Mark Zuckerberg Success Story in Hindi - जानिए फेसबुक कैसे बना इतना सफल

फेसबुक शुरू करने का मूल उद्देश्य कोई बड़ा ब्रांड नहीं बनाना था। इसे तो सामाजिक उद्देश्य से  बनाया गया था ताकि इससे अधिक लोग जुड़ सके। यह कहना है मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg)

फेसबुक इंक:-मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg)

फेसबुक इंक एक अमेरिकी मल्टीनैशनल इंटरनेट कॉरपोरेशन है। जो सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक चलाता है। फेसबुक का मुख्यालय मेंलो पार्क कैलिफ़ोर्निया में है। फेसबुक वेबसाइट ज्यादा पुरानी नहीं है। फरवरी 2004 में ही इसे शुरू किया गया था कंपनी की अधिकांश आमदनी विज्ञापनों से होती है। 2011 में इसके आमदनी 3.71 अरब डॉलर थी। फेसबुक में 3,539 कर्मचारी काम करते थे और 15 देशों में इसके कार्यालय हैं। फेसबुक गूगल के बाद संसार की सबसे व्यस्त वेबसाइट है। लोग हर महीने फेसबुक पर 700 मिनट से भी अधिक समय बिताते हैं।

मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) का पहला एशियाई ऑफिस भारत मेंः-

2010 में इसने एशिया में अपना पहला ऑफिस हैदराबाद भारत में खोला।  मई 2012 में फेसबुक के 90 करोड सक्रिय सदस्य थे। जिनमें से अधिकतर मोबाइल के जरिए फेसबुक पर जाते हैं। 2011 में भारत में इसके 2.3 करोड 10 सदस्य 3 जनवरी 2011 में फेसबुक ने  fb.com डोमेन को $5000000 में खरीद लिया। फेसबुक की लोकप्रियता को देखते हुए इसके शुरुआती वर्षों पर 2010 में द्, सोशल नेटवर्क नामक फिल्म भी बनी।

फेसबुक 104 अरब डॉलर की कंपनीः- मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg)

मई 2012 में फेसबुक का आईपीओ $38 प्रति शेयर के भाव पर आया, और इसके आधार पर कंपनी का मूल्य 104 विलियन डॉलर आंका गया। फेसबुक की सफलता के लिए कौन से मंत्र हैं, जिनकी बदौलत इसके संस्थापक मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) संसार के सबसे युवा अरबपति बन गए। फेसबुक ने ऐसा कौन सा कमाल किया है, जिसकी वजह से टाइम मैग्जीन ने इसके संस्थापक मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) को 2010 का पर्सन ऑफ द ईयर चुना। सफलता के लिए कौन से फार्मूले हैं। जिन पर चलकर मार्क जुकरबर्ग आज संसार के सबसे अमीर व्यक्तियों की फोर्स सूची में 35वें स्थान पर हैं और उन के पास 17.5 अरब डालर की संपत्ति है?

मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) के बचपन के सबक

मिडिल स्कूल में पढ़ते समय ही मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) को कंप्यूटर का चस्का लग गया था। उन्होंने प्रोग्रामिंग के गुण सीखे। आमतौर पर माता-पिता बच्चों के शौक को ज्यादा महत्व नहीं देते। लेकिन मार्क के पिता ने एक कंप्यूटर प्रोग्रामर से अपने बेटे को विशेष ट्यूशन दिलवाई। जब बाकी बच्चे कंप्यूटर गेम्स खेलते थे। तब मार्ग गेम बनाने में जुटे रहते थे। जाहिर है, बचपन का यह शौक बाद में उनके बढ़ना काम आया।
कॉलेज में भी मार्ग का कंप्यूटर प्रेम जारी रहा। हारवार्ड में पढ़ते समय उन्होंने से फै़सबूक नामक वेबसाइट बनाई जिसमें उन्होंने दूर लड़कों और लड़कियों के फोटो दिखाएं। पहले ही घंटे में 450 लोगों ने इंटरनेट पर इसे देखा।  वीकेंड पर शुरू हुई इस वेबसाइट की लोकप्रियता से हार्ड वर्ड का सर्वर बैठ गया। इसलिए वेबसाइट बंद कर दी गई। कई विद्यार्थियों ने शिकायत की कि उनके फोटो का इस्तेमाल उनकी अनुमति के बिना किया गया है। मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) को माफी मांगनी पड़ी लेकिन इसके बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ गई।

मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) के नायाब विचारः

3 साथी विद्यार्थियों ने जुकरबर्ग  से हार्ड वर्ड कनेक्शन नामक वेबसाइट बनाने को कहा,  ताकि हार्ड वर्ड के विद्यार्थी आपस में संपर्क कर सकेें। और जुड़ सके।  यह सुनकर मार्केट के मन में एक विचार सुजा क्यों न एक ऐसी वेबसाइट बनाए, जिस पर पूरी दुनिया में कहीं भी रहने वाले लोग आपस में संवाद कर सकें। और अपने फोटो वीडियो आदि दिखा सके। एक पल में आया यही विचार आगे चलकर फेसबुक में तब्दील हो गया।

कंपनी की स्थापनाः-

फेसबुक की स्थापना मार्क जुकरबर्ग नामक अमेरिकी कंप्यूटर प्रोग्रामर और इंटरनेट उद्यमी ने अकेले नहीं की। उनके 3 साथी एडुआर्डो  सैवेरिन, डस्टिन मॉस्कोविट्ज और क्रिस ड्यु़ज भी उनके साथ शामिल थे। वैसे टीम में सबसे अहम सदस्य मार्क जुकरवर्क ही थे। क्योंकि विचार भी उन्हीं का था। और उन्होंने ही 2 सप्ताह तक प्रोग्रामिंग करके फेसबुक का पहला संस्करण तैयार किया था। अंततः 4 फरवरी 2004 को फेसबुक वेबसाइट शुरू हो गई। उस वक्त उसका नाम The facebook.com था। कंपनी के नाम से द् तब हटा जब  इसने 2005 में फेसबुक डॉट कॉम डोमेन $200000 में खरीद लिया। पहले ही वर्ष इसके 1000000 सदस्य हो गए।

मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) का शुरुआती संघर्ष-

कंपनी को शुरुआत में बड़ा संघर्ष करना पड़ता है । आमतौर पर फौजी की कमी होती है। व्यवसाय का अनुभव भी नहीं होता,लोगों को भरोसा नहीं होता,आदि फेसबुक शुरू करते वक्त मार्क जुकरबर्ग को भी काफी संघर्ष करना पड़ा। उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे। और हार्डवर्ड के डॉरमिटरी  रूम में रहकर ही उन्होंने यह काम किया। उन्होंने $85 प्रतिमाह पर एक सर्वर किराए पर लिया। और वेबसाइट शुरू कर दी।
फेसबुक शुरू करने के चंद महीनों बाद यह पैसों की समस्या ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। कंपनी चालू रखने के लिए जुकरबर्ग और उनके परिवार को लगभग $85000 अपनी जेब से लगाने पड़ेे। जरा सोचें, इतनी मेहनत के बावजूद पैसा आ नहीं, जा रहा था। और संघर्ष केवल आर्थिक ही नहीं था।
फेसबुक वेबसाइट शुरू होने के 6 दिन बाद ही हार्डवर्ड के तीन वरिष्ठ विद्यार्थियों ने जुकरबर्ग पर बेचारी चोरी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया। उनका आरोप था कि उन्होंने जकरबर्ग से हार्डवर्डकनेक्शनडॉट कॉम नामक सोशल नेटवर्क बनाने को कहा था। लेकिन उनका विचार चुराकर  जुकरबर्ग ने फेसबुक वेबसाइट शुरू कर दी।
इस आरोप से मार्क जुकरबर्ग को काफी तनाव और सामाजिक ताने झेलने पड़े। लेकिन अंततः मामला सुलझ गया। जैसा मार्क जुकरबर्ग ने कहा है, जब मैंने क्या वेबसाइट शुरू की थी, तब मैं19 साल का था उस समय में व्यवसाय के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था।

महत्वपूर्ण मोड़ः-

फेसबुक शौक से व्यवसाय में तब बदला, जब 2004 में अंत में पीटर थील ने फेसबुक में $500000 का निवेश किया। यह निवेश फेसबुक के लिए इसलिए महत्वपूर्ण था। क्योंकि पीटर थील पोपाल यूट्यूब और  लिंक्डइन जैसे शुरुआती कंपनियों में निवेश कर चुके थे। उसकी सलाह और मार्गदर्शन फेसबुक के बहुत काम आया। जाहिर है, फेसबुक की प्रगति से थील को भी काफी लाभ हुआ। उनका $500000 का निवेश आज दो अरब डॉलर में बदल चुका है।

मार्क जुकरबर्ग (Mark zuckerberg) सफलता के मंत्र

1-मेहनत करें

के पैसा तो विरासत में भी मिल सकता है। लेकिन सफलता नहीं मिल सकती। सफलता के लिए तो इंसान को स्वयं श्रम करना पड़ता है। तभी जाकर वह कामयाबी की मंजिल पर पहुंचता है। फेसबुक को सफल बनाने के लिए मार्क जुकरबर्ग ने बहुत मेहनत की है।
मार्क जुकरबर्ग ने कहा था, मैं सोचता हूं कि लोगों के मन में बहुत सी काल्पनिक बातें रहती हैं। लेकिन आप जानते हैं, फेसबुक के असली कहानी बस इतनी है, कि हमने पूरे समय बहुत कड़ी मेहनत की है। मेरा मतलब है,असली कहानी शायद काफी बोरिंग है।मेरा मतलब है, हम 6 साल तक बस अपने कंप्यूटर्स पर बैठे और कोडिंग करते रहे हैं।

2- बड़ी सोच रखें

छोटी सोच वाले लोग ज्यादा आगे तक नहीं पहुंच पाते हैं। बड़ी सफलता पाने के लिए इंसान को अपनी सोच को भी बड़ा करना पड़ता है। मार्क जुकरबर्ग ने के सपने बड़े थे उनके मित्र फेसबुक को कॉलेज  प्रोजेक्ट के रूप में देख रहे थे। मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक को विश्वव्यापी प्रोजेक्ट के रूप में देखा, जो लोगों के संपर्क का तरीका बदल देगी।
दूसरे लोग फेसबुक का मूल्य करोड़ों डॉलर में आंक रहे थे। लेकिन मार्क नहीं तो अरबों डॉलर की कंपनी का सपना देखा था। फेसबुक को खरीदने के लिए कई बार कंपनियों ने बोली लगाई ।लेकिन मार्क जुकरबर्ग की रुचि पैसे कमाने में नहीं थी। वह दूरगामी दृष्टिकोण पर चल रहे थे। और संसार को बदलने में उनकी अधिक रुचि थी ।
अपने सपने को पूरा करने की खातिर मार्क ने कॉलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी। और समर्पित भाव से फेसबुक को सफल बनाने में जुट गए। जैसा कर्कपैट्रिक ने कहा है, यह पैसे के बारे में नहीं है। अगर फिर यह काम पैसे के लिए कर रहे होते तो बरसों पहले इसे बेच देते।

3- छोटी शुरुआत करें

 दिमाग में विचार आते ही काम शुरू कर दे। अगर आपने ऐसा नहीं किया तो वह विचार दूसरे विचारों तले दब जाएगा।  या आलस के मारे आप उसे  नजरअंदाज कर देगें। शुरू करते वक्त यह ना सोचे कि पर्याप्त पूंजी नहीं है, या पर्याप्त समर्थन नहीं है, बस काम शुरू कर दें।
अगर आपके विचार में दम है, तो पूंजी और समर्थन बाद में अपने आप आ जाएगा। मार्क जुकरबर्ग के साथ यही हुआ था। वह विश्वव्यापी क्रांति करना चाहते थे। लेकिन उनकी शुरूआत छोटी थी। फेसबुक शुरू करने के लिए उन्होंने किसी निवेशक से लाखों डॉलर के निवेश का इंतजार नहीं किया। उन्होंने तो अपनी डॉरमेटरी से छोटी सी शुरुआत कर दी।
पहले पहल इस वेबसाइट का इस्तेमाल  केवल हार्डवर्ड के विद्यार्थी ही कर सकते थे। बहरहाल इसकी लोकप्रियता पहले ही महीने में पता चल गई। जब हार्डवर्ड के 50% से अधिक अंडरग्रेजुएट विद्यार्थी के सदस्य बन गए। बाद में दूसरे कॉलेज के विद्यार्थियों को भी इसके इस्तेमाल की अनुमति दे दी। गई फिर स्कूल के विद्यार्थियों को और फिर 2006 में इसकी सदस्यता 13 साल से बड़े हर व्यक्ति के लिए सुलभ थी। जिसका कोई ईमेल ऐड्रेस हो।
फेसबुक की दीवारों पर यह स्लोगन लिखा था। कोई भी किया गया काम आदर्श कल्पना से बेहतर होता है। बाद में निवेशक जुड़ते चले गए, और धीरे-धीरे फेसबुक एक वृहद कंपनी में बदल गया। अप्रैल 2005 में एक्सएल पार्टनर्स के ने 1.27 करोड़ डॉलर का निवेश किया। अक्टूबर 2007 में माइक्रोसॉफ्ट ने $240000000 का निवेश किया। गोल्डमैन सैक्स न्यू फेसबुक में $450000000 का निवेश किया। इस बारे में मार्क जुकरबर्ग सलाह देते हैं। मैं सोचता हूं कि व्यवसाय का एक सरल नियम है, यदि आप पहले ज्यादा आसान चीजें करते हैं, तो आप दरअसल बहुत प्रगति कर सकते हैं।

4- प्रलोभन से बचें

फेसबुक शुरू करने के 4 महीने बाद से ही निवेशक इसे खरीदने का प्रस्ताव कर लेकर आने लगे। 2004 में ही न्यूयार्क के  एक फाइनेंसर ने एक करोड़ डॉलर की बोली लगाई ।अगर दूसरा कोई होता है, तो इस प्रस्ताव को मंजूर कर लेता। और सोचता कि 1 साल की मेहनत के बदले में $10000000 की रकम बुरी नहीं है।
लेकिन मार्क जुगर बर्ग प्रलोभन के आंधी में उड़ने वाले लोगों में नहीं थे। हालांकि उनके सामने लगातार प्रलोभन आते रहे। फ्रेंड्स्टर ने फेसबुक को खरीदने की कोशिश की। वायाकॉम ने की। याहू और गूगल ने $1000000000 की बोली लगाई। मामाईस्पेस ने इसे खरीदने की कोशिश की न्यूज़कॉर्प ने की।
यदि मार्क प्रलोभन में आ जाते, तो आज संसार में सबसे युवा अरबपति नहीं होते। बल्कि पछता रहे होते ,क्योंकि आईपीओ आने के बाद कंपनी का मूल्य 104 अरब डॉलर हो  चुका है। और इस कारण है क्योंकि मार्ग प्रलोभन में नहीं फंसे बल्कि दूरगामी दृष्टिकोण पर चले गए। उनका कहना है, हम पैसे कमाने के लिए सेवाएं नहीं करते, हम तो बेहतर सेवाएं बनाने के लिए पैसे कमाते हैं।

5- तेजी से काम करें

मार्क जुकरबर्ग ने हार्डवर्ड की डॉरमेटरी के कमरे में अपने खाली समय में फेसबुक का पहला संस्करण तैयार किया। उन्होंने कोई बिजनेस प्लान नहीं लिखा। उन्होंने मित्रों और सलाहकारों से लगातार नहीं पूछा, कि उनके विचार के बारे में उनकी क्या राय थी। उन्होंने इसकी सफलता के बारे में कोई मार्केट रिसर्च नहीं की।
उन्होंने पेटेंड या  ट्रेडमार्क के लिए आवेदन नहीं दिया। उन्होंने तो बस एक वेबसाइट तैयार की। और उसे शुरू कर दिया। बहुत सी कंपनियां अपनी वेबसाइट को जटिल बना देती है। और आदर्श बनाने के चक्कर में सब कुछ गड़बड़ कर देती है। फेसबुक ने ऐसा कुछ नहीं किया, इतनी तेजी से और सफलता से काम किया।
फेसबुक का  पहला संस्करण बहुत ही सरल था। मार्क जुकरबर्ग ने कहा है, मेरा लक्ष्य कभी केवल एक कंपनी बनाना नहीं था। बहुत से लोग इसकी गलत व्याख्या कर लेते हैं। जैसे मुझे आमदनी या मुनाफा या ऐसी किसी चीज की परवाह ना हो। लेकिन मेरा आशय है। मैं सिर्फ एक कंपनी नहीं बनाना चाहता था। मैं तो कोई ऐसी चीज बनाना चाहता था, जो संसार में वाकई बड़ा परिवर्तन कर दे।।

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