Hindi Essay on Female Foeticide a Curse - कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप

Hindi Essay on Female Foeticide a Curse – कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप रूपरेखा

 

  • भारत में लिंगानुपात की स्थिति किस तरह से इसमें लगातार कमी आई है इसका विवरण। 
  • इस कुप्रथा को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से भी संक्षेप में देखने का प्रयास हो और इसके पीछे विद्वान विभिन्न कारणों की पड़ताल।
  • आज के युग में भी कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथा यदि रुकने का नाम नहीं ले रही है तो क्यों ? यदि अशिक्षा को ही इसके पीछे बहुत बड़ा कारण माना जाता रहा है तो आज शिक्षित समाज में भी बड़े पैमाने पर यह घटनाएं क्यों हो रही है इस पर व्यापक चर्चा
  • रोकने के लिए किए जा रहे विभिन्न उपाय साथ में यह भी विवेचना करना अपेक्षित है कि बिना व्यक्तिगत स्तर पर दृढ़ इच्छाशक्ति के और व्यापक जागरूकता अभियान से सिर्फ कानून बनाकर इसे नहीं रोका जा सकता ।




भारत में घटना लिंगानुपात वर्तमान समय में एक ज्वलंत समस्या बन गया है. एक ऐसे समय में जब हम दवा करते हैं कि तार्किकता आधुनिकता, शिक्षा और बराबरी बढ़ रही है, यह रुझान और भयानक लगने लगता है। नर नारी की समानता के दावे, समाजसेवी संगठनों के प्रयास, सरकारी कदम सभी कुछ खोखले प्रतीत होते हैं।  क्यों यह संकट बढ़ता ही जा रहा है, क्यों आधुनिकता एवं लिंग अनुपात एक दूसरे के विरोधी साबित हो रही है ?

 

कन्या भ्रूण हत्या पर यह कुछ ऐसे प्रश्न है जो भारत में एक विकसित देश बनने के रास्ते में अवरोध बन कर खड़े हैं।

 

भारत में 1901 से 1000 पुरुषों पर 972 महिलाएं थी जो 1991 में घटकर 927 हो गई।  यदपि 2001 तक बढ़कर प्रति हजार 933 महिलाएं हो गई। परंतु यदि 6 वर्ष तक की उम्र तक की लड़कियो का अनुपात देखा जाए तो 1991 में 945 प्रति हजार से घटकर 2001 में 927 हो गया है।  भारत के अपेक्षाकृत संपन्न और शहरी कृत राज्य हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और गुजरात में यह अनुपात और कम है तथा यहां प्रति हजार लड़कों पर 900 से भी कम लड़कियां हैं।

महाराष्ट्र में शुगर बेल्ट के रूप में पहचाने जाने वाले अपेक्षाकृत संपन्न जिलों कोल्हापुर, सांगली, सातारा, अहमदाबाद और सोलापुर जिलों में भी यह अनुपात 900 प्रति 1000 से कम है देश की राजधानी दिल्ली में भी 6 वर्ष से कम जिलों में भी अनुपात 900 प्रति 1000 से कम है देश की राजधानी दिल्ली में भी 6 वर्ष से कम उम्र के लड़कियों का अनुपात 865 प्रति हजार है ।

राजधानी में ही और संपन्न तथा उच्च वर्गीय दक्षिणी पश्चिमी दिल्ली में यह अनुपात और कम 845 प्रति हजार है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार सुनियोजित तरीके से लैंगिक भेदभाव के कारण भारत में 8 करोड लड़कियां और महिलाएं लुप्त हो रहे हैं। इस प्रकार भारत में 1901 में जहां पुरुषों से लेकर केवल 30 लाख महिलाएं कम थी 2001 की जनगणना तक यह कमी बढ़कर 3.5 करोड़ हो गई।

 

भारत में लिंगानुपात (महिला भ्रूण हत्या) में कमी का कोई एक कारण- Female Foeticide Causes (Essay)

 

भारत में लिंगानुपात (महिला भ्रूण हत्या) में कमी का कोई एक कारण नहीं है इसके बहुत से कारण है जो आपस में इस तरह आंतरिक रूप से उठे हुए हैं कि उनमें से किसी अकेले एक कारण को बड़ी समस्या माना मुश्किल हो जाएगा। इनमें से कुछ की जड़े अतीत में बहुत गहरी धसी हुई है इन्हें पहचानो और दूर करना बहुत ही कठिन है, तो कुछ बिल्कुल नई और तेज धार वाली है।  क्षेत्र, जाति, धर्म और भौगोलिक रूप से इनमें इतनी विभिनता है कि कहीं कोई कारण महत्वपूर्ण हो जाता है तो दूसरी जगह वही नगण्य ।

यदपि  भारत में प्राचीन काल से ही नारी को धार्मिक रूप से बहुत ही ऊंचा स्थान दिया गया है, उसे देवी मां का दर्जा दिया गया है तथा पूजनीय माना गया है। परंतु व्यवहार में प्राचीन काल में ही नारी पर विभिन्न प्रकार के विभेद जन्म से मृत्यु तक थोपे गए हैं। नारी को धार्मिक और आर्थिक रूप से दोयम दर्जे का माना गया है। उपनिषदों में यदि नारी को सुरा और पासे में सामान बुरा बताया गया है तो लगभग सभी धार्मिक ग्रंथों में पुत्र के जन्म की कामना की गई है।

प्रारंभिक पशु चारण और आगे चलकर कृषक समाज में स्वाभाविकता पुरुष सामाजिक आर्थिक दृष्टि से अधिक उपयोगी समझे गए, क्योंकि वह आर्थिक गतिविधियों के लिए वर्ष के 12 महीने उपलब्ध थे, और युद्ध में समय कबीलों की रक्षा करने में सक्षम थे। इन्हीं प्रारंभिक अनिवार्यता ओं में प्रतिवादी व्यवस्था को जन्म दिया और इसे धार्मिक जामा पहना दिया गया। इस समय के साथ इनकी जड़ें गहरी फैल गई।




विद्वानों ने पुत्र जन्म की कामना में समानता तीन कारण निर्धारित किए हैं। जो महिला भ्रूण हत्या यानि Female Foeticide के लिए उत्तरदायी है।

 

  1. आर्थिक उपयोगिता
  2. सामाजिक सांस्कृतिक भूमिका और
  3. धार्मिक कर्मकांड

पुत्र कृषि और व्यापार द्वारा परिवार के लिए धन अर्जन करने और बुढ़ापे में माता-पिता का सहारा माने गए थे। साथ ही वे विवाह के साथ परिवार को काम करने के लिए एक अतिरिक्त सदस्य तथा दहेज भी दिलाने में सक्षम थे, जबकि पुत्री के होने पर विवाह उपरांत जहां परिवार में 1 सदस्य की कमी होती थी वही उसे दिए जाने वाले दहेज के कारण आर्थिक रूप से हानि भी उठानी पड़ती थी।

प्रतिवादी समाज व्यवस्था में पुत्र समाधि प्रतिष्ठा का घोतक माना जाता रहा है धार्मिक दृष्टि से कई ऐसे कर्मकांड है जिन्हें पुत्र ही संपन्न कर सकता है तथा मृत्यु के बाद पुत्र द्वारा किया गया अंतिम संस्कार मुक्ति मोक्ष के लिए आवश्यक माना गया है।




यदपि बीसवीं शताब्दी से पहले जन्म पूर्व लिंग निर्धारित की कोई तकनीकी प्रचलन नहीं थी फिर भी जन्म पूर्व और जन्मो प्रांत ऐसे उपाय व्यवहार में लाए जाते थे, जिनसे उनकी व्याख्या में निरंतर कमी होती रहती थी। एक मान्यता यह थी कि यदि कोई गर्भवती महिला के पेट में दाईं तरफ हलचल है तो उसके पुत्र तथा बाईं तरफ हलचल है तो पुत्री पैदा होगी।

इस आधार पर बच्चे को जन्म देना है कि नहीं यह निर्णय ले लिया जाता था। कुछ जातियों जनजातियों और क्षेत्रों में तो जन्म के तुरंत बाद लड़कियों को मारने (Female Foeticide Essay) की परंपरा रही है। ज्यादातर समाजों में शिक्षा भोजन और स्वास्थ्य रहने के अन्य उपायों में भी लड़के और लड़कियों के निरंतर भेदभाव किया जाता रहा है।

बीमार होने पर सही समय पर दवा नहीं कराने और पोषण की कमी के कारण लड़कियों में मृत्यु दर हमेशा से अधिक रही है।  बच्चा जनते समय पर्याप्त चिकित्सा सुविधा ना होने पर कई बच्चों के जनने से हुई कमजोरी के कारण महिलाओं में मृत्यु दर अधिक होने के कारण भी लिंग अनुपात (Female Foeticide Essay) में कमी विद्मान रही है। कुछ रोगों के प्रति महिलाएं अधिक संवेदनशील नहीं होती हैं जिसके कारण से रोगों के फैलने पर वे अपेक्षाकृत अधिक मरती है।

 

दहेज प्रथा के कारण कन्या भ्रूण हत्या (Female Foeticide Essay)

 

वर्तमान समय में शिक्षा का स्तर बढ़ने विज्ञान तकनीकी के विकास और तेजी से सामाजिक आर्थिक संबंधों में परिवर्तन के बावजूद लिंगानुपात में कमी के उपयुक्त कारण तो विद्वान है ही, साथ ही संकट को बढ़ाने वाले नए आयाम भी जुड़ गए हैं। बढ़ती दहेज प्रथा के कारण जहां तमाम बहू मार दी जाती है वहीं इसकी विक्रांता के चलते लड़कियों को गर्भ में ही मारने की संख्या में तेजी में वृद्धि होती जा रही है।




जन्म पूर्व लिंग निर्धारण की तकनीकी सुविधा ने इस समस्या को बद से बदतर बनाने में भूमिका निभाई है। आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी संपन्न और पढ़े-लिखे क्षेत्रों में लिंग अनुपात में तेजी में कमी आ रही है। भारत में विज्ञान तकनीकी के बढ़ते प्रयोग शिक्षा वैश्वीकरण आधुनिकता आदि के बावजूद लोगों के भीतर पारंपरिक सोच बहुत ही गहरे पैठ बनाए हुए हैं, और यही कारण है कि संपन्न क्षेत्रों में सबसे ज्यादा भूण हत्या होती है।

 

छोटा परिवार और सुखी परिवार में लिंगानुपात के मामले में विपरीत भूमिका निभाई है

 

सुशिक्षित संपन्न जागरूक वर्ग परिवार तो छोटा रखना चाहता है परंतु लड़कों का व्यामोह नहीं छोड़ पाता जिसके कारण विभिन्न साधनों का प्रयोग करके लड़की को दुनिया में आने से पहले ही समाप्त कर देता है| भ्रूण हत्या तो एक बड़ी समस्या है ही, परंतु लिंगानुपात में कमी के पीछे मुख्य कारण लिंग पहचान करके भ्रूण हत्या है।

ऐसा अनुमान लगाया गया है कि प्रत्येक छोटी कन्या को जन्म से पहले मार दिया जाता है, पर गैर सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार देश में प्रतिवर्ष एक करोड़ कन्याये जन्म लेती हैं, जिनमें से लगभग 20 लाख को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है। यानी 2000000 कन्या भ्रूण प्रतिवर्ष नष्ट कर दिए जाते हैं परंतु इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का मानना है कि देश में प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख कन्या भ्रूण नष्ट किए जाते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जनरल द लांसेट ने  2006 के प्रारंभ में बताया गया था कि पिछले 20 सालों में लगभग एक करोड़ कन्या भ्रूण का गर्भपात कराया गया है।

 

कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं

 

ऐसा नहीं है कि सरकार एक गंभीर समस्या के प्रति निष्क्रिय हैं। कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं और दंड के प्रावधान है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के अनुसार यदि गर्भस्थ शिशु के बारे में यह पता चल जाए कि वह सामान्य है। परिवार नियोजन के साधनों के उपयोग के बावजूद गर्भ में ठहर गया हो, तो ऐसी स्थिति में गर्भपात कराना गैरकानूनी नहीं होगा। बशर्ते कि यह सारी प्रक्रिया 20 सप्ताह के भीतर हो जाए।

सरकार ने सन 1994 में एक और पहल करते हुए लिंग परीक्षण हेतु अल्ट्रासाउंड के प्रयोग पर पूरी तरह से रोक रोक लगा दिया था। जनवरी 1996 से लागू द प्रीनेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स एक्ट एंड रूल 1994 द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को प्रतिबंधित करने की पहल की गई है नई तकनीकों के विकास और उनके क्रियान्वयन में आने वाले दिक्कतों को देखते हुए 2003 में इसे संशोधित करके और प्रभावी बनाया गया। इस कानून के तहत गर्भस्थ शिशु के लिंग की पहचान हेतु जांच कराना और इसे प्रचारित करना कानून अपराध है। इस कानून का प्रथम बार उल्लंघन करने वाले डॉक्टर अथवा व्यक्ति को ₹50000 तक के आर्थिक दंड के साथ साथ 3 साल का कारावास की सजा दी जा सकती है।




इसी तरह दूसरी बार उल्लंघन करने वाले पर ₹100000 का दंड और साथ ही 5 साल का कठोर कारावास दिया जाएगा, साथ ही गर्भवती महिला को लिंग परीक्षण  करने वाले पुरुष और महिला को भी दंड दिया जा सकता है। इस कानून के तहत जब तक दोषी ना सिद्ध हो जाए महिला को निर्दोष माना जाएगा।

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पिछले कुछ सालों में राष्ट्रीय महिला आयोग पीसीपीएनडीटी एक्ट को ठीक से अमल में लाए जाने के लिए सघन अभियान चला रहा है। आयोग ने कानून के समक्ष आ करके इसे सरकार के पास भेजा है अब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय राष्ट्रीय महिला आयोग और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के प्रतिनिधियों से निर्मित नेशनल इंस्पेक्शन एंड मॉनिटरिंग कमिटी कम शिशु लिंगानुपात (0-6) साल वाले जिलों का दौरा कर कानून के प्रभावी क्रियान्वयन पर बल देती है।

 

निष्कर्ष – कन्या भ्रूण हत्या (Female Foeticide Essay)

 

भारत में लिंगानुपात में कमी बहुआयामी समस्या का परिणाम है इसलिए इसके लिए कई दिशा में प्रयास करना होगा इन कारणों को भी दूर करने का प्रयास करना होगा जिसके कारण लोग कन्या जन्म से लड़ते हैं डरते हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है विकराल रूप लेती दहेज प्रथा सभी  समस्याओं के लिए बने कानूनों को एक और तो सख्ती से लागू कराना होगा तो दूसरी और सामाजिक आंदोलन भी चलाना होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि हमें इस बात को समझना समझाना और महसूस करना होगा कि यह एक ऐसी समस्या है जिसकी वजह भी हम खुद हैं और इसका निदान भी हमें खुद ही करना है ।

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