जमशेदजी टाटा का जीवन परिचय | Biography of Jamshetji Tata in Hindi
टाटा ग्रुप – जमशेदजी टाटा “ हम दूसरों के अधिक निस्वार्थ उदारियां परोपकारी होने का दावा नहीं करते हैं लेकिन हम सोचते हैं, कि हम ठोस और इमानदार व्यवसायिक सिद्धांतों पर चलने हैं अपने शेयर होल्डर्स के हितों को अपना हित बनाते रहे और हमने अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य व कल्याण को अपनी सफलता की मजबूत नींव माना है। “
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शुरुआती संघर्ष –
1869 तक टाटा परिवार को छोटा व्यापारी समझा जाता था। इसे मुंबई व्यवसाय जगत में पीछे की बेंच पर बैठने वाला माना जाता था। जमशेदजी ने इस भ्रम को तोड़ते हुए एंप्रेस मिल बनाई, जो उनकी पहली बड़ी औद्योगिक कंपनी थी। जब जमशेदजी ने नागपुर में कॉटन मिल बनाने की घोषणा के उस वक्त मुंबई को टेक्सटाइल नगरी कहा जाता था। अधिकांश कॉटन मिल्स मुंबई में ही थी। इसीलिए जब जमशेदजी ने नागपुर को चुना तो उनकी बड़ी आलोचना हुई एक मारवाड़ी फैन फाइनेंसर ने एंप्रेस मिल में निवेश के बारे में कहा। यह तो जमीन खोदकर उसमें सोना दबाने जैसा है। दरअसल जमशेदजी ने नागपुर को तीन कारणों से चुना था। कपास का उत्पादन आसपास के इलाकों में होता था रेलवे जंक्शन समीप था। और पानी तथा ईंधन की प्रचुर अपूर्ति थी। (जमशेदजी टाटा का जीवन परिचय )
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अपने कारोबारी जीवन की शुरुआत में ही जमशेदजी एक गंभीर आर्थिक झटका लगा, कारोबारी साझेदारी प्रेम चंद्र राय चंद्र का कर्ज उतारने के लिए उन्हें अपना मकान और जमीन जायजा बेचनी पड़ी। इसके अलावा,1887 में खरीदी स्वदेशी मिल्स में उनका पूरा पैसा लग गया, और वे आर्थिक संकटों में घिर गए, बहरहाल टाटा ने हिम्मत नहीं हारी और अंततः सभी संकटों से उबर गए।
महत्वपूर्ण मोड़
एक बार जमशेदजी टेक्सटाइल मिल की नई मशीनें लेने के लिए मैनचेस्टर इंग्लैंड गए थे। वहां उन्होंने टॉमस कार्यालय का एक लेक्चर सुना यहीं से उनके मन में भारत में स्टील प्लांट बनाने का विचार आया। उन्होंने सोचा कि स्टील प्लांट के बिना कोई भी देश आदमी की उम्र में कदम नहीं रख सकता। इसीलिए उन्हें स्टील प्लांट बनाना चाहिए 19 वीं सदी के अंत में भारत में स्टील प्लांट बनाने के बारे में सोचना ही कई लोगों को मूर्खतापूर्ण लग रहा था, बहुत पैसे लगेंगे, आदमी मशीनों की जरूरत पड़ेगी, और ब्रिटिश सरकार की शत्रुता पूर्ण या असहयोग पूर्ण नीति रहेगी, जमशेदजी के सपने का माहौल उड़ाने वाले लोग बहुत हैं।
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मिसाल के तौर पर ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे के चीफ कमिश्नर सर फ्रेंड रिक ऑफ कोर्ट ने यहां हास्यास्पद शर्त लगाई। अगर टाटा का प्लांट स्टील की छवि बनाने में सफल हो जाता है। तो मैं उसकी बनाई सारी छड़ें खा जाऊंगा। किसी को भी कल्पना नहीं थी कि स्टील प्लांट के से भविष्य में कितना अधिक लाभ होगा। बहरहाल जमशेदजी टाटा को पूरा विश्वास था, कि आधुनिकीकरण में ही भारत की प्रगति निहित है।
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