पंडित नेहरू की पंचशील के सिद्धांत पर निबंध

स्व. पंडित नेहरू (Pandit Jawaharlal nehru) और पंचशील



स्व. पंडित नेहरू (Pandit Jawaharlal nehru) द्वारा प्रस्तुत पंचशील का सिद्धांत जो उस समय काफी लोकप्रिय हुआ के सिद्धांत के 5 शील इस प्रकार थे –



1- एक दूसरे की भौगोलिक अखंडता का सम्मान करना तथा सार्वभौमिकता का भी सम्मान करना 



इसका अर्थ यह है, कि सभी स्वतंत्र राष्ट्र अपनी एक सार्वभौमिक शक्ति रखते हैं, जिसके अंतर्गत उनके अंदरूनी मामलों में कोई दूसरा राष्ट्रीयता हस्तक्षेप नहीं कर सकता ना उस पर आक्रमण ही कर सकता है, उसके फल स्वरुप बड़े राष्ट्रीय छोटे राष्ट्रीय का नीति निर्धारण नहीं कर सकते और उन्हें निगल भी नहीं सकते |


2- पंचशील का  दूसरा सिद्धांत – आक्रमण की नीति का परित्याग


पंचशील एक तरह से प्रथम सेल से ही निकाल निकलता है उसको स्पष्ट रूप से रेखांकित करना इसलिए आवश्यक था कि मजबूत राष्ट्र अभी आसपास के कमजोर राज्यों को हड़पने के लिए तैयार बैठे थे या काल्पनिक बात नहीं है 1948 में ही इंग्लैंड ने इंडोर्स इंडोनेशिया पर आक्रमण कर दिया था |

3- एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना 



यह शील भी प्रथम सीढ़ी से निकलता है, एक दूसरे की सार्वभौमिकता का सम्मान करने का तात्पर्य है कि एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाए पर इस बात को और दृढ़ करने के लिए पंचशील के एक शील रूप में इसे अपनाया गया |

4- समानता एवं आपसी लाभ

इस शील के अंतर्गत छोटे बड़े तथा धनी गरीब देशों को एक दूसरे के समान समझना था, इससे कोई भी देश हीं भावना से ग्रस्त नहीं होता आपसी लाभ से तात्पर्य यथासंभव एक दूसरे की आर्थिक सहायता से था जिससे पिछड़े देशों का भी विकास संभव हो सके |

5- शांतिपूर्ण सह अस्तित्व

यह पंचशील के सिद्धांतों का केंद्र बिंदु था। शांतिपूर्ण तरीके से एक दूसरे के साथ रहना ही या सुनिश्चित कर सकता था| कि एक दूसरे पर ना तो आक्रमण कर सकता था, और न कोई भी देश उसके आंतरिक मामलों में दखल दे सकता था। 

पंडित नेहरू (Pandit Jawaharlal nehru) ने चीन जो उस समय भारत का एक बड़ा पड़ोसी था और जिसके आबादी 600000000 अर्थात भारत की जनसंख्या से डेढ़ गुनी थी को पंचशील का सिद्धांत अपनाने पर जोर दिया।  चीन ने इसे मान भी लिया किंतु दुर्भाग्यवश जैसा कि पहले बताया गया पंचशील की अवमानना करते हुए उसने भारत पर 1962 ई० में आक्रमण बोल दिया। 

इस आक्रमण जनित सदमे के फल स्वरुप नेहरू बुरी तरह आश्वस्त हो गए और अंततः मई 1964 में उनका स्वर्गवास हो गया उनका स्वर्गवास होने के साथ-साथ नेहरू युग समाप्त हो गया। 

 

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