया, यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है, जब हम इसके सदा वलियों के शाब्दिक अर्थों पर विचार करते हैं, सशक्तिकरण (Empowerment) अपने आप में व्यापक अर्थ को समेटे हुए, इसमें अधिकारों तथा शक्तियों का स्वाभाविक रूप से समावेश हुआ प्रतीत होता है।
Women Empowerment Essay
सशक्तिकरण (Empowerment) एक मानसिक अवस्था है जो कुछ विशेष आंतरिक क्षमताओं और शैक्षिक सामाजिक आर्थिक राजनीतिक आधी परिस्थितियों पर आधारित होती है, जिसके लिए समाज में आवश्यक कानूनी सुरक्षात्मक प्रावधानों और उनमें भली-भांति क्रियान्वयन हेतु सक्षम प्रशासनिक व्यवस्था होना अति आवश्यक है।
प्रकारांतर में हम कह सकते हैं, कि महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) से तात्पर्य एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया से है | जिसमें महिलाओं के लिए सर्व संपन्न तथा विकसित होने हैं , तो संभावनाओं के द्वार खुले नए विकल्प तैयार हो भोजन पानी घर शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएं शिशु पालन प्राकृतिक संसाधन बैंकिंग सुविधाएं कानूनी हक तथा प्रतिभाओं के विकास हेतु पर्याप्त रचनात्मक अवसर प्राप्त हो |
#महिला सशक्तिकरण की राष्ट्र निर्माण में भूमिका – Role of women empowerment in nation building
Role of women empowerment in nation building:- महिलाएं हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा है। इसीलिए राष्ट्र के विकास के इस महान कार्य में महिलाओं की भूमिका तथा योगदान को पूरी तरह और सही परिपेक्ष्य मे रखकर ही राष्ट्र निर्माण के कार्य को समझा जा सकता है। समूचे सभ्यता में व्यापक बदलाव के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में महिला सशक्तिकरण आंदोलन बीसवीं शताब्दी के आखिरी दशक का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक तथा सामाजिक विकास कहा जा सकता है। वस्तुत: राष्ट्र निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है।
जो सुव्यवस्थित रूप से तैयार की गई है, विकास नीतियों के रूप में राजनीतिक इच्छा को रेखांकित करती है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपनी पूरी पूरी क्षमता का उपयोग करके अपनी कार्यक्षमता में वृद्धि करके कर सके इसके लिए आर्थिक शैक्षिक तथा सामाजिक बुनियादी ढांचे का होना बहुत जरूरी है, जनता की खुशहाली तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके मानव विकास का मूलभूत लक्ष्य हमारी राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का अत्यंत आवश्यक अंग है।
#भारत में महिला सशक्तिकरण के बुनियादी तथ्य
भारत में महिला कल्याण संबंधी गतिविधियों को संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराने तथा संवैधानिक सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। स्वतंत्रता के बाद से ही महिलाओं का विकास भारती आयोजन प्रणाली का केंद्रीय विषय रहा है , पिछले 20 वर्षों में कई नीतिगत बदलाव आए हैं| 1970 के दशक में जहां कल्याण की अवधारणा महत्वपूर्ण थी वही 80 के दशक में विकास पर जोर दिया गया।
1990 के दशक से महिला अधिकारी यानी सशक्तिकरण पर जोर दिया जा रहा है, ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं, महिलाएं निर्णय लेने की प्रक्रिया में सम्मिलित हो तथा नीति निर्धारण नीति निर्माण के स्तर पर भी उसकी सहभागिता हो।
सीमित अर्थ में सामूहिक कार्यवाही से ही महिलाओं में सत्य का संचार होता है। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है, और इस तरह का दमन का विरोध करने से उनकी क्षमता तथा इच्छा में भी वृद्धि होती है, लेकिन व्यापक अर्थ में सामूहिक कार्यवाही सशक्तिकरण का एक जरिया है। इसके माध्यम से स्त्री पुरुष समानता को चुनौती देने के साथ-साथ इसे समाप्त करने का भी प्रयास किया जाता है।
विचार धर्म आस्था तथा अंतरात्मा के स्वतंत्रता सहित महिलाओं के प्रगत के प्रयासों से व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की विनती आध्यात्मिक तथा बौद्धिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इससे समाज में उनकी पूर्ण क्षमता के उपयोग की संभावना सुनिश्चित होती है, तथा अपनी आकांक्षाओं के अनुसार अपनी जिंदगी को रूप देने की पक्की गारंटी भी देती है।
वस्तुत: महिला सशक्तिकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से जिसमें महिलाओं के अपने आप को संगठित करने की क्षमता बढ़ती तथा सुदृढ़ होती है। वह लिंग सामाजिक आर्थिक स्थिति और परिवार व समाज में भूमिका के आधार पर निर्धारित संबंधों को दरकिनार करते हुए आत्मनिर्भरता विकसित करती हैं।
#भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास महिला उत्थान नीति 2001 – Women Empowerment Essay
भारत सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सहयोग से देश में महिलाओं को राजनैतिक आर्थिक तथा सामाजिक विकास में बराबर की भागीदारी के अवसर प्रदान किए प्रमुख उद्देश्य को लेकर राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति 2001 की घोषणा की गई जिसके कुछ विचारणीय तथ्य हैं :
1- वर्तमान कानून में संशोधन द्वारा नारी आवश्यकता ओं के प्रति संवेदनशील तथा घरेलू हिंसा या वैयक्तिक आक्रमण की रोकथाम के लिए नवीन कानूनों का निर्माण एवं अपराधियों के लिए उचित दंड की व्यवस्था की जाएगी।
2- महिलाओं के साथ भेदभाव समाप्ति हेतु समुदाय धार्मिक नेताओं एवं पर धारियों की पूर्ण भागीदारी एवं पहल पर विवाह तालाब अनुच्छेद तथा अभिभावक था जैसे व्यक्ति कानूनों में परिवर्तन किया जाएगा।
3- महिलाओं को पुरुष के समान संपत्ति के अधिकार दिलाने के लिए उससे संबंध कानूनों में परिवर्तन किया जाएगा।
4- सभी निर्णायक निकायों में निर्णय प्रक्रिया में नारी सहभागिता को सुनिश्चित किया जाएगा।
5 – महिलाओं को मुख्यधारा में लाने वाले तंत्रों की प्रकृति का समय समय पर मूल्यांकन करने के लिए समन्वय तथा प्रबंधन तंत्र का निर्माण होगा।
6- गरीब महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता हेतु कार्यक्रम चलाए जाएंगे उत्पादन में उपभोग हेतु ऋषि सहायता तथा सामाजिक आर्थिक विकास में उत्पादकों एवं कार्यकर्ताओं के रूप में महिलाओं के योगदान को मान्यता दी जाएगी।
7- ग्लोबलाइजेशन उत्पादन नकारात्मक एवं सामाजिक तथा आर्थिक प्रभाव के खिलाफ महिलाओं की क्षमता में वृद्धि के साथ उन्हें पूर्व सुरक्षा प्रदान करने की योजना है।
8- महिलाओं के शिक्षा स्तर को बढ़ाने एवं अनुकूल शिक्षा प्रणाली के निर्माण के लिए विशेष नियम लागू किए जाएंगे महिला स्वास्थ्य पोषाहार बालिका विवाह एवं विवाह के पंजीकरण को अनिवार्य बनाया जाएगा।
9- गांव एवं शहरों की आवाज नीतियों एवं योजनाओं में महिला परिप्रेक्ष्य को सम्मिलित किया जाएगा।
10 – पर्यावरण संरक्षण एवं बहाली संबंधी कार्यक्रमों में महिलाओं को सम्मिलित किया जाएगा।
Women Empowerment Essay
11- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
12- बालिका व्यापार भ्रूण हत्या ,प्रसव, पूर्व लिंग निर्धारण, बाल शोषण बाल विवाह बाल वेश्यावृत्ति, को रोकने हेतु कड़े कानूनों का निर्माण किया जाएगा।
13- केंद्रीय तथा राज्य स्तर पर निवर्तमान संस्थागत तंत्र को मजबूत किया जाएगा, जिससे महिला उत्थान की आशा है।
14- महिला उत्थान हेतु परियोजनाओं में सहायता के लिए निजी क्षेत्रों में पूंजी निवेश के प्रयत्न किए जाएंगे इसके अतिरिक्त वित्तीय ऋण संस्थानों एवं बैंक द्वारा वित्तीय मानव और मार्वेटिंग उपलब्ध कराने के प्रयास किए जाएंगे।
15 – अभी निर्धारण विभाग नीति के कार्यान्वयन के लिए वर्तमान विधायक हाथों की समीक्षा करेगा तथा अतिरिक्त विधायी कार्य करेगा।
16- पंचायती राज्य संस्थाओं तथा स्थानीय स्वशासन को सुचारू रूप से सम्मिलित किया जाएगा।
17- सभी केंद्रीय तथा राज्य मंत्रालय केंद्रीय राज्य महिला एवं बाल विकास विभागों तथा राज्य राष्ट्रीय राज्य महिला आयोग के साथ परामर्श के प्रतिभागी प्रक्रिया द्वारा नीति को ठोस कार्यवाही में बदलने की योजना तैयार की जाएगी।
#भारतीय तलाक [ संशोधन अधिनियम, 2001 ]
तलाक के मामले में ईसाई समुदाय में पुरुषों के समान ही महिलाओं को अधिकार दिए जाने का प्रावधान करने संबंधी भारतीय तलाक अधिनियम 2001 पूरे देश में 3 अक्टूबर 2001 से प्रभावी हो गया। भारतीय तलाक अधिनियम के माध्यम से 132 वर्ष पुराने भारतीय तलाक अधिनियम 1869 में संशोधन करके इसकी धारा 10,17 तथा 20 में महिलाओं तथा पुरुषों के मामले में एकरूपता ला दी गई है।
इस प्रकार अब तलाक के मामले में इसाई पुरुषों की तुलना में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और विसंगतियों को समाप्त कर दिया गया है, इसके साथ ही अब इस आई महिलाओं को तलाक के मामले में व्यापक अधिकार मिल गया है, जिसकी मांग उनके द्वारा काफी समय से की जा रही थी।
#महिलाओं पर घरेलू हिंसा ( निरोधक ) अधिनियम, 2001
हालांकि किसी भी व्यक्ति के साथ हम साथ में आचरण आपराधिक कानून के अंतर्गत आता है। लेकिन इसके बावजूद 1983 से देश में घरेलू हिंसा को एक समस्या के रूप में मान्यता प्रदान करते हुए, विवाहित के साथ क्रूरता को अपराध माना गया। जिसे दहेज हत्या के साथ जोड़ा गया , इससे दूसरे कारणों से महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा की अनदेखी होती रही है।
प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से इस कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है , इसके अंतर्गत पीड़ित महिला को न्यायालय से आदेश पाने का अधिकार है , इसके अतिरिक्त पीड़ित महिला ऐसा आदेश भी हासिल कर सकती है, जिससे उसे ससुराल से ना निकाला जा सके। प्रस्तावित कानून के अंतर्गत ऐसा आदेश भी हासिल कर सकती है, जिससे उसे ससुराल से ना निकाला जा सके।
प्रस्तावित कानून के अंतर्गत ऐसी महिला न्यायालय से मुकदमे के दौरान खर्चे हेतु अदालत से वित्तीय सहायता के लिए भी मांग कर सकेगी |
#परित्यक्ताओं के लिए गुजारा भत्ता ( संशोधन) अधिनियम बिल, 2001
परित्यक्ता महिला के लिए उसके पति से शीघ्र गुजारा भत्ता दिलाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत इस प्रावधान के अनुसार गुजारा भत्ते के सहारे अर्जियों पर अदालत ने 60 दिनों के भीतर आदेश पारित करेंगे। इसके लिए विवाह कानून में संशोधन करने का भी प्रस्ताव किया गया है, पति से अलग रहने वाली महिला के लिए वर्तमान कानून के अनुसार अधिकतम राशि ₹500 निर्धारित है, जो अब से 45 वर्ष पूर्णतया की गई थी। इस प्रस्तावित संशोधन के बाद अदालत ने पति के वास्तविक आय के आधार पर पत्नी और बच्चे के लिए गुजारा भत्ते की रकम तय करने के लिए स्वतंत्र होंगी।
नए कानून से महिलाओं को समय पर समुचित गुजारा भत्ता मिल सकेगा। अंतरिम आवेदन पर प्रतिवादी को नोटिस प्राप्त होने के 60 दिन के अंदर डालते फैसला सुनाने के लिए बाध्य होंगी, और इससे अब पति मुकदमे की सुनवाई बार-बार टलवा नहीं सकेगा, लेकिन इस व्यवस्था को लागू करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम 1959 और हिंदू व पारसी विवाह तथा तलाक अधिनियम में संशोधन किया जाएगा।
#बालिका अनिवार्य शिक्षा एवं विधेयक 2001
प्रस्तुत विधेयक में महिलाओं के लिए शिक्षा को विशेष रूप से अनिवार्य बनाने तथा उनके कल्याण और विकास के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं निर्धारित करने के लिए मापदंड प्रस्तावित किये गए हैं। इस विधेयक के पास हो जाने के बालिकाओं को कानूनी रूप से विकास के पर्याप्त अवसर प्राप्त होने की संभावनाएं हैं।
अन्य विधिक प्रावधान
1- भ्रूण हत्या रोकने हेतु प्रयास
प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीकी अधिनियम 1994 देश में 1 जनवरी 1996 से लागू है, जिसके अंतर्गत अन्य प्रावधानों के अतिरिक्त गर्भावस्था में भ्रूण के लिंग का पता लगाना गैरकानूनी घोषित किया गया है। इस तकनीकी का दुरुपयोग करने पर 10 से ₹15000 तक का जुर्माना तथा 3 से 5 वर्ष तक की सजा की व्यवस्था निर्धारित की गई है।
इस अधिनियम का भली-भांति क्रियान्वयन नहीं किए जाने के कारण देश में मादा भ्रूण हत्याओं के लगातार और तेजी से हो रही वृद्धि पर चिंता व्यक्त करते हुए जून 2001 में उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकार को दिशा-निर्देश जारी किए गए थे , जिसके बाद इस अधिनियम को सख्ती से लागू किए जाने हेतु सरकार द्वारा विशेष कदम उठाए गए।
2- महिला शक्ति पुरस्कारों की घोषणा -Women Empowerment Essay
ऐसी महिलाओं तथा महिला संगठनों संस्थाओं को जिन्होंने सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट स्तर का योगदान किया है , केंद्र सरकार द्वारा प्रतिवर्ष श्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया है, ताकि उनके उत्कृष्ट कार्यों की समाज में जानकारी हो सके इन पुरस्कारों को देश की पांच शीघ्र स्तरीय वीरांगनाओं के नाम पर रखा गया है, उनके नाम इस प्रकार है –
क- देवी अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार
ख- रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार
ग- माता जीजाबाई पुरस्कार
घ- रानीरानी गैदन्लियू जिलयांग पुरस्कार
च- कण्गी पुरस्कार
वर्ष 2001 में उपरोक्त पांच पुरस्कारों को प्रदान करने का निर्णय लिया गया|
#महिला सशक्तिकरण की दिशा में अन्य निर्णय |
1- महिलाओं के लिए देश में उपलब्ध कानूनी प्रावधानों की व्यापक समीक्षा हेतु टास्क फोर्स का गठन किया गया, ताकि उनको अधिक व्यावहारिक तथा उपयोगी बनाने हेतु आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
2- इस वर्ष देश के विभिन्न भागों में कार्यरत महिलाओं के लिए 29 महिला छात्रावासों के निर्माण की स्वीकृति प्रदान की गई, इन छात्रावासों में डे केयर सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी। इसके निर्माण से 61564 महिलाओं को आवश्यक आवासीय सुविधाएं प्राप्त हो सकेंगी।
3- वर्ष 2001 में पहली बार विभिन्न राज्यों तथा जिलों के जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स तैयार करने हेतु कदम उठाए गए, इससे महिलाओं के लिए क्षेत्र आधारित जरूरी विकास योजनाओं को तैयार करने हेतु मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
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4- महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के सदस्यों को प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। डी.डब्ल्यू .सी.डी .एग्नू तथा आर .एस.आर .ओ.के सहयोग से वर्ष 2001 में डिस्टेंस एजुकेशन परियोजना प्रारंभ की गई।
5- सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में महिलाओं के लिए उनके कार्य स्थान पर यौन उत्पीड़न रोकने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर समिति का गठन।
6- गरीब तबकों की महिलाओं को कृषि ,पशुपालन,डेयरी ,हैंडलूम, हस्त शिल्प आदि क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां प्रारंभ करने हेतु प्रशिक्षण तथा आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से 12 नई परियोजनाओं स्टाफ कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2001 में स्वीकृत की गई।
7- इस वर्ष पहली बार वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण में लैंगिक असमानता संबंधी एक अध्याय जोड़ा गया, तथा वर्ष 2001 से 2002 के बजट का लैंगिक विश्लेषण भी किया गया।
#आर्थिक सशक्तिकरण हेतु नई योजनाओं की घोषणा
महिला सशक्तिकरण वर्ष में सरकार द्वारा महिलाओं को आर्थिक दृष्टि से सफलता प्रदान करने के लिए नई विकास का कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करते हुए उन्हें संचालित किया गया है। इसके लिए पूर्व से संचालित विशेष योजनाओं तथा-
- न्यू मॉडल चरखा योजना (1987)
- नवरात परीक्षण योजना (1989 )
- महिला समाख्या योजना (1989)
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम (1992)
- राष्ट्रीय महिला कोष की मुख्य ऋण योजना ( 1993 )
- ऋण प्रोत्साहन योजना (1993)
- तथ्य वितरण योजना (1993)
- ऋण प्रोत्साहन योजना (1993)
- तथा विपणन वित्त योजना (1993) के अतिरिक्त
- राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (1997 )
- मार्जिन मनी ऋण योजना ( 1995)
- ग्रामीण महिला विकास परियोजना (1996 )
- राज राजेश्वरी विमा योजना (1997 )
- स्वास्थ्य सखी योजना (1997)
- विवाह योजना (1997 )
आदि को भी साथ-साथ यदि व्यापक पैमाने पर संचालित करने का प्रयास किया गया , इस वर्ष नहीं संचालित की गई, योजनाओं में किशोरी शक्ति योजना महिला स्वयं सिद्धि योजना, महिला स्वास्थ्य योजना, महिला उद्यमियों हेतु ऋण योजना, सशक्त योजना आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है। इनके अतिरिक्त पूर्व से संचालित बालिका समृद्धि योजना में व्यापक संशोधन कर इसे अधिकार व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया गया है।
निष्कर्ष – Women Empowerment Essay
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है , कि महिला सशक्तिकरण आंदोलन में बुनियादी बदलाव आया है। इस बात को महसूस किया जाने लगा है, कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर महिलाएं निश्चित रूप से राजनीतिक शक्ति बनकर उभर रही है, यद्यपि सदियों से दबी कुचली महिलाओं की स्थिति में एकाएक सुधार संभव नहीं है।
लेकिन सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से कुछ लाभ अवश्य होगा, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री तथा नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक इंडिया इकोनॉमिक डेवेलपमेंट एंड सोशल अपॉर्चुनिटी में इस संदर्भ में कहा है, कि महिला सशक्तिकरण से ना केवल महिलाओं के जीवन में निश्चित रूप से सकारात्मक असर पड़ेगा बल्कि पुरुषों और बच्चों को भी इससे लाभ होगा।
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उदाहरण के लिए इस बात के पक्के प्रमाण है कि महिलाओं की शिक्षा से लड़कों और लड़कियों दोनों की बाल मृत्यु दर में कमी आती है, वास्तव में केरल में औषध अनुमानित आयु के अधिक होने के कारण राज्य की शैक्षिक उपलब्धि खासतौर पर महिला शिक्षा की स्थिति को जानने जानने के स्पष्ट वजह है। इसी तरह उत्तर भारत में कुछ राज्यों में औषध अनुमानित आयु कम होने का कारण महिला साक्षरता की कमी ही है।
भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति की वजह से समाज में व्याप्त सामान्य बदहाली को कारगर तरीके से दूर करने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है, इस तरह महिलाओं के माध्यम से बालिकाओं और वयस्क महिलाओं दोनों की खुशहाली सुनिश्चित की जा सकती है। हालांकि वास्तविक धरातल पर स्थिति भिन्न है।
संयुक्त राष्ट्र महिला दशक के सिलसिले में जुलाई 1980 में को अपने हेगन में हुए विश्व सम्मेलन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की वयस्क आबादी का करीब 50% महिलाओं का है, दुनिया की अधिकारिक श्रम शक्ति में महिलाओं का हिस्सा एक तिहाई के बराबर है। लेकिन जहां तक काम के कुल घंटों का सवाल है इनमें से दो तिहाई महिलाओं के हिस्से आते हैं , जबकि उन्हें दुनिया की कुल आमदनी में सिर्फ दसवां हिस्सा ही मिल पाता है। दुनिया में कुल संपत्ति में से 1% से भी कम मालिक महिलाएं हैं।
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समग्रता हम कह सकते हैं, कि यद्यपि सरकार द्वारा वर्ष 2001 की अवधि में काफी कोशिश की गई, जिनके परिणाम आगामी वर्षों में दिखाई पड़ेंगे। वैसे इन परिणामों की अपेक्षा भी की जा सकती है, जब इस मुहिम को लगन उत्साह तथा प्रतिबद्धता के साथ संचालित किया जा सके, इस अवध में लिए गए निर्णय तथा उठाए गए ,विशेष कदमों, का वरदान वर्ष आश्रित वर्ड तथा मूल्यांकन होता रहे और रास्ते में आने वाली बाधाओं और कठिनाइयों का प्राथमिकता के आधार पर निरंतर हाल खोजा जा रहे।
इस दिशा में हमारे पूर्व अनुभव हमें आगाह करते प्रतीत होते हैं कि केवल कुछ नए कानूनों को पास कराने या कुछ नई योजनाओं की घोषणा कर उन्हें कागजों पर लागू करने मात्र से काम नहीं चलने वाला है। जरूरत इस बात की है , कि इन कानूनों और घोषणाओं को वास्तविक धरातल पर उतारा जाए ताकि संबंधित लोगों तथा वर्गों तक इनकी पहुंच संभव हो सके। इसके लिए उन्हें अधिक से अधिक मात्रा में शिक्षा की पहुंच भी सुनिश्चित करनी होगी ताकि उनमें जागरूकता का संचार हो सके और वे अपने अधिकारों की लड़ाई स्वयं लड़ने में सक्षम हो सके, तभी वास्तविक अर्थों में महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाए गए कदम सार्थक कह जा सकेंगे।
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