Side Effects of Haste in Hindi | उतालेपन का दुष्परिणाम

Side Effects of Haste in Hindi | उतावलापन का दुष्परिणाम

 

एक व्यक्ति अपने ऑफिस में बैठा बार-बार फोन नंबर डायल कर रहा था। किंतु नंबर मिल नहीं रहा था, वह जिसे संबंध स्थापित करना चाह रहा था। उसी से संबंध स्थापित नहीं हो पा रहा था। और हर बार इंगेज टोन आ रही थी। उसके इस उतावलापन का कारण यह था, कि वह एक बड़ी कंपनी का स्वामी था। और उसकी कंपनी के शेयरों के भाव अकस्मात तेजी से गिरता जा रहा था अपनी कंपनी की तेजी से गिरती साख से वह बहुत उत्तेजित और परेशान था, और कुछ अच्छा सोच भी ना पा रहा था।



इस समय वह चाहता था, कि जितनी जल्दी हो सके वह अपने ब्रोकर से संपर्क स्थापित करके उससे सही जानकारी ले। और कुछ आवश्यक निर्देश भी उसे दें। किंतु ब्रोकर का फोन नहीं मिल पा रहा था। जिसे वह पिछले आधे घंटे से ट्राई कर रहा था। धीरे-धीरे उसका पारा चढ़ता जा रहा था। अंततः उसने क्रोधित होकर फोन को जमीन पर पटक दिया। वह पसीने पसीने हो रहा था। उसका शरीर कांपने लगा था। और फिर उत्तेजना इस हद तक बढ़ गई थी, कि वह बेहोश होकर कुर्सी पर लुढ़क गया।  How to Create Positive Energy at Home | घर मे सकारात्मक ऊर्जा बनाये रखने के बेस्ट तरीके


ऐसे समय में उसे उतावलापन से काम नहीं लेना चाहिए था। बल्कि ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए था  कि इस मुसीबत से वह कैसे निकले।  उसकी ऐसी नकारात्मक सोच ने ही उसे इस अवस्था को पहुंचा दिया।

 

उतावलापन Haste से किए गए काम का दुष्परिणाम


किसी भी काम को सुस्ती से नहीं बल्कि तेजी से करना चाहिए। तथा आज का काम कल के लिए भी नहीं डालना चाहिए। किंतु इसका अभिप्राय यह नहीं कि आप जो भी काम करें, उसमें उतावलापन दिखाएं। उतावलापन से किए गए काम का दुष्परिणाम जल्दी ही सामने आ जाता है। आपके काम अटके हुए हैं, पूरे नहीं हो पा रहे हैं।

 

आप उन्हें खत्म करने में उतावलापन कर रहे हैं। काम है कि फिर भी निपट नहीं पा रहा है। हर बार कुछ गलती हो जाती है। इसका कारण केवल उतावलापन है। यदि काम में सुस्ती ना हो तो उतावलापन भी ना होना चाहिए। तेज चलना और दौड़ना दोनों में बहुत फर्क है। Difference Between Citizenship and Residentship || नागरिकता और निवासी में अन्तर 


प्रत्येक कार्य को शांति और आनंद के साथ और सोच समझ कर करना चाहिए।

 

एक कंपनी के फ्रंट ऑफिस में एक व्यक्ति कंप्यूटर के सामने बैठा था, और उसकी उंगलियां बड़ी तेजी से की-बोर्ड पर चल रही थी। यह देख एक मैनेजर ने उसे बुलाया, और कहा कि वह अपने सभी सहयोगियों को इसी प्रकार तेजी से काम करने की सलाह दें। किंतु उसने सभी लोगों से कहा कि आप सब तेजी से नहीं बल्कि धीरे-धीरे का काम करिए, तो उसकी यह बात सुनकर मैनेजर चौक पड़ा। उसने उस व्यक्ति से पूछा, “तुमने ऐसा क्यों कहा? “


“कभी-कभी कीबोर्ड पर मेरी उंगलियां इसीलिए तेजी से चलती है, क्योंकि मेरे मन में यह बात होती है, जो मस्तिष्क में आया है, उसे जल्दी जल्दी से ना लिख दिया, तो कहीं वह मस्तिष्क से निकल ना जाए। अन्यथा मेरा या अनुभव है, कि जिस सप्ताह मैं कंप्यूटर अपनी गति आधी रखने का प्रयास करता, हूँ। उस सप्ताह के अंत में मेरी गति निश्चित रूप से सदा अधिक हो जाती है। और यह नियम सभी कामों में काम देता है। मैं समझता हूं, सकारात्मक ढंग से काम करने का यह एक अच्छा तरीका है। Complaining Letter to Municipal Commissioner for Irregular water Supply || अनियमित जलापूर्ति के लिए नगर आयुक्त को शिकायत पत्र


मेरे एक मित्र थे जो वायलन पर एक गीत बजाना सीख रहे थे, किंतु वे गत पकड़ नहीं पा रहे थे। उनके म्यूजिक टीचर ने जो स्वर लिखकर दिए थे, वे उसे तेजी से बजा लेना चाहते थे, और हर बार असफल हो रहे थे। इस कारण वे झल्ला रहे थे। फिर टीचर के कहने पर उन्होंने वायलन को बहुत धीरे धीरे बजाना शुरू किया। इस बात का बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ा। एक सप्ताह में ही यह स्पष्ट हो गया, कि अब वह गीत  मनचाही तेजी से और सही ढंग से बजा पा रहे हैं। उससे उन्हें ऐसा लगता है, जैसे वायलन खुद ही बज रहा है।


यह बात हर एक काम में लागू होती है, किसी भी चतुराई भरे काम को करने की रीति व कला तब तक पूरी तरह हस्तगत नहीं हो सकती, जब तक कि उसके कार्य की पद्धति हमारे अंतर्मन में स्थापित ना हो जाए। जब तक कि हम उस पद्धत की ओर ध्यान दिए बिना उसे करने न लग जाएं। और जब तक उस कार्य को करने में आनंद ना आने लगे एक संगीतकार का अंतर्मन में उसकी उंगलियों को सांजो पर स्वयं चलाता रहता है, यह बात सदा याद रखिये। Bharat Ratna Dr. Bidhan Chandra Roy Biography in Hindi – भारत रत्न डॉ बिधान चंद्र राय का जीवन परिचय

 

जब हम उतावलापन Haste से काम लेते हैं



किंतु जब हम उतावलापन से काम लेते हैं, तब हमारे अंतर्मन को अपना काम स्वाभाविक विधि से करने में बाधा पड़ती है। जल्दबाजी की दशा में मस्तिष्क तेजी से काम करने की इच्छा का भार काम पर लाद देता है। इससे अंतर्मन की काम करने की अपनी गति बिगड़ जाती है। और काम जल्दी होने के बजाय देरी से होता है।


जब हम कुछ सीख रहे होते हैं ,या कोई काम करते हैं, तब हम जो करते हैं, वह हमें सोच कर करना पड़ता है। और बार-बार वही काम करने पर उसके पद्धति हमारे अंतर्मन पर आप हो जाती है। काम के साथ जोर जबरदस्ती अंतर्मन की इस स्वाभाविक पकड़ में बाधा पहुंचाती हैं। इसी प्रकार काम को धीरे धीरे सीखने पर उस पर जल्दी का बोझ ना डालने पर हम उस काम को पूरी तरह सीखते हैं, और फिर हम उसे बिना कोशिश के बड़ी आसानी से कर सकते हैं। How to be a good leader – Improve Good Leadership- एक अच्छा लीडर कैसे बने



जल्दबाजी का हमारे कार्य करने की गति से कोई संबंध नहीं है, जल्दबाजी तो केवल एक मानसिक अवस्था है, एक व्यक्ति तेजी से कंप्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलियां चला रहा था, वह जबरदस्ती कर रहा था। अपनी गति में तेजी लाने के लिए अपनी पूरी इच्छाशक्ति लगा रहा है। तो इसका अर्थ है। कि वह जल्दबाजी से काम ले रहा है। स्वतंत्रता दिवस पर निबंध – A Long Essay on Independence Day In India


इसके विपरीत एक दूसरा व्यक्ति बिना किसी प्रयास के स्वयं पर बिना किसी तरह का जोर डाले दूगनी तेजी से काम करता है, तो उसके मन में कोई तेजी नहीं है। और तेजी से काम करने का उसके मस्तिष्क पर कोई भार भी नहीं है। वह अपना कार्य तेज करता है, पर मन से जल्दी नहीं।

 

उतावलापन केवल धोखा है



काम धीरे सीखने की पद्धति का रहस्य यह है, कि यह हमें अभ्यास का मौका देता है। और हमारे मस्तिष्क को कार्य के बाहर से सर्वथा मुक्त रखता है। उतावलापन केवल धोखा है, यह सोचना कि कार्य शीघ्र अतिशीघ्र किया जाए, तो अधिक हो सकता है। यह भूल है, बल्कि सत्य एकदम इसके विपरीत है। जल्दबाजी, उत्सुकता, दबाव और इन सब से मस्तिष्क पर पड़ने वाला खिचाव हमारे कार्य की गति धीमी ही नहीं कर देता, बल्कि ऐसी दशा में काम घटिया किस्म का भी होता है। Hindi Essay on Female Foeticide a Curse – कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप


मन की इस दशा का प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। प्रायः उतावली में रहने वालों को नाणी, दौर्बल्य आ घेरता है, और उसके मन की शांति चली जाती हैं। जिनमें उतावलापन नहीं होता, जो हमेशा जल्दबाजी से दूर रहते हैं, उनका जीवन सकारात्मक और शांतिपूर्ण होता है। और वह प्रत्येक कार्य को बड़े मनोयोग और आनंद से करते हैं।

 

ध्यान रखिए शांत गंभीर और विचार वान पुरुष ही जीवन में कुछ कर पाते हैं। जबकि भागदौड़ विलंब होने के बाद से ग्रस्त व्यक्ति सिर्फ अपने काम को खराब ही करते हैं। उतावलापन मानसिक शांति स्वास्थ्य और प्रसन्नता का हरण करता है। और इसके दुष्परिणाम शीघ्र ही सामने आ जाते हैं। इसीलिए इससे बचना ही अच्छा है। Eid-Ul_Fitar Essay in Hindi – ईद-उल-फितर पर निबंध

 

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