भाषा, लिपि, बोली और व्याकरण की परिभाषा - Language, Script, Dialect and Grammar

भाषा, लिपि, बोली और व्याकरण की परिभाषा

 

भाषा की परिभाषा :- मेहुल और उसके साथियों को वैज्ञानिक नटराजन ने ऐसे गैज़ेट बनाकर दिए जिनसे वे किसी भी काल जा सकते हैं । उस काल में पहुँचने पर वहाँ के लोगों की भावनाओं व संकेतों को वे गेज़ेट के माध्यम से समझ सकते हैं। बच्चो ! मेहुल और उसके साथियों के मध्य हुई बातचीत को पढ़ा और समझा। आदिमानव अपनी बात को कुछ अजीब उच्चारणों और संकेतों द्वारा कह रहे हैं। मेहुल और उसके साथी गैज़ेट के द्वारा आदि मानव के भावों और बातों को समझकर हमें अपनी भाषा द्वारा समझा रहे हैं।

बच्चो ! आपको बता दें कि मानव जीवन के लिए प्रकृति द्वारा प्रदान की गई अनमोल धरोहर है- भाषा। भाषा का मानव जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। अपनी इसी विशेषता के कारण मानव प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। भाषा संसार के व्यवहार का मूल है। हम सुख-दुख, जो कुछ भी अनुभव करते हैं, उसे भाषा के माध्यम से ही अभिव्यक्त करते हैं। अर्थात् भाषा ही मानव के पास एक ऐसा साधन है, जिसके माध्यम से वह समाज में अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है।

यद्यपि संकेतों द्वारा भी मनुष्य कुछ स्थितियों में अपने मनोभावों को प्रकट करता है। संकेतों द्वारा पूर्ण भाव प्रकट नहीं किए जा सकते और न ही संकेतों दुवारा पूर्ण रूप से मनोभावों को समझा जा सकता है। क्योंकि मेहुल और उसके दोस्तों के पास गैज़ेट थे इसलिए वे उनकी सांकेतिक भाषा को पूर्ण रूप से समझ गए, जबकि व्याकरण में सांकेतिक भाषा का महत्त्व नहीं है।

भाषा की परिभाषा

भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने भावों व विचारों का आदान-प्रदान करता है। यह मुख से निकली वह सार्थक ध्वनि है, जो हमारे विचारों को दूसरो तक तथा दूसरों के विचारों को हम तक पहुँचाती है।

भाषा के रूप

भाषा के मुख्यत: दो रूप होते हैं-

  1. मौखिक भाषा
  2. लिखित भाषा

1. मौखिक भाषा की परिभाषा 

 

रविन्द्र ने अपने नौकर को बुलाया और कहा, “केशव कल मेरी बेटी का जन्मदिन है। हम चाहते हैं कि तुम अपने परिवार सहित इस जन्मदिन पार्टी में जरूर आना।”

 

“जी, सर, हम बिटिया की जन्मदिन पाटी में ज़रूर आएंगे। बिटिया से मिलकर हमारे बच्चे बहुत खुश होंगें।” केशव ने अपने मालिक से कहा।

 

जब हम अपने विचार बोलकर प्रकट करते हैं तो वह भाषा का मौखिक रूप होता है। मौखिक रूप ही भाषा का प्राचीन व मूल रूप है। ऊपर दिए गए वार्तालाप में भाषा का मौखिक रूप है। क्योंकि रविन्द्र ने अपने मनोभावों को बोलकर प्रकट किया। केशव ने भी रविन्द्र की बात का उत्तर बोलकर ही दिया।

 

2 लिखित भाषा की परिभाषा 

 

केशव के छोटे बेटे ने रविन्द्र की बेटी के लिए जन्मदिन कार्ड बनाया और कार्ड के अंदर लिखा आपको जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ। केशव की बेटी ने भी जन्मदिन कार्ड बनाया और उसके अंदर लिखा- तुम हो मम्मी- पापा की प्यारी गुड़िया, खुशियों से भरी रहे तुम्हारी जीवन बगिया।



यह भाषा का लिखित रूप है। जब हम अपने विचारों का आदान-प्रदान लिखकर करते हैं तो वह भाषा का लिखित रूप होता है। इसका विकास मौखिक भाषा को अंकित करने के उद्देश्य से किया गया। इसी के द्वारा महापुरुषों द्वारा दिया गया ज्ञान संचित किया गया है और वह आज भी सुरक्षित है। अपने विचारों का आदान-प्रदान लिखकर करना भाषा का लिखित रूप है।

 

लिपि किसे कहते है

 

भाषा को लिखने का ढंग लिपि कहलाता है। अलग-अलग भाषाओं की अलग-अलग लिपि होती है; जैसे-

 

भाषालिपि
संस्कृतदेवनागरी
हिंदीदेवनागरी
मराठीदेवनागरी
उर्दूफ़ारसी
अंग्रेज़ीरोमन
पंजाबीगुरुमुखी

 

 

संसार में अनेक भाषाएँ प्रचलित हैं परंतु सभी भाषाओं के लिखित रूप नहीं होते। इसलिए संसार में कुछ लिखित भाषाएँ हैं तो कुछ मौखिक भाषाएँ भी हैं। जो भाषाएँ लिखी जाती हैं, उनके शुद्ध रूप को मानक भाषा कहते हैं। मानक भाषा में श्रेष्ठ साहित्य की रचना होती है, उसी में सरकारी कामकाज होता है, इसीलिए उसे साहित्यिक भाषा और राजभाषा भी कहा जाता है।

 

सांकेतिक भाषा की परिभाषा

 

सांकेतिक भाषा – यह भी भाषा का एक रूप है। इसका प्रयोग दैनिक जीवन में बहुत बार किया जाता है। पशु-पक्षियों यातायात के चिह्न, मूक-बधिरों द्वारा की गई बातचीत में इस भाषा का ही प्रयोग किया जाता है। खेलों में एम्पायर द्वारा सीटी या संकेतों के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किए जाते हैं, किंतु यह भाषा व्याकरण के अध्ययन का विषय नहीं है।




मातृभाषा क्या होती है

 

मातृभाषा वह भाषा होती है, जो बच्चा सबसे पहले अपने परिवार से बोलना सीखता है। भारत में विभिन्न परिवार भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलते हैं; जैसे – एक बंगाली बच्चा बंगाली बोलता है। एक पंजाबी बच्चा पंजाबी, मद्रासी बच्चा – तमिल, मलयाली, उत्तराखंड का बच्चा गढ़वाली, कुमाऊँ, गुजरात का बच्चा – गुजराती, राजस्थान का राजस्थानी बोलता है। ये उनकी मातृभाषाएँ हैं। जिसे बच्चा रोज़ परिवार में सुबह शाम सुनते-सुनते सीख जाता है।

 

राजभाषा की परिभाषा

 

राजभाषा वह भाषा होती है जिसका प्रयोग देश के सरकारी कार्यालयों, संस्थानों और विद्यालयों में कामकाज के लिए किया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को भारत की संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया।

 

राष्ट्रभाषा की परिभाषा

 

राष्ट्रभाषा वह भाषा है, जिसका प्रयोग देश के अधिकतर निवासी करते हैं। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा कहा जाता है। क्योंकि इस का प्रयोग भारत के 70 प्रतिशत निवासी किसी-न-किसी रूप में करते हैं।




मानकभाषा की परिभाषा

 

जब किसी भाषा के प्रयोग का विस्तार बढ़ता है तो उसकी एकरूपता को बनाए रखना असंभव हो जाता है। हिंदी का क्षेत्र व्यापक है। हिंदी भाषा पर अलग-अलग राज्यों की बोलियों और उपभाषाओं का प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण शब्दों या वर्णों के एक से अधिक रूप हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में हिंदी भाषा का कौन-सा रूप शुद्ध है तथा कौन-सा रूप अशुद्ध है, जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसलिए भाषा की एकरूपता के लिए विद्वान एंव शिक्षाविद् जिस भाषा को मान्यता प्रदान करते हैं, उसे मानक भाषा कहते हैं।

 

अमानक रूपमानक रूप
आयीआई
नयेनए
सम्बन्धसंबंध
सन्तसंत




भारत की मान्यता प्राप्त भाषाएँ

 

भारतीए संविधान में बाईस भारतीए भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है।

 

असमियागुजरातीकोंकणीउड़िया पंजाबीसंस्कृतउर्दू
बांगलाहिंदीमैथिलीनेपालसंथाली
बोडोकन्नडमणिपुरीमराठीसिंधी
डोगरीकश्मीरीतेलुगुमलयालमतमिल

बोली की परिभाषा

बोली भाषा का क्षेत्रीय या स्थानीय रूप होता है। यह भाषा का अल्पविकसित या अर्धविकसित रूप है। इसे सामान्यत: बोलचाल में ही प्रयोग किया जाता है। इसमें बहुत अधिक साहित्य की रचना नहीं की जा सकती। हमें कई बोलियों में लोकगीतों के रूप में कुछ साहित्य उपलब्ध हैं। महाकवि सूरदास और तुलसीदास ने ब्रज और अवधी में उच्च कोटी की साहित्य रचना कीं। बोली अपना विकास नहीं कर पाई इसलिए बोली तक सीमित रह गई। केवल खडी बोली अपना विकास करती हुई आज आधुनिक हिंदी भाषा के रूप में प्रचलित हो गई है। कुछ बोलियाँ मैथिली, भोजपुरी,हिमाचली, अवधी, बघेली, मगही, कन्नौजी आदि हैं।




उपभाषा की परिभाषा

 

जब बोली का क्षेत्र थोड़ा बड़ा हो जाता है। तब वह उपभाषा का रूप ले लेती हैं। उपभाषाओं में साहित्य की रचना होती है। एक उपभाषा की कई बोलियाँ होती है। अवधी, ब्रज तथा राजस्थानी बोलियोंका क्षेत्र बड़ा था इसलिए इनमें साहित्य की रचनाएँ भी हुई। इसीलिए ये उपभाषाएँ बन गईं। हिंदी को पाँच उपभाषा वर्गों में बाँटा गया है। ये उपभाषा वर्ग तथा इनकी बोलियाँ इस प्रकार हैं-

  1. बिहारी – मगही, मैथिली, भोजपुरी
  2. पहाड़ी – कुमाऊँनी, गढ़वाली, हिमाचली
  3. राजस्थानी – मारवाड़ी, ढूढांड़ी, हारड़ीती, मेवाती, जयपुरी, मालवी
  4. पूर्वी हिंदी – अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी
  5. पश्चिमी हिंदी – खड़ी बोली, ब्रज भाषा, बुंदेली, कन्नौजी, बांगरू, हरियाणवी




व्याकरण की परिभाषा

 

देखो, प्रिया नाच रहा है।, हम सभी का चलना चाहिए।

 

उपर्युक्त दोनों वाक्य अशुद्ध हैं। प्रथम वाक्य में प्रिया के साथ क्रिया का स्त्रीलिंग रूप लगना चाहिए-

  • देखो, प्रिया नाच रही है।

 

दूसरे वाक्य में का कारक के स्थान पर को कारक का प्रयोग होना चाहिए-

  • हम सभी को चलना चाहिए।

 

व्याकरण के नियम ही हमें इन अशुद्धियों का ज्ञान कराते हैं। अत: कहा जा सकता है कि व्याकरण के बिना किसी भाषा का शुदूध ज्ञान नहीं हो सकता। व्याकरण के दुवारा ही हम भाषा का शुद्ध प्रयोग सीखते हैं। हर भाषा के अपने-अपने नियम और अपनी-अपनी व्यवस्था होती है। भाषा की शुद्धता और एकरूपता बनाए रखना ही व्याकरण का कार्य है। अर्थात् व्याकरण वह शास्त्र है, जो भाषा को शुद्ध रूप में लिखना, पढ़ना, बोलना और समझना सिखाता है;

 

व्याकरण के तीन अंग हैं-

व्याकरण के अंग

  1. वर्ण-विचार
  2. शब्द-विचार
  3. वाक्य-विचार

 

  1. वर्ण-विचार– इसके अंतर्गत वर्णों के आकार, उच्चारण, उत्पत्ति आदि पर विचार किया जाता है।
  2. शब्द-विचार– इसके अंतर्गत शब्दों के रूप, भेद, प्रकार, लिंग, वचन, काल, उत्पत्ति तथा बनावट पर विचार किया जाता है।
  3. वाक्य-विचार– इसके अंतर्गत वाक्य रचना, भेद आदि पर विचार किया जाता है।

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