पंडित नेहरू (Pandit Jawaharlal nehru) की विदेश नीति निबंध

पंडित  नेहरू (Pandit Jawaharlal nehru) की विदेश नीति

पंडित  नेहरू की विदेश नीति  :- नेहरू काल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि इस की विदेश नीति भी थी, नेहरू एक अंतरराष्ट्रीय नेता थे। वो भारत को एक सुदृढ़ एवं पूर्णतया स्वावलंबी देश के रूप में देखना चाहते थे। उस समय संपूर्ण विश्व दो गुटों में बंटा हुआ था | ये एक गुट अमेरिका का था, और दूसरा सोवियत संघ का।

 

भारत नेहरू के नेतृत्व में दो गुटों में से किसी से सम्मिलित नहीं हुआ, उसने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई उसकी विदेश नीति इस आधार पर अवस्थित थी।  नेहरू (Pandit Jawaharlal nehru) का विचार था कि एशिया एवं अफ्रीका के हाल में स्वतंत्र हुए गरीब देशों को बड़ी शक्तियों वाले सैनिक गुटों से जुड़ने से लाभ के बदले हानि होगी।  इन देशों की समस्याएं गरीबी, बीमारी तथा निरपेक्षता की थी।    इनके उन्मूलन के लिए युद्ध अथवा तनाव नहीं बल्कि शांति की आवश्यकता थी।




 

 भारत अपनी निष्पक्ष विदेश नीति के फल स्वरुप अपना मार्ग स्वयं निर्धारण कर सकता था | अतः उचित या अनुचित कदमों की पहचान वह स्वयं करने में समर्थ था। गुटनिरपेक्ष अथवा निष्पक्ष रहकर ही वह अपने विचार विश्व के समक्ष रख सकता था। नेहरू ने इस गुटनिरपेक्षता के संबंधों में अपना विचार यू रखा था –

जहां तक उपनिवेशवाद फासिज्म और रंगभेद की बुरी शक्तियों या न्यूक्लि न्यूक्लियर बम और अपनों के दमन के प्रश्न है, हम जोरदार रूप से और किसी दुविधा के बिना उनके विरुद्ध हैं हम शीत युद्ध और सैनिक गुटों से दूर ही रहते हैं | एशिया और अफ्रीका के नवीन राष्ट्रीय को शीत युद्ध की मशीन का पूजा बनाने पर विवश करने का हम विरोध करते हैं वैसे भी हम हर उस वस्तु का विरोध करने के के लिए स्वतंत्र है, जिसे हम संसार या अपने लिए गलत या हानिकारक मानते हैं ,और जब कभी आवश्यकता पड़ी हम इस स्वतंत्रता का उपयोग करते हैं |

भारत के पश्चात स्वतंत्र होने वाले देशों को एक साथ जोड़ने के लिए नेहरू (Pandit Jawaharlal nehru) की विदेश नीति सर्वथा उपयुक्त थी , भारत एक बड़ा राष्ट्र होने के कारण इन देशों का सहज ही मार्ग निर्देश कर सकता था।




भारत की गुटनिरपेक्ष अवश्य था, किंतु पंडित नेहरू (Pandit Jawaharlal nehru) ने सोवियत संघ से बिना उसके ग्रुप में सम्मिलित हुए अपनी मित्रता बढ़ाई। यह भारत पर स्वाभाविक आक्रमणों के खतरे को ध्यान में रखकर किया गया।  दूसरी और नेहरू ने युद्ध का पुरजोर विरोध किया तथा नागासाकी और हिरोशिमा पर किये गए एटम बम की घटना का संस्मरण कराते हुए उनके लिए युद्ध के प्रति सभी देशों को आगाह किया।  उन्होंने शांति निशस्त्रीकरण तथा एटम बम की समाप्ति का उद्देश्य विश्व के समक्ष दृढ़ता से रखा।  उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि विभिन्न विचारधाराओं और व्यवस्थाओं वाले देशों के मध्य शांतिपूर्ण सह अस्तित्व आज की आवश्यकता है।




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