Essay on Indian Communalism and Religion - भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता और धर्म

Essay on Indian Communalism and Religion – भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता और धर्म

प्रस्तावना

भारत को हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है | अक्सर कहा जाता है, कि भारत में धर्मनिरपेक्षवाद का भविष्य अंधकार में है | यह एक विवादास्पद विषय है| किंतु पक्ष में जो तर्क दिया जाता है, कि भारत में धर्मनिरपेक्ष समाज के निर्माण में धर्म सबसे बड़ी बाधा है, उसमें कोई दम नहीं यह कहना अधिक सही होगा कि सबसे बड़ी बाधा आजादी के बाद जो प्रचलित होती जा रही है, वह  भ्रष्ट राजनीति है।  Political Essay on Modernity and Tradition in Hindi | भारतीय राजनीति – आधुनिकता और परंपरा

 

चिंतनात्मक विकास

अपने मजहब में गहरी आस्था रखना संप्रदायिकता नहीं है | मजहब की आजादी तो हर मनुष्य का एक मौलिक अधिकार है| भारत के संविधान ने इस अधिकार को जो स्वीकारा है | सांप्रदायिकता का अर्थ मजहब का हौवा खड़ा करके लोगों की भावनाओं को भड़काना और राष्ट्रीयता के बजाय मजहबी उन्माद फैलाने, कट्टरपंथी ताकतें राष्ट्रीय को एकता व प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने से रोकती है | वास्तव में भारत में संप्रदायिकता का उदय एवं विकास ब्रिटिश शासकों द्वारा किया गया |

धर्म एवं जाति के नाम पर सभी लोगों में ईर्ष्या द्वेष एवं भेदभाव सांप्रदायिकता को जन्म देते हैं | परिणाम स्वरूप देश में हिंसात्मक घटनाएं प्रतिदिन होती रहती हैं | यह वर्तमान रहस्य की एक विकट समस्या है | जिसने समुचित राष्ट्रीय विकास के समस्त मार्ग अवरुद्ध कर दिए हैं | इससे देश की आंतरिक शांति एवं एकता ही नहीं अपितु समूचे विश्व की शांति भी भंग होती है |Essay on C Rajagopalachari | Biography of C Rajagopalachari | भारत रत्न चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जीवन परिचय

 

उपसंहार समभाव से ही राजनीति सारे देश पर अपना प्रभाव डालती है , इस कारण यह कहना सही होगा कि भारत में धर्मनिरपेक्षता का भविष्य राजनीति की प्रकृति से जुड़ा है | यदि स्वच्छ राजनीति का प्रश्न होगा और सभी दल राष्ट्रीय मुद्दों को ईमानदारी से उठाएंगे तब धर्मनिरपेक्षता का भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा |

किंतु यदि यह दिवस एवं बंटवारे की राजनीति का खेल खेलते रहेंगे , तो उनके वोट बैंक भले ही सुनिश्चित हो जाएंगे परंतु धर्म निरपेक्षताबाद और देश का भविष्य अंधकार में ही डूबा रहेगा | हमारा देश 21वीं सदी में उन्नत रूप में प्रवेश करेगा या विनाश दशा में यह इस बात पर निर्भर करेगा, कि हम इस समस्या से किस प्रकार से निपटते हैं।

 

संप्रदायिकता

 

संप्रदायिकता से तात्पर्य किसी धर्म एवं भाषा से है , जिसमें किसी समूह विशेष के हितों पर बल दिया जाता है, और इन हितों को राष्ट्रीय हितों से अधिक प्राथमिकता दी जाती है | उस समूह में पृथकता की भावना पैदा की जाती है और उसे प्रोत्साहन दिया जाता है। Why is Eid-ul-Azha or Bakrid celebrated – ईद-उल-अजहा या बकरीद क्यों मनाई जाती है

 

पारसियों, बौद्धों, जैनो तथा ईसाइयों के अपने अपने संगठन है।  साथ ही वे अपने सदस्यों के हितों की साधना में लिप्त रहते हैं।  किंतु ऐसे संगठनों को प्रायः संप्रदायिक नहीं कहा जाता | क्योंकि इनमें पृथकता की भावना नहीं होती है। इसके विपरीत हिंदू महासभा, मुस्लिम लीग एवं अन्य कुछ संस्थाओं को संप्रदायिक कहा जा सकता है।  क्योंकि वह धार्मिक अथवा भाषा समूह के अधिकारों तथा हितों को राष्ट्रीय हितों से सर्वोपरि रखते हैं।

विसेंट स्मिथ के अनुसार –




” एक सांप्रदायिक व्यक्ति जो व्यक्ति समूह है जो कि प्रत्येक धार्मिक अथवा भाषाई समूह को एक जैसी प्रथक सामाजिक तथा राजनीतिक इकाई मानता है जिसके हित अन्य समूहों से पृथक होते हैं और उनके विरोधी भी हो सकते हैं ऐसे ही व्यक्तियों अथवा व्यक्ति समूह की विचारधारा को संप्रदाय वाद य संप्रदायिकता कहां जाएगा। Essay on The First Woman President of India:- Smt. Pratibha Devi Singh Patil

” संप्रदायिक संगठनों का उद्देश्य शासकों के ऊपर दबाव डालकर अपने सदस्यों हेतु अधिक सत्ता प्रतिष्ठा तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त करना होता है।

मानव इतिहास में सदैव धर्म के नाम पर विवाद उठते रहते हैं।

 

स्वतंत्रा आंदोलन के समय अंग्रेजों ने भारत में अपना शासन बनाए रखने के लिए धार्मिक भेदभाव का विशेष लाभ उठाया | अंग्रेजी शासनकाल में सांप्रदायिक भावनाओं को राजनीतिक रुप मिलने का एक कारण यहां प्रतिनिधि या निर्वाचन संस्थाओं की स्थापना के अंग्रेज लोग प्रतिनिधित्व का अर्थ अलग-अलग समूहों वर्गो हेतु क्षेत्रों संस्थाओं और संप्रदायों का प्रतिनिधित्व समझते थे।

 

उन्होंने भारत के अनेक संप्रदाय और जातियों की समस्या को इनके स्वाभाविक अस्तित्व और एक दूसरे की आपस की वैमनस्यता की समस्या समझते समझा और उसका उपाय अलग-अलग धार्मिक समूहों को प्रथक प्रथक प्रतिनिधित्व देने में समझा।  भारत में सांप्रदायिकता की समस्या ब्रिटिश शासन की समकालीन है | Short Essay on Former PRIME MINISTER Sh. Dr. Man Mohan Singh




अंग्रेजों ने भारत में ‘ फूट डालो और शासन करो ‘ की नीति अपनाई | ताकि वे हिंदुओं और मुसलमानों को लड़ाते रहे और भारत पर अपनी हुकूमत चलाते रहें।  अंग्रेजों के आने से पूर्व भारत में हिंदू मुस्लिम शासकों और नवाबों के हाथों में सत्ता थे। ईस्ट इंडिया कंपनी उनसे डरती थी फल स्वरुप उन्होंने हिंदुओं की सहायता और सहानुभूति प्राप्त करने की।

 

कोशिश की प्लासी के युद्ध के पश्चात जब कंपनी के हाथ में शासन सत्ता आने लगी तो उसने मुसलमानों के प्रति सौतेला व्यवहार किया , और हिंदुओं को नौकरियों में प्रोत्साहन देकर मुसलमानों के प्रति उपेक्षा की नीति अपनाई | बहावी आंदोलन के रूप में मुस्लिम असंतोष व्यक्त हुआ |

 

अंग्रेजों ने मुसलमानों के विरोध और दमन की नीति अपनाई | कुछ समय पश्चात हिंदुओं के विकास उन्नति और आधुनिकीकरण की बढ़ती हुई  प्रवृत्ति से अंग्रेज डरने लगे। उन्होंने मुसलमानों से मित्रता की चतुर रिपोर्ट नीति अपनाई | इसके फलस्वरूप मोहमुण्डन एंग्लो ओरिएंटल डिफेंस एसोसिएशन की स्थापना हुई | Pandit Govind Ballabh Pant Biography (Essay) in Hindi – पंडित गोविंद बल्लभ पंत कौन थे

 

सन् 1905 में कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया था।  बंगाल का विभाजन फूट डालो और शासन करो की कुटिल नीति का ही परिणाम था | भारत में सर्वप्रथम धर्म एवं संप्रदाय की विभेद का कारण अंग्रेज ही थे | धीरे-धीरे संप्रदायिकता की भावना भारत में अपनी जड़ें मजबूत करती गयी |

 

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया।




लेकिन फिर भी भारतीय राजनीति में आज भी सांप्रदायिकता की समस्या बराबर बनी हुई है | क्योंकि भारत में अनेक जातियों तथा अनेक धर्मों से संबंधित लोग निवास करते हैं | प्रत्येक धर्म के अनुयाई अपने अपने धर्म की रक्षा करने में लगे रहते हैं | तथा धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों को प्रभावित करते रहते हैं |

 

आज राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति करने हेतु तथा चुनाव में वोट प्राप्त करने के लिए विभिन्न धर्मों में संप्रदायों का सहारा लेते हैं | मुसलमानों में पृथक्करण की भावना भी सांप्रदायिकता का कारण बनी है | इसीलिए वे अपने आप को राष्ट्रीय धारा में सम्मिलित कर पाए अनेक मुस्लिम नेताओं ने इस बात का आश्वासन दिया कि वह समय-समय पर राजनीतिक दलों का सहयोग देंगे एवं समाजवाद धर्मनिरपेक्षता एवं आर्थिक न्याय को बनाए रखेंगे।

 

परंतु वहां ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि अनेक मुस्लिम नेता चाहते थे कि मुस्लिम धर्म के हितों की रक्षा के लिए उन्हें पृथक रूप से राजनीति में भाग लेना चाहिए| स्वाधीनता से पूर्व एवं पश्चात मुसलमान आर्थिक रूप से पिछड़े हुए रहे हैं | शैक्षिक दृष्टि से भी पिछड़े होने के कारण सरकारी नौकरी व्यापार एवं उद्योग धंधों में उनकी स्थिति सुधर नहीं पाई है | जिससे उनका मनोबल गिरा है, और उनमें असंतोष बड़ा है | Indian Democracy Essay in Hindi – Challenges to Indian Democracy

 

फलतः इस असंतोष के उग्र रूप धारण कर हिंसा का रूप ले लिया है `| और जब कभी भारत में हिंदू मुस्लिम तनाव की कोई छुटपुट घटना हो जाती है, तो पाकिस्तानी रेडियो एवं समाचार पत्र इस को तूल देने का प्रयास करते हैं, तथा भारत सरकार की आलोचना करते हैं |




भारत में हिंदू संप्रदाय से संबंधित ऐसे लोग हैं जो इस बात का प्रचार करते हैं कि भारत हिंदुओं का देश है, अतः इस देश पर उन्हीं का अधिकार है इन संगठनों पर हिंदू महासभा तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विशेष रूप से प्रभाव रहा ह हैं| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुसलमानों का कट्टर विरोधी है इस प्रकार से विचार संप्रदायिकता की भावना उत्पन्न करते हैं|

 

संप्रदायिक दंगों का एक अन्य कारण सरकार एवं प्रशासन की उदासीनता भी है| अतः स्वतंत्रता के बाद भी प्रदायिकता कम नहीं हुई अपितु इसमें वृद्धि भी हुई है | किंतु इस विषय में स्थिति विभिन्न क्षेत्रों एवं नगरों में भिन्न-भिन्न है| Women Empowerment Essay in Hindi – महिला सशक्तिकरण पर निबंध

 

रत्ना नायडू के शब्दों में ऐसे नगर जिनमें बड़े सांप्रदायिक उपद्रव हुए हैं जो दो प्रकार के हैं | इनमें एक प्रकार के नगर हुए हैं जो औद्योगिक नगर है | प्रथम वर्ग के उदाहरण जमशेदपुर राउरकेला आदि हैं , और दूसरे वर्ग के उदाहरण मुरादाबाद अलीगढ़ अहमदाबाद बनारस आधे हैं।

 

वास्तव में संप्रदायिकता के भावनाओं को फैलाने वाले तत्वों राजनीतिक दल ही है | आजकल सांप्रदायिक घटनाओं के पीछे विदेशी हाथ होने की आशंका व्यक्त की जा रही है | किंतु मुस्लिम संप्रदायों की धार्मिक भावनाओं का आज दुरुपयोग किया जा रहा है | यह दर्शाने के लिए की एक संप्रदाय दूसरे को नष्ट करने पर उतारू है | उनके रीति रिवाजों एवं व्यवहारों में अंतर को उछाला जा रहा है | ऐसे मामलों का कोई स्थाई समाधान नहीं हो सकता स्वयं लोगों को आपसे आपसी दुर्भावना को समाप्त करना होगा।




इस प्रकार भय अविश्वास और दोनों समुदाय के बीच एक दूसरे के प्रति संदेह की भावना की ही संप्रदायिकता (Communalism and Religion) वैमनस्य का प्रमुख कारण है | जब सरकार समस्या के मूल कारणों की चर्चा करने के बजाए विदेशी धन और विदेशी हाथ की चर्चा करके ही संतुष्ट हो जाती हैं , तो समस्या का भयावह रूप धारण कर लेना स्वाभाविक ही है | Essay on Dr. Servapalli Radhakrishnan in Hindi | Biography of Dr Servapalli Radhakrishnan

 

सांप्रदायिकता (Communalism and Religion) के कारण भारत में आज समाज को राष्ट्रीय एकता एवं अनेक संगठनों को कितना खतरा पैदा हो गया है | इसका अनुमान भारत में होने वाली प्रतिदिन की हिंसात्मक घटनाएं बता देती हैं भारतीय राजनीति में संप्रदायिकता हेतु किसे दोषी ठहराया जाए या एक प्रश्न चिन्ह ही है |

वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता संप्रदायिकता का ही परिणाम – Communalism and Religion

 

क्योंकि संप्रदायिकता (Communalism and Religion) ही ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करती हैं, जो राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न करती हैं | यह राष्ट्रीय एकता की भी गंभीर शत्रु है क्योंकि इसी के वशीभूत हो लोग अपने अपने तुच्छ स्वार्थों एवं हितों के लिए संघर्ष करते हैं। और देश में हिंसा लड़ाई झगड़े फैलाते हैं | और प्रणाम स्वरूप लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ता है शायद ही कोई ऐसा संप्रदायिक दंगा हुआ हो, जिसमें कुछ व्यक्तियों की जाने ना गई हो। Essay on Cyber World – Its Attractions and Challenges | साइबर विश्व : इसके आकर्षण तथा चुनौतियां

 

भारत एक बहु संप्रदाय वादी देश है | यहां अनेक अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक व्यक्ति निवास करते हैं | और इन्हीं के बीच जो संप्रदायिकता झगड़े और तनाव पैदा होते हैं तथा हिंदू एवं मुसलमानों द्वारा अपने-अपने हितों के लिए सरकार से लड़ना एवं आपसी द्वेष और वैमनस्य फैलाना राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु गंभीर खतरा पैदा कर देते हैं।

 

फलता इन सभी दुष्परिणामों के कारण देश की आर्थिक हानि होती है | ना जाने कितनी दुकानें लूटी जाती है, कितनी ही राष्ट्रीय संपत्ति नष्ट हो जाती है। कितने ही लोग कार्य नहीं कर पाते।  इतना ही नहीं संप्रदायिक दंगों पर काबू पाने के लिए अत्यधिक धन व्यय किया जाता है, आर्थिक उन्नति व औद्योगिक विकास में बाधा पड़ती है ,अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी पूरा प्रभाव पड़ता है |




भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है , किंतु फिर भी भारतीय राजनीति को धर्म अथवा संप्रदाय (Communalism and Religion) विशेष रूप से प्रभावित किए हुए हैं।  एक और धर्म प्रभाव एवं शक्ति अर्जित करने का माध्यम है | तो दूसरी और इसके द्वारा राजनीति में तनाव पैदा होते हैं | क्योंकि वर्तमान समय में धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों का निर्माण होता है | तथा राजनीतिक दलों को चुनाव के समय धर्म या संप्रदायों का समर्थन मिलता है | A Letter to your friend Requesting the Loan of a Camera for Your Educational Tour

 

स्वतंत्र प्राप्ति के वर्तमान समय तक धर्म और संप्रदाय ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है | स्वतंत्र भारत में अधिकांश राजनीतिक दलों का गठन धर्म व संप्रदाय के आधार पर हुआ है, जैसे हिंदू महासभा, मुस्लिम लीग , अकाली दल आदि।

 

इन सांप्रदायिक (Communalism and Religion) दलों ने राजनीति में धर्म को विशेष महत्व दिया है, आज राजनीतिक दलों अपने हितों की पूर्ति के लिए तथा चुनाव में वोट प्राप्त करने के लिए विभिन्न धर्मों में संप्रदायों का सहारा लेते हैं | वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक राजनीतिक दल का किसी ना किसी संप्रदाय से संबंध अवश्य होता है | Biography of Arvind Kejriwal: Education, Political Journey, Books and Awards in Hindi




निष्कर्ष

 

यह कहा जा सकता है, कि हम भारतीय हैं।  हमें इस बात पर गर्व है क्योंकि यहां विभिन्न धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं।  इसीलिए भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है।  जिससे कि धर्म (Communalism and Religion) को राजनीति से हटाया जाए किंतु धर्म का प्रभाव व्यवहारिक रूप से भारतीय जनता के मन मस्तिष्क से नहीं मिल पाया है |

 

आज भी जन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में धर्म के आधार पर भेदभाव किए जाते हैं | राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दल धर्म एवं संप्रदाय को राजनीतिक सफलता के लिए एक साधन के रूप में अपनाते रहे हैं | सांप्रदायिक झगड़े भले ही छुटपुट और स्थानीय हों, लेकिन उनसे देश की बदनामी होती है | और उसका लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष स्वरूप कलंकित होता है।  क्योंकि संप्रदायिकता (Communalism and Religion) का उद्देश्य से गुंजित हितों की रक्षा करना होता है |

 

अतः राष्ट्रीय नेताओं पर यह दायित्व है, कि वे समुदाय के सीमित तथा राष्ट्र के वृहत्तर हितों के मध्य संतुलन स्थापित करें समुदाय को राष्ट्र में बदले भविष्य में यह आशा व्यक्त की जा सकती है | कि राजनीतिक चेतना एवं लोकतांत्रिक आदर्शों एवं मूल्यों में वृद्धि होने से देश में धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप भी निखरता जाएगा।




यह भी पढ़े

  1. प्रधानमंत्री जन औषधि योजना|| PMJAY
  2. Insomnia Causes Weight Gain
  3. Difference Between Cash Memory And Main Memory || कैश मेमोरी Vs मेन मेमोरी Vs वर्चुअल मेमोरी
  4. सार्वजनिक पार्क में अवैध निर्माण के बारे में पुलिस आयुक्त को पत्र ||Letter to Commissioner of Police regarding illegal construction in public park
  5. साप्ताहिक करेंट अफेयर्स : 01 जून से 07 जून 2020 तक | Weekly Current Affair 01 June to 07 June 2020
  6. निबंध – भारतीय चुनाव की प्रक्रिया || Process Of Indian Election मित्र को शैक्षिक दौरे के लिए कैमरा मांगने के लिए पत्र || Write A Letter To Friend Asking For Camera For Educational Tour
  7. साप्ताहिक करेंट अफेयर्स : 25 मई से 31 मई 2020 तक | Weekly Current Affair 25 May to 31 May 2020
  8. आई.पी.सी.की धारा 292 में क्या अपराध होता है

  9. भारतीय राजनीति – आधुनिकता और परंपरा




Post a Comment

0 Comments