जामुन खाने के चमत्कारी औषधि गुण जो इन बीमारियों में करता है असर

जामुन खाने के चमत्कारी औषधि गुण जो इन बीमारियों में करता है असर

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जामुन खाने के चमत्कारी औषधि गुण जो इन बीमारियों में करता है असर 

जामुन अत्यंत सामान्य फल है। परंतु गुणो में अनेक सुप्रसिद्ध फलों को भी मात देता है। जामुन के वृक्ष अनेक स्थानों पर बड़ी सरलता पूर्वक उत्पन्न हो जाते हैं।  प्रमुख रूप से जामुन की दो या तीन किस्में होती हैं। कलमी पेड़ के समान बड़ी जामुन बहुत मीठी और रसीले गूदेवाली होती है। जामुन के बीच की गुठली गुर्दे में लिपटी रहती है। जहां जामुन का फल गहरे बैंगनी रंग का होता है, वहां इसका बीज खराब बंधे हुए पीला सा होता है। 

पेट के लिए उपयोगी

जामुन के संबंध में यह कहा जाता है। कि जामुन के मौसम में निरंतर जामुन खाते रहने से आंतों में जमा हुआ मल बाहर निकल जाता है। और पूरे वर्ष भर के लिए पेट ठीक रहता है। ऐसा विश्वास किया जाता है। कि यदि पेट में भूल से लोहे की कोई चीज चली गई हो तो वह भी जामुन खाने से गल कर निकल जाती है। 

जामुन में कार्बोहाइड्रेट की काफी मात्रा के साथ-साथ विटामिन सी भी भरपूर मात्रा में होता है। इसके कारण पेट में विभिन्न अंगों तिल्ली और जिगर तथा अमाशय के रोगों में जामुन विशेष लाभदायक सिद्ध होती है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, कि जामुन से पेट में पड़े हुए विषैले पदार्थ घुसकर निकल जाते हैं। इसी प्रकार जामुन का छिलका भी  बढ़ी हुई तिल्ली के एक उपयोगी सिद्ध होता है। 

दस्त

जहां जामुन पेट के रोगों के लिए लाभदायक है। वही जामुन के बीज की गुठली की गिरी के चूर्ण को आम की गुठली के बीच के भाग को मिलाकर बनाए रखे चूर्ण को दो या 3 ग्राम की मात्रा में प्रातः सायं दही अथवा छाछ के साथ लेने से दस्त बंद हो जाते हैं। 

जामुन की गुठली को पानी में पीसकर दिन में दो बार पिलाने से ऐसे दस्त भी बंद हो जाते हैं। जिनमें खून आता है। जामुन के पेड़ की दो या तीन नरम पत्तियों को लेकर अच्छी तरह पीसकर सुबह शाम लेने से भयंकर दस्त भी बंद हो जाते हैं। 

जामुन के पत्ते को चटनी की तरह पीसकर उसमें सेंधा नमक मिलाकर प्रयोग में लाया जा सकता है। इससे दस्तो में फ़ौरन आराम आ जाता है। 

मधुमेह 

मधुमेह के रोगियों के लिए जामुन बहुत ही लाभदायक है। इसका कारण यह है,कि जब से जामुन खाने से अमाशय को बल मिलता है। यदि मधुमेह का रोगी नित्य जामुन का उपयोग करता रहे तो पेशाब में शर्करा आना बंद हो जाता है। जामुन के फल के समान ही इसके बीच की  मींगी का चूर्ण भी मधुमेह के रोगियों के लिए अमृत सा प्रभाव डालता है। 

यह देसी चिकित्सा के अतिरिक्त होम्योपैथी में भी इस्तेमाल की जाती है। जामुन की गुठली का आधा चम्मच चूर्ण दिन में दो या तीन बार पानी में मिलाकर मधुमेह के रोगी को देने से मूत्र में शर्करा की मात्रा निश्चित रूप से कम हो जाती है। उसी के तरीके मधुमेह के रोगी को हर समय एक विशेष प्रकार की प्यास अनुभव होती है। वह भी जामुन के बीजों का चूर्ण लेते रहने से शांत रहती है। 

होमियोपैथी व यूनानी के अतिरिक्त आयुर्वेद में भी जामुन के वृक्ष की छाल के अंदर का भाग मधुमेह के रोगियों के लिए प्रयोग में लाया जाता है। जामुन के वृक्ष की छाल को जलाकर भस्म बनाया जाता है। उसके बाद मधुमेह के रोगी को पानी के साथ दिया जाता है। मधुमेह के रोगी को जामुन के प्रयोग से इसलिए लाभ होता है। क्योंकि इससे पैनक्रियास को बल मिलता है। इसके अतिरिक्त जिगर तिल्ली और अमाशय पर भी इसका गुणकारी प्रभाव होता है। जिससे भोजन आसानी से पचता है। और रोगी के रोज भोजन में बढ़ती है। 

जिगर के रोग

यदि जामुन के मौसम में छककर जामुन का प्रयोग किया जाए तो जिगर के सभी लोग शांत हो जाते हैं। 

दांतों के रोग

जामुन के विटामिन सी की मात्रा अधिक होने के कारण अन्य रोगों के अतिरिक्त दांतों और गुर्दों के रोगों में भी इससे आराम मिलता है। अधिक मूत्र आने की स्थिति में  जामुन के बीज का चूर्ण प्रातःकाल पानी के साथ लेने से अधिक पेशाब आना बंद हो जाता है। 
दांत के रोगों में जामुन के पत्तों का काढ़ा बनाकर दिन में दो या तीन बार कुल्ला करने से दांतो का हिलना दांतों से खून निकलना और मसूढ़ो का फूलना बंद हो जाता है। 
जामुन की छाल को जलाकर अथवा पीसकर चूर्ण बनाकर काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं। 

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खूनी बवासीर

खूनी बवासीर वाले रोगियों के लिए भी सीधे-साधे ढंग से जामुन का उपयोग लाभदायक सिद्ध होता है। जामुन के मौसम में यदि प्रातः काल जामुन को साफ करके उनमें थोड़ा नमक मिलाकर प्रतिदिन खाते रहे तो आयु भर के लिए खूनी बवासीर से छुटकारा मिल जाता है। 

सावधानियां

जामुन खाने के तत्काल बाद दूध नहीं पीना चाहिए। जामुन का सीमित प्रयोग और गुठली के चूर्ण के साथ शहद मिलाकर बनाई गई गोली को चूसने से जहां बैठा हुआ गला साफ होता है। वहां अत्यधिक मात्रा में नमक के बिना खट्टी जामुन खाने से गला खराब हो जाता है। छाती में भी कप के रूप में थूक जमा होने लगती है। इसलिए सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए। कि जो वस्तुएं उचित मात्रा में प्रयोग से अमृततुल्य प्रभाव करती है। उन्हें यदि गलत ढंग से और अधिक सेवन किया जाए तो फिर विष के समान प्रभाव दिखाते हैं।

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