What Is a Hysteroscopy - Hysteroscopy Treatment, Procedure And Side Effects in Hindi

What Is a Hysteroscopy – Hysteroscopy Treatment, Procedure And Side Effects in Hindi

 

गर्भाशय की आंतरिक संरचना एवं जटिलताएं देखने की विधि है हिस्ट्रोस्कोपी (Hysteroscopy)। इसका उपयोग रोग का पता लगाने और और उपचार करने दोनों के लिए होता है।

 

बीसवीं शताब्दी के अंत तक हिस्ट्रोस्कोपी (Hysteroscopy) गर्भाशय के आंतरिक रोगों का अध्ययन करने के लिए पूर्णता प्रचलित हो चुका है। आजकल तो हिस्टोरोस्कोपिक सर्जरी द्वारा एडोमेट्रियल एबलेशन अथवा रिसेक्शन जैसी शल्यक्रिया भी काफी प्रचलित हो चुकी है। वीडियो कैमरा एवं कंटीन्यूअस फ्लोरिसेक्टोस्कोप के आविष्कार के बाद से हिस्टरोस्कोप का प्रयोग और भी ज्यादा हो गया है।

डेविड ने सर्वप्रथम कांटेक्ट हिस्ट्रोस्कोपी का आविष्कार किया। इसमें गर्भाशय की विधियों को अलग करने की आवश्यकता नहीं होती।

 

 हिस्ट्रोस्कोपी के उपयोग :- Use of Histroscopy

 

1:  डायग्नोस्टिक हिस्ट्रोस्कोपी – उन सभी रोगों में जिनमें डाइलेटेशन एवं क्यूरेटर की आवश्यकता होती है। अब रोगों का निदान हिस्ट्रोस्कोपी द्वारा किया जा सकता है।

2:   गर्भाशय से असामान्य रक्तस्राव होना।

3:   माहवारी बंद होने के पश्चात गर्भाशय से खून चलना।

4:   गर्भाशय से copper-t नामक गर्भ निरोधक साधन उचित स्थान पर है, या नहीं इसका पता लगाना।

5:   गर्भाशय की बॉडी का कैंसर या पॉलिप।

6:   गर्भाशय के अंदर की विधियों का आपस में चिपकना।

7:   गर्भाशय से जन्मजात विकृत का होना।

8:   बार बार गर्भपात होना।

9:   वेसिकुलर मोल नामक बीमारी के निदान के  लिए।

 

 थैरेपीयूटिक हिस्ट्रोस्कोपी :- Therapeutic Histeroscopy

 

1:   गर्भ निरोधक साधन का निकालना।

2:   एशरमैन सिंड्रोम नामक बीमारी का उपचार करना।

3:   गर्भाशय से पॉलिप निकालना।

4:   एंड्रो मेट्रियल  ट्यूमर से बायोस्कोप बॉयोप्सी  निकालना।

5:   गर्भाशय के अंदर असामान्य सेफ्टा को नष्ट करना।

6:   बच्चेदानी के रास्ते से बच्चा बंद करने का ऑपरेशन करना।

7:   गर्भाशय से असामान्य रक्तस्राव होने पर लेजर द्वारा उसका उपचार करना।

8:   गर्भाशय का सबम्यूकस फाइब्रोमायोमा  नामक ट्यूमर को निकालना।

9:   गर्भ निरोधक साधन का अपने स्थान से हटने पर सही स्थान पर स्थापित करना।

10 :  बांझपन का इलाज भी इस विधि द्वारा किया जा सकता है, जैसे कर्नल पॉलिप को निकालना।

सिद्धांत

इसका सिद्धांत लेपरोस्कोपी के सिद्धांत पर आधारित है | इसमें 30 सेंटीमीटर लंबा टेलीस्कोप होता है | जिसमें एक 30 अंश के कोण पर तिरछा  लेंस लगा होता है | इसमें ट्रोकार व केनुला की जगह जो कि लेपरोस्कोप  में  प्रयोग होता है, वैक्यूम  सर्वाइकल एडोप्टर प्रयोग होता है।

 

पैनोरमिक हिस्ट्रोस्कोपी – Panoramic Histroscopy

 

इस विधि में गर्भाशय के व्यक्तियों को अलग करने के लिए विभिन्न प्रकार की के मीडिया प्रयोग किए जाते हैं।  इसमें प्रातः नार्मल सेलाइन एवं 5% डेस्कट्रोज उपयोग होता है।  हिस्कॉन तथा गैस माध्यम भी उपयोग किया जा सकता है।  हिस्कॉन में डेक्स्ट्रॉन 70, 10  प्रतिशत डेक्सट्रोज में उपयोग होता है, या पारदर्शी विस्कस मीडिया होता है।  कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उपयोग भी होता है।   इसका रिफ्रैक्टिव इंडेक्स सामान्य वायु के समान होता है।

 

हिस्ट्रोस्कोपी की तकनीकी – Technical of Histroscopy

 

हिस्ट्रोस्कोपी (Hysteroscopy) के पूर्व मरीज की पेशाब की थैली को प्रताड़ित करवाया जाता है। जिसके उपरांत मरीज को लिथोटोमी नामक इस स्थिति में लिटाया जाता है। इस प्रक्रिया में बेहोशी की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि प्रयास में दर्द नहीं होता, परंतु कुछ मरीजों में लोकल एनेस्थिसिया की आवश्यकता पड़ सकती हैं।  जिन मरीजों में हिस्ट्रोस्कोपी द्वारा शल्यक्रिया की जाती है , या जो रोगी अत्यधिक संवेदनशील होते हैं, उनमें जनरल एनेस्थिसिया का प्रयोग किया जाता है।  शल्यक्रिया को मुख्यतः मासिक धर्म की प्रालीफैरेटिव फेस में किया जाता है।

 

कांटेक्ट हिस्ट्रोस्कोपी – Contact Histroscopy

 

इसमें कोई डिस्टेंशन माध्यम का प्रयोग नहीं होता , इसमें सर्विस में गर्भाशय के एंडोमेट्रियम में रक्त वाहिनी नलिका का अध्ययन मासिक धर्म की विभिन्न अवस्थाओं में किया जाता है |

 1 :   मासिक धर्म के दूसरे चरण की अवस्था में गर्भाशय की आंतरिक सतह पर कत्थई रंग का होना तथा उसमें रक्त वाहिनी नलिकाओं का दिखना।

2 :   मासिक धर्म के प्रथम चरण में गर्भाशय की आंतरिक सतह का गुलाबी रंग में होना।

3 :   माहवारी बंद होने के बाद गर्भाशय की आंतरिक सतह का सफेद व समतल होना।

4 :  माइक्रो हिस्ट्रोस्कोपी – यह चार मिलीमीटर व्यास का संयुक्त यंत्र है।  इस यंत्र से कांटेक्ट एवं पैनोरमिक दोनों प्रकार की हिस्ट्री स्कोपी की जा सकती है।  इस यंत्र से पैनोरमिक हिस्ट्रोस्कोपी के लिए प्रकाश स्रोत फाइबर ऑप्टिक केबल और कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग होता है। इस्कॉन नामक डिस्टेंशन मीडियम का उपयोग इस यंत्र के साथ नहीं करते शल्यक्रिया के लिए प्रयोग किए जाने वाले हिस्टोरोस्कोप (Hysteroscopy) में ऑपरेटिंग सीट होती है, और उसी सीट से औजार डाले जा सकते हैं।

 5 : हिस्ट्रोस्कोपी (Hysteroscopy) द्वारा शल्यक्रिया – इसके द्वारा संक्रिया करने के लिए टेलिस्कोप के साथ एक ऑपरेटिंग सीट का उपयोग होता है | जिसके माध्यम से कैची फॉरसेप व  कोऐगुलेटिंग  इलेक्ट्रोड इत्यादि गर्भाशय के अंदर डाले जा सकते हैं |




इस शल्य  क्रिया के खतरे

 

1 :  सर्वाइकल लैसरेशन –  सरविक्स को फैलाने के दौरान तथा सरविक्स को टिनेकुलम सेव करने के दौरान सरविक्स के घाव हो सकता है और गर्भाशय के निचले भाग में छिद्र हो सकता है |

2 :   कभी-कभी शल्य क्रिया करने वाले औजारों को अत्यधिक बलपूर्वक अंदर डाले जाने से गर्भाशय में छिद्र हो सकता है |

3 :  गर्भाशय को फैलाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले डिस्टेंशन मीडियम के दुष्परिणामों के कारण भी मरीज को हानि हो सकती है इस्कॉन से एनाफायलैक्टिक रिएक्शन हो सकता है।  अगर डिस्टेंशन मीडियम का दबाव ज्यादा हो जाता है तो उन मरीजों में फेलोपियन ट्यूब फट सकती है जिन ट्यूब्स में पानी भरा हो।

4 :  कभी-कभी गर्भाशय के अंदर अंदर ट्यूमर होने के कारण गर्भाशय पूरी तरह से फेल नहीं पाता जिसके कारण इस विधि का उपयोग अधूरा रह जाता है।

5 :  कभी-कभी गर्भाशय की विधियां अंदर से जल जाती हैं।

6:  तरल पदार्थ के कारण भी नुकसान हो सकता है क्योंकि अगर तरल पदार्थ रक्त में शोषित हो जाए तो डायल शनल हाइपोनेट्रिमिया हो सकता है।

हिस्ट्रोस्कोपी निम्नलिखित अवस्थाओं में नहीं की जाती – Histroscopy is not Performed Under the Following Conditions

 

1: गर्भावस्था के दौरान।

2: पेल्विक अंगों का संक्रमण।

3 : गर्भाशय में छिद्र का होना।

4:  गर्भाशय से अत्यधिक रक्तस्राव का होना।

हिस्ट्रोस्कोपी एक नई तकनीकी है जिसके द्वारा बच्चेदानी की बहुत सी बीमारियों का पता लगाया जा सकता है और इलाज किया जा सकता है इस चीज की मदद से बच्चेदानी की भीतरी सतह को देखा जाना संभव हो गया है।

हिस्ट्रोस्कोपी (Hysteroscopy) की मदद से किन किन बीमारियों का पता लगाया जा सकता है।

जिन महिलाओं की बच्चेदानी से रक्तचाप की समस्या बनी रहती है। और दूसरी जांचों के द्वारा खून बहने के कारण, कारणों का पता नहीं चल पाता वह एंडोस्कोपी तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।  तथा रक्त स्राव के मुख्य कारण को खोजा जाना आसान हो जाता है। यदि बच्चेदानी की कैविटी में रसौली होने की वजह से अथवा एंड्रोमियम की सूजन के कारण रक्त स्राव प्रारंभ हो जाता है।  और अन्य जांचों के द्वारा उसका पता भी नहीं चल पाता परंतु हिस्ट्रोस्कोपी से इसका पता आसानी से लग जाता है।




 

बांझपन की जांच में हिस्ट्रोस्कोपी (Hysteroscopy) का क्या योगदान है ?

हिस्ट्रोस्कोपी की मदद से बांझपन के महत्वपूर्ण कारणों का पता लगाया जा सकता है।  क्योंकि बांझपन कभी-कभी सप्तम या चिपकन से हो जाता है।  और इसका पता हिस्ट्रोस्कोपी इसे सुगमता पूर्वक लगाया जा सकता है।  यही नहीं बच्चेदानी की कैविटी के  एंडोमेट्रियम कि कैंसर की शंका है।  तो भी हिस्ट्रोस्कोपी की मदद से उसका पता लगाया जा सकता है।  हिस्ट्रोस्कोपी द्वारा टी.सी.आर.ई करके बिना बड़े ऑपरेशन के और बिना टांका लगाएं हुए।  बच्चेदानी के लगभग 50% बीमारियों का सफल इलाज किया जा सकता है।

हिस्ट्रोस्कोपी (Hysteroscopy) किस उम्र वर्ग की महिलाओं हेतु अधिक उपयोगी है ?

35 वर्ष की उम्र या उससे ज्यादा उम्र की महिलाओं में बच्चेदानी से खून जाने की शिकायत हो जाते हैं।  इनमें से 30% मरीजों को इसका इलाज और कोई कारण भी मालूम नहीं होता। बच्चेदानी में रसौली हो या खून जाता रहता हो, और किसी भी चिकित्सा से रक्तस्राव को रोकने में मदद ना मिले।  तो ऐसे मरीजों की बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन करके इलाज किया जाता रहा है।  अब इस नई तकनीकी आर.सी.आई.से ऐसे मरीजों के अंदर कि वह बीमारी निकाल दी जाती है।  जिससे रक्त स्राव होता रहता है।   इसका हिस्ट्रोस्कोपी तकनीकी से इलाज करने के बाद मरीज का खून बहना बंद हो जाता है।  इस तरह बिना बड़ा ऑपरेशन किए ही खून बहना बंद हो जाता है।

बच्चेदानी की कैविटी संबंधी समस्याओं में हिस्ट्रोस्कोपी (Hysteroscopy) का क्या योगदान है ?

 

बच्चेदानी की कैविटी की बहुत ही रसौली बिना बड़े ऑपरेशन के हिस्ट्रोस्कोपी की सहायता से निकाली जा सकती है।  किसी किसी महिला के बच्चेदानी की कैविटी में एक दीवार से बन जाती है , और बच्चेदानी की कैविटी को दो भाग हो जाते हैं।  जिसके कारण बच्चा पूरे समय तक, बच्चेदानी में नहीं रह पाता और गर्भपात हो जाता है।




 

ऐसे मामलों में हिस्ट्रोस्कोपी के मदद से बिना किसी ऑपरेशन के ही कैविटी की दीवार को काटा जा सकता है। यही नहीं हिस्ट्रोस्कोपी की सहायता से copper-t अगर बच्चेदानी में फंस जाती है,  और उसका धागा नीचे से हाथ से मालूम नहीं हो पाता तो मरीज परेशान होता है | कि उसे कैसे निकाला जाए अब वह हिस्ट्रोस्कोपी की सहायता से बिना बड़ा ऑपरेशन किए ही निकाला जा सकता है।  यही नहीं मरीज को एक ही दिन में अस्पताल से छुट्टी भी दे दी जाती है।

 

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