वर्ण विचार किसे कहते हैं
” आज बारिश आनेवाली है।” बोला गया वाक्य पाँच शब्दों से बना है -आज, बारिश, आने, वाली, है।
इन शब्दों में आए वर्ण हैं-
आज – आ + जु + अ
बारिश – ब् + आ + ऱ + इ+ श + अ
आने – आ + न + ए
वाली – व् + आ + ल+ ई
है – ह +ऐ
इन वर्णों को और नहीं तोड़ा जा सकता। वर्ण के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं-
* वर्ण भाषा का आधार है।
* वर्णों के और टुकड़े नहीं किए जा सकते।
* हर भाषा में वर्णों की संख्या अलग-अलग होती है।
* वर्णों की संख्या कम-ज्यादा हो सकती है।
* वर्णों के मेल से ही शब्द बनते हैं और शब्दों के मेल से वाक्य बनते हैं।
वह छोटी-से-छोटी ध्वनि या मुँह से निकली आवाज़, जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते, वर्ण कहलाती है।
जब सभी वर्ण क्रमबद्ध समूह में लिखे होते हैं, तो वर्णमाला कहलाती है। हिंदी की वर्णमाला इस प्रकार है-
- स्वर – अ , ओ ,औ, आ, इ, उ, ए, ई, ऊ, ऋ, ऐ
- स्पर्श व्यंजन –
क, | ख, | ग, | घ, | ङ |
च | छ | ज | झ | |
ट | ठ | ड | ढ | ण |
त | थ | द | ध | न |
प | फ | ब | भ | म |
- अंतःस्थ व्यंजन – य, र, ल, व
- ऊष्प व्यंजन – श, ष, स, ह
- संयुक्त व्यंजन – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
- अयोगवाह – अं (अनुस्वार) अ: (विसर्ग)
- अनुनासिक – अँ
- अतिरिक्त व्यंजन – ड़ , ढ़
वर्ण के भेद
वर्ण के दो भेद होते हैं-
1. स्वर
2. व्यंजन
1. स्वर किसे कहते है
जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से निकलनेवाली वायु बिना किसी रुकावट के बाहर निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में ग्यारह (11) स्वर होते हैं।
स्वरों के भेद
स्वरों को दो भागों में बाँटा गया है-
(1) हस्व स्वर
(ii) दीर्घ स्वर
हस्व स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में कम से कम समय लगता है, उन्हें हस्व स्वर कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में चार हस्व स्वर हैं- अ, इ, उ तथा ऋ हृस्व स्वरों को मूल स्वर भी कहा जाता है। ऋ लिखित वर्णमाला में तो स्वर है, परंतु इसका उच्चारण रि (व्यंजन) की तरह होता है।
दीर्घ स्वर- जो स्वर हृस्व स्वर की अपेक्षा बोलने में लगभग दुगुना समय लेते हैं, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में सात दीर्घ स्वर हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ और औ । इन्हें गुरु अथवा द्विमात्रिक स्वर भी कहा जाता है।
2. व्यंजन किसे कहते है
जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं और जिनके उच्चारण में वायु मुख के अलग-अलग भागों से टकराकर बाहर निकलती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं, जैसे- क, ख ग, घ, ङ, च, छ आदि। इनकी संख्या तैंतीस ( 33) हैं। व्यंजनों को बिना स्वर के लिखते समय या तो उनके नीचे हलंत () लगा दिया जाता है अथवा उन्हें आधा लिखा जाता है. जैसे- विद्या, वक्त, शुद्ध, संख्या आदि।
व्यंजनों के भेद
व्यंजनों के तीन भेद हैं-
(i) स्पर्श व्यंजन
(i) अंत:स्थ व्यंजन
(ii) ऊष्म व्यंजन
- स्पर्श व्यंजन- जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु मुख के विभिन्न भागों; जैसे- कंठ, तालु. दंत, मूर्धा आदि को स्पर्श करतां हुई बाहर निकलती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। क से लेकर म तक सभी व्यंजन स्पर्श व्यंजन हैं। इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है और हर वर्ग का नाम वर्ग के पहले वर्ण के नाम पर रखा गया है। इनकी संख्या पच्चीस है-
कवर्ग – क, ख, ग, घ, ङ, कंठ से बोले जाते है।
चगर्व – च, छ, ज, झ, तालु से बोले जाते है।
टबर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण मूर्धा से बोले जाते है।
तबर्ग – त, थ, द, ध, न, दंत से बोले जाते है।
पवर्ग – प, फ, ब, भ, म, ओष्ठ से बोले जाते है।
- अंत:स्थ व्यंजन- जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ मुख के किसी भी भाग को पूरी तरह स्पर्श नहीं करती, उन्हें अंत:स्थ व्यंजन कहते हैं। य, र, ल, व चार अंत:स्थ व्यंजन हैं।
- ऊष्म व्यंजन- जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुख में ऊष्मा (गरमी) पैदा होती है और श्वास तेज़ी से आती है, उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। श, ष, स तथा ह चार ऊष्म व्यंजन है।
- अतिरिक्त व्यंजन- जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा मूर्धा को स्पर्श करती हुई मुख को झटके से खुलवाती अतिरिक्त व्यंजन कहते हैं। ये व्यंजन ट वर्ग के ड तथा ढ व्यंजनों के नीचे बिंदु लगाने से प्राप्त होते हैं। ड तथा ढ़ व्यंजनों को अतिरिक्त व्यंजन कहा जाता है। इन व्यंजनों से कोई शब्द शुरू नहीं होता। ये किसी भी शब्द के मध्य या अन्त में आते हैं।
- संयुक्त व्यंजन– दो भिन्न-भिन्न व्यंजनों के योग से बने व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं। ये है:-
क् + ष् + अ = क्ष,
त् + र् + अ = त्र,
ज् + ज् + अ = ज्ञ,
श् + र् + अ = श्र
- दवित्व व्यंजन – जब एक ही व्यंजन ध्वनि का एक साथ दो बार लगातार प्रयोग किया जाता है, तो उसे दवित्व व्यंजन कहते हैं; जैसे-
कृ + के = क्क : पक्का,चक्की
च् + च = च्च : बच्चा, सच्चा
त् + त = त्त : उत्तर, महत्तम
ल् + ल = ल्ल : बल्ला, छल्ला
ट्+ ट = ट्ट : पट्टी, मिट्टी
न् + न = नं : अन्न, प्रसन्न
प् – प = प्प : बड़प्पन, छप्पन
म् + म = म्म : सम्मान, अम्मा
- संयुक्ताक्षर- जब दो अलग-अलग व्यंजन एक साथ प्रयोग होते हैं, जिनमें पहला स्वर रहित और दूसरा स्वर सहित हो, तो उसे संयुक्ताक्षर कहते हैं;
जैसे- द् + य = द्य : विद्या, विद्यालय
न् + ह = न्ह : नन्हा, कान्हा
- अयोगवाह- अं और अः वर्ण न तो स्वर हैं और न ही व्यंजन हैं, क्योंकि इनके उच्चारण में अ स्वर की सहायता आवश्यक है इसलिए ये अयोगवाह कहलाते हैं। मानक वर्णमाला में अं और अः (अयोगवाह) को स्वर और व्यंजनों के मध्य में स्थान दिया गया है। अं को अनुस्वार और अ: को विसर्ग कहते हैं।
- अनुस्वार (ं) – इसका उच्चारण नाक से किया जाता है और इसके उच्चारण में अधिक जोर लगाना पड़ता है। इसे स्वर या व्यंजन के ऊपर मात्रा (ं) के रूप में लगाया जाता है; जैसे- कंस, हंस, मंगल, आदि।
- विसर्ग (:)- इसका प्रयोग प्रायः संस्कृत शब्दों के बाद विसर्ग चिह्न (:) के रूप में प्रयोग होता है इसका उच्चारण ह की तरह होता है; जैसे- अत:, संभवत:, प्रातः, विशेषतः आदि।
- अनुनासिक ( ँ) – इसके उच्चारण में नाक और मुँह दोनों का प्रयोग किया जाता है। इसे चंद्रबिंदु (ँ ) भी कहते हैं; जैसे- चाँद, पाँव, छाँव, गाँव आदि।
- स्वतंत्र रूप में स्वर- जब स्वरों का प्रयोग व्यंजनों के साथ अपने मूल रूप में होता है तो उसे स्वर का स्वतंत्र रूप कहा जाता है; जैसे- आम, ऊँट, अब, इधर आदि।
- ऑ ध्वनि- अंग्रेज़ी भाषा से हिंदी में ऐसे अनेक शब्द आए हैं, जिनके उच्चारण में ऑ ध्वनि का प्रयोग होता है। यह ध्वनि आ और ओ ध्वनि की मध्यवर्ती ध्वनि है; जैसे- डॉक्टर, कॉलेज, बॉल, टॉफी, ट्रॉली, कॉफी आदि।
- आ और आ ध्वनि में व्यापक अंतर होता हैं। इनके उच्चारण में अंतर के कारण शब्दों का अर्थ भी बदल जाता है; जैसे- बॉल का अर्थ है गेंद, जबकि बाल का अर्थ है सिर के बाल।
स्वरों की मात्राएँ
जब स्वरों को व्यंजनों के साथ जोड़ा जाता है, तो उनका रूप बदल जाता है। स्वरों के इस बदले हुए रूप को मात्रा कहते हैं। स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं-
स्वर = अ, आ, इ, ई, उ, ऊ , ऋ ए ऐ ओ औ
मात्रा =
आ - ाइ - िई - ीउ - ुऊ - ूऋ - ृए - ेऐ - ैओ - ोऔ – ौ
नीचे सभी व्यंजन, मात्राओं के साथ दिए गए हैं। वर्णों के इस स्वरूप को ‘बारहखड़ी’ कहते हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और समझिए-
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ए | ऐ | ओ | औ | अं | अः |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
– | ा | ि | ी | ु | ू | े | ै | ो | ौ | ं | ः |
क | का | कि | की | कु | कू | के | कै | को | कौ | कं | कः |
ख | खा | खि | खी | खु | खू | खे | खै | खो | खौ | खं | खः |
ग | गा | गि | गी | गु | गू | गे | गै | गो | गौ | गं | गः |
घ | घा | घि | घी | घु | घू | घे | घै | घो | घौ | घं | घः |
च | चा | चि | ची | चु | चू | चे | चै | चो | चौ | चं | चः |
छ | छा | छि | छी | छु | छू | छे | छै | छो | छौ | छं | छः |
ज | जा | जि | जी | जु | जू | जे | जै | जो | जौ | जं | जः |
झ | झा | झि | झी | झु | झू | झे | झै | झो | झौ | झं | झः |
ट | टा | टि | टी | टु | टू | टे | टै | टो | टौ | टं | टः |
ठ | ठा | ठि | ठी | ठु | ठू | ठे | ठै | ठो | ठौ | ठं | ठः |
ड | डा | डि | डी | डु | डू | डे | डै | डो | डौ | डं | डः |
ढ | ढा | ढि | ढी | ढु | ढू | ढे | ढै | ढो | ढौ | ढं | ढः |
ण | णा | णि | णी | णु | णू | णे | णै | णो | णौ | णं | णः |
त | ता | ति | ती | तु | तू | ते | तै | तो | तौ | तं | तः |
थ | था | थि | थी | थु | थू | थे | थै | थो | थौ | थं | थः |
द | दा | दि | दी | दु | दू | दे | दै | दो | दौ | दं | दः |
ध | धा | धि | धी | धु | धू | धे | धै | धो | धौ | धं | धः |
न | ना | नि | नी | नु | नू | ने | नै | नो | नौ | नं | नः |
प | पा | पि | पी | पु | पू | पे | पै | पो | पौ | पं | पः |
फ | फा | फि | फी | फु | फू | फे | फै | फो | फौ | फं | फः |
ब | बा | बि | बी | बु | बू | बे | बै | बो | बौ | बं | बः |
भ | भा | भि | भी | भु | भू | भे | भै | भो | भौ | भं | भः |
म | मा | मि | मी | मु | मू | मे | मै | मो | मौ | मं | मः |
य | या | यि | यी | यु | यू | ये | यै | यो | यौ | यं | यः |
र | रा | रि | री | रु | रू | रे | रै | रो | रौ | रं | रः |
ल | ला | लि | ली | लु | लू | ले | लै | लो | लौ | लं | लः |
ळ | ळा | ळि | ळी | ळु | ळू | ळे | ळै | ळो | ळौ | ळं | ळः |
व | वा | वि | वी | वु | वू | वे | वै | वो | वौ | वं | वः |
श | शा | शि | शी | शु | शू | शे | शै | शो | शौ | शं | शः |
ष | षा | षि | षी | षु | षू | षे | षै | षो | षौ | षं | षः |
स | सा | सि | सी | सु | सू | से | सै | सो | सौ | सं | सः |
ह | हा | हि | ही | हु | हू | हे | है | हो | हौ | हं | हः |
क्ष | क्षा | क्षि | क्षी | क्षु | क्षू | क्षे | क्षै | क्षो | क्षौ | क्षं | क्षः |
त्र | त्रा | त्रि | त्री | त्रु | त्रू | त्रे | त्रै | त्रो | त्रौ | त्रं | त्रः |
ज्ञ | ज्ञा | ज्ञि | ज्ञी | ज्ञु | ज्ञू | ज्ञे | ज्ञै | ज्ञो | ज्ञौ | ज्ञं | ज्ञः |
श्र | श्रा | श्रि | श्री | श्रु | श्रू | श्रे | श्रै | श्रो | श्रौ | श्रं | श्रः |
उ तथा ऊ की मात्रा र के मध्य भाग में लगाई जाती है; जैसे- र + उ = रु; र + ऊ = रू
व्यंजन और स्वर का संयोग- सभी व्यंजन स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं। जब व्यंजन में स्वर न मिला हो तो व्यंजन के नीचे हलंत ( ) का चिह्न लगा देते हैं; जैसे- क् + अ = क , क् + आ = का
व्यंजन का व्यंजन से संयोग- एक स्वर रहित व्यंजन का दूसरे स्वर सहित व्यंजन के साथ संयोग निम्नलिखित नियमों के अनुसार होता है-
जिन व्यंजनों के अंत में खड़ी पाई होती है, उनकी खड़ी पाई हटा देते हैं-
सु + व = स्व – स्वागत, स्वत:
प् + त = प्त – सक्षिप्त, लिप्त
ख् + य = ख्य = विख्यात, सुविख्यात
ज् + ज = ज्ज = गज्जक, इज्जत
न् + य = न्य = न्याय, अन्याय
जिन व्यंजनों के बीच में खड़ी पाई और अंत में घुंडी होती है, उन्हें दूसरे व्यंजन से जोड़ते समय उनकी घुंडी हटा देते हैं-
क् + त = क्त = वक्त
फ् + त – फ्त – मुफ़्त
जिन व्यंजनों में खड़ी पाई नहीं होती, उनके नीचे हलंत (, ) का प्रयोग करते हैं-
द् + व = द्व – द्वद्व
ट् + ट = ट्ट = पट्टी
ड् + ड = ड्ड = अड्डा
द् + ध = द्ध = विरुद्ध
र व्यंजन का दूसरे व्यंजनों के साथ संयोग निम्नलिखित नियमों के अनुसार होता है-
(क) जब स्वर-रहित र को दूसरे स्वर – सहित व्यंजन के साथ मिलाते हैं, तब र दूसरे व्यंजन के ऊपर रेफ के रूप में लगाया जाता है-
र् + म = र्म = चर्म, कर्म, धर्म, गर्म आदि।
(ख) जब र को किसी स्वर रहित व्यंजन के बाद मिलाते हैं, तब र को इस प्रकार लिखते है-
भ् + र = भ्र = भ्रमित, भ्रमर
दु + र = द्र = द्रव, रुद्र
क् + र = क्र = क्रम, क्रय
पु + र = प्र = प्रभु, प्रकाश
(ग) जिन व्यंजनों में खड़ी पाई नहीं होती है, उनके स्वर -रहित रूप के साथ र को इस प्रकार लिखते हैं-
ट् + र = टू = ट्रक
ड + र = डू = डूम
(घ) स् तथा त् के साथ र को इस प्रकार लिखते हैं-
स् + र = स्र = स्रोत
तु + र = त्र = त्रिलोक
(ङ) शु के साथ र को इस प्रकार लिखते हैं-
श् + र = श्र = श्रेष्ठ, विश्राम, श्रवण आदि।
उच्चारण के आधार पर व्यंजन के भेद
उच्चारण के आधार पर व्यंजन के दो भेद होते हैं-
1. अल्पप्राण
2. महाप्राण
1. अल्पप्राण
जिन व्यंजनों के उच्चारण में कम परिश्रम करना पड़ता है, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्प्राण होता है; जैसे- क, ग, ङ, च, ज, ज, ट, ड, ण. त, व, न. प. ब. म, य, र, ल, व।
2. महाप्राण
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अधिक परिश्रम करना पड़ता है, उन्हें महाप्राण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण महाप्राण है। इनके उच्चारण में पुकार मुख से अधिक वायु निकलती है; जैसे- ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह आदि।
स्वराघात
किसी शब्द के उच्चारण में किसी वर्ण विशेष पर श्वास के दबाव के कारण जो बल आ जाता है, उसे स्वराघात कहते हैं। कभी-कभी शब्द अथवा शब्दांश के मध्य अथवा अतिम वर्ण का उच्चारण अपूर्ण होता है, उसे हल अक्षर की तरह बोला जाता है, तब उससे पूर्व वर्ण पर अधिक बल पड़ता है; जैसे- कल, समय, नर आदि। इनका उच्चारण कल्, समयु, नर की भाँति होता है।
बलाघात
किसी पद या वाक्य को बोलते समय किसी अक्षर या शब्द विशेष पर श्वास के दबाव के कारण जो बल आता है उसे बलाघात कहते हैं। वाक्य के सभी पदों पर समान बल नहीं दिया जाता है। भिन्न भिन्न पदों पर बल देने से वाक्य के अर्थ में अंतर आ जाता है; जैसे-मैं आज दिल्ली जाऊँगा । (कोई और नहीं, में), (कल या परसों नहीं, आज) (कहीं और नहीं, दिल्ली)।
उच्चारण स्थान
मुख के जिस भाग से जो वर्ण बोला जाता है, वह भाग उस वर्ण की उच्चारण स्थान कहलाता है
स्थान | वर्ण | नाम |
कंठ | अ, आ, के, ख, ग, घ, ङ | कंठ्य |
तालु | इ.ई, च, छ, झ, य, श | तालव्य |
मूर्धा | ङ, र, ठ, ड, ढ, ण, र, ष | मूर्धन्य |
दंत | त, थ, द, ध, न, ल, स | दंत्य |
ओष्ठ | उ, ऊ, प फ, ब, भ, म | ओष्ठ्य |
कंठ, तालु | ए, एं | कंठतालव्य |
कंठ ओष्ठ | ओ, औ | कंठोष्ठ्य |
दंत, ओष्ठ | व | दंतोष्ठ्य |
नासिका | ङ, ज, ण, न, य | नासिक्य |
वर्ण-विच्छेद- किसी शब्द के वर्णों को अलग-अलग करना वर्ण-विच्छेद कहलाता है। वर्ण-विच्छेद की सहायता से उच्चारण शुद्ध होता है; जैसे-
अध्यापक = अ + ध् + य् + आ + पु + अ + कु + अ
सक्षम = स् + अ + क् + ष + अं + म् + अ
विज्ञान = व् + इ + ज् + ञ् + आ + न + अ
प्रकृति = प् + र् + अ + कु + ऋ + त् + इ
हृदय = ह् + ऋ + द् +अ + य + अ
अचल = अ + च् + अ + ल +अ
उज्ज्वल = उ + ज् + ज् + व् + अ + ल + अ
क्षमता = क् + ष् + अ + म् + अ + त + आ
कैलाश = क् + ए + ल् + आ + श + अ
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