भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप पर निबंध - Essay on Nature of Indian Economy

भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप पर निबंध – Essay on Nature of Indian Economy


अर्थव्यवस्था की संरचना : अर्थव्यवस्था से तात्पर्य एक ऐसी संस्थागत प्रणाली से है जो समान की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे तथा विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाकलापों, संस्थाओ, अभिव्यक्तियों एवं डून सबके पारस्परिक सम्बंधों से मिलकर बनी हो । अतः समाज की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना किसी भी अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय उद्देश्य होता है।



अल्पविकसित अर्थव्यवस्था :

 

जहाँ प्राकृतिक, मानवीय तथा भौतिक अर्थव्यवस्था तीनों प्रकार के साधन तो उपलब्ध होते हैं, लेकिन किन्ही बाधाओं के कारण उनका समुचित प्रयोग या दोहन नहीं हो पाता है। ऐसी अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत भाने वाले देश के निवासियों का जीवन स्तर निम्न होता है, लेकिन ते तेजी से इसमें सुधार करके विकसित देशों के समकक्ष आना चाहते है।

 

अल्प विकसित देश:



योजना आयोग के अनुसार, अल्प विकसित देश वह है जहाँ एक ओर अप्रयुक्त अथवा  प्रायोगिक मानव शक्ति तथा दूसरी और अवशोषित प्राकृतिक संसाधनों का न्यूनाधिक भावा मे सहअस्तित्व पाया जाता है। सामान्यतः अल्प विकसित देश से आशय उन देशों से है जिनकी प्रतिव्यक्ति आय अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय के एक -चौथाई से भी कम हो, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की इस परिभाषा को कुवैत की प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में इसकी आलोचना की जाती है, क्योंकि कुवैत की प्रति व्यक्ति आय अधिक होने के बावजूद भी इसको अल्प विकसित देश कहा जाता है। 

 

भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्तमान स्वरूप :

 

विश्व की तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय अर्थव्यवस्था नियोजित एवं नियंत्रित अर्थव्यवस्था से मुक्त अर्थव्यवस्था बनती जा रही है। कभी विदेशी मुद्रा भंडार का न्यून होना चिंता का कारण था तो  बढ़ता हुआ विदेशी मुद्रा भण्डार चिंता का कारण बनता जा रहा है। आज आर्थिक विकास दर हो गई है,इसे निरंतर बनाये रखने के लिए कृषि के विकास दर को भी बनाये रखना आवश्यक है। ।


भारतीय अर्थव्यवस्था को 3 क्षेत्रों में विभाजित किया गया है और इन तीनों को 13 उपक्षेत्रों में में बाँटा गया है

 

  1. प्राथमिक क्षेत
  2. द्वितीयक क्षेत्र
  3. तृतीयक क्षेत

1. कृषि एवं पशुपालन

1. निमणि- पंजीकृत

1 परिवहन, संग्रहण

2. वन उद्योग एवं लढे एवं गैर-पंजीकृत  एवं संचार बनाना

2. विनिर्माण पंजीकृत 2. व्यापार होटल तथा एवं गैर-पंजीकृत जलपान गृह

4. खनन एवं उत्पादन उ. विद्युत, गैस तथा

3. बैंक, वीमा , स्थावर

3. मत्स्य पालन जलापूर्ति सम्पदा, आवास गृहों का स्वामित्व

५.व्यावसायिक सेवाएं

5.सरकारी तथा रमा प्रशासन

6. अन्य सेवाएं

भारतीय अर्थव्यवस्था का विकासशील स्वरूप


अल्प विकसित अर्थव्यवस्था के पक्ष में दिए गये सारे तथ्य भारतीय अर्थव्यवस्था में मौजूद हैं, लेकिन अब हम इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में देखते हैं तो विगत 60 वर्षों के मध्ययन से इसमें ऐसे परिवर्तन के लक्षण दिखाई देते हैं, जो एक विकासशील मर्थव्यवस्था के लक्षण हैं जिससे यह संकेत मिलता है कि देश विकास के पथ पर अग्रसर है। निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होता है कि भारत एक विकासशील देश है। 

i) प्रति व्यक्ति भाय में वृद्धि स्वंतत्रता प्राप्ति के बाद भारत की प्रति व्यक्ति आय की प्रवृत्ति बढ़ने की ओर रही है, यह देश में हो रहे आर्थिक विकास का परिचायक है।

(ii) बचत और निवेश में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्तमान समय में विकासशील स्वरूप की झलक मिलती है। आयोजन काल के प्रारम्म से प्रेषी – निर्माण की दर बढ़ रही है।

• शुद्ध घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में शुद्ध घरेल् पृषी निर्माण की दर 1950-51 में 6% थी, जो वर्ष 2018-19 में 11-2% के स्तर पर है।

• उपर्युक्त संदर्भ में वर्ष 2018-19 INT में वृद्धि दर 6.9% रही। वर्ष 2016-19 में प्रति व्यक्ति निवल राष्ट्रीय आय 1,26,406 रुपये रही।

• यह विगत वर्ष की तुलना में 10% की वृहि दर्शाती है।

• वर्ष 2017-18 में यह 1,14,958 रुपये थी।

(ii) आधारभूत उद्योगों का विकास आजादी के बाद से औद्योगिक विकास का स्वरूप राष्य की नीतियों द्वारा निर्धारित होने लगा, क्योंकि आयोजकों का विचार था कि बिना इसके अर्थव्यवस्था का समग्र रूप से. विकास आसान नहीं होगा। पवर्ती योजना काल में 11 वी 12 वी योजना के दौरान आधारभूत संरचना के तीव्र विकास हेतु PPP मॉडल पर जोर दिया गया।

(iv) सकल घरेलू उत्पाद के क्षेत्रवार वितरण में परिवर्तन – जब अर्थव्यवस्था विकास करती है तो राष्ट्रीय आय में कृष्टि का योगदान धीरे-धीरे कम होता जाता है और उद्योग एवं सेवा क्षेत्र का योगदान बढ़ता जाता है। भारत में इस दृष्टि से कृषि ले महत्व में कमी आई है, जबकि उद्योग और सेवाक्षेत्र के योगदान में वृद्धि हुई है।

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