How do Infectious Disease Spread and How to Prevent Them | संक्रामक रोग कैसे फैलते हैं

संक्रामक रोग (Infectious Disease) कैसे फैलते हैं संक्रामक रोग के प्रकार और उनसे बचाव कैसे करें

 

एक दूजे के लिए पदार्थ से मनुष्य को लग जाते हैं वे संक्रामक (Infectious Disease) या संचारी रोग कहलाते हैं। संक्रामक रोगों पर सफल नियंत्रण के लिए यह जरूरी है, कि लोगों को पता चले कि इन लोगों का प्रसार कैसे होता है। कौन से माध्यम संक्रमण में अहम भूमिका निभाते हैं और संक्रमण के स्रोत क्या है और रोगाणुओं के संग्रहण क्या है ।

 

संक्रमण रोगों के स्रोत- Sources of Infectious Disease

संक्रमण रोगों के स्रोत जीव-जंतु भी हो सकते हैं और स्वयं मनुष्य भी । इसके अलावा अन्य वस्तुएं जैसे विशाक्त खाद्य पदार्थ भी संक्रमण के स्रोत में संक्रमण कारी रोगाणु मौजूद होते हैं, और यह रोगाणु विभिन्न माध्यमों द्वारा मनुष्य में पहुंच जाते हैं ।




 

संग्राहक और रिजर्वायर -Collectors and Reservoir

संग्राहक या रिजर्वायर के रूप में मनुष्य, जीव जंतु या मिट्टी अथवा अन्य पदार्थ भी हो सकते हैं । इनमें संक्रमण कारी जीव रहते हैं और जनन द्वारा अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं । एवं समय आने पर विभिन्न माध्यमों द्वारा अन्य व्यक्ति में पहुंच जाते हैं ।

 

यह 3 तरह के होते हैं

  1. मनुष्य
  2. जानवर
  3. निर्जीव वस्तुएं

 

मनुष्यो के द्वारा

व्यक्ति स्वयं ही कई महत्वपूर्ण लोगों का संवाहक और संग्राहक होता है । दूसरे शब्दों में कहें तो वह अपने स्वयं का ही दुश्मन है, क्योंकि बहुत सी बीमारियां एक मनुष्य के दूसरे मनुष्य के संपर्क में आने से ही होती है ।

मनुष्य जिन रोगाणुओं के कारण बीमार होता है उनका वह वाहक भी बनता है । कई बार यह जरूरी नहीं रहता कि रोगाणु का संवाहक व्यक्ति स्वयं बीमार दिखे । वह स्वस्थ भी रह सकता है । अपर्याप्त इलाज के कारण भी रोगी व्यक्ति संबंधित रोगाणुओं का वाहक कई दिनों तक बना रहता है । रोगाणुओं के यह संवाहक अत्यंत खतरनाक होते हैं क्योंकि यह जिन स्वास्थ्य लोगों के संपर्क में रहते हैं उन्हें भी बीमार बना देते हैं ।

उदाहरण के लिए मियादी या टाइफाइड बुखार के जीवाणुओ का संवाहक व्यक्ति अन्य स्वस्थ लोगों को कई दिनों पश्चात रोग का शिकार बना सकता है ।




रोगों के कीटाणुओं तथा रोगाणुओं के संवाहक कई तरह के होते हैं जैसे-

स्वस्थ दिखने वाले संक्रमित व्यक्ति जिनमें रोगाणु तो रहते हैं लेकिन बीमारी के लक्षण नहीं होते । अर्थात संक्रमित व्यक्ति उद्भव कालीन समय में रहता है । उदाहरण के लिए मीजल्स, पोलियो, हेपेटाइटिस बी, एडस (Mizzles, polio, hepatitis B, AIDS) इत्यादि ।

बीमारी के पश्चात जब रोगी स्वस्थ होने लगता है तो कई दिनों तक वह उस बीमारी के रोगाणु का वाहक बना रहता है । उदाहरण के लिए टाइफाइड, ज्वर, पेचिस, हैजा, घटसर्प, कुकर खांसी (Typhoid, fever, dysentery, cholera, ghatasarp, cooker cough) इत्यादि। 

तीसरे प्रकार के संवाहक में व्यक्ति होते हैं जो स्वस्थ दिखते हैं परंतु उन्हें बीमारी के रोगाणु तथा जीवाणु मौजूद होते हैं । लेकिन वह खुद बीमार नहीं रहते इसके उदाहरण है पोलियो, हैजा घटसर्प, मस्तिष्क शोध तथा मेनिगोकाॅकल, मेनिनजाइटिस इत्यादि ।

कुछ संवाहक थोड़े समय के लिए ही रोगाणुओ के वाहक होते हैं और कुछ ऐसे संवाहक होते हैं जो अनंत समय तक रोगाणुओं के बाहर बने रहते हैं । और मल मूत्र अथवा पेशाब द्वारा बीमारी के रोगाणुओं को उत्सर्जित करते रहते हैं । यह अवस्था टाइफाइड, हेपेटाइटिस बी मलेरिया, गोनोरिया इत्यादि में लंबे समय तक बनी रहती है ।

 

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इस तरह के संवाहक समाज के लिए रोगी व्यक्ति से ज्यादा हानिकारक हो रहते हैं । क्योंकि रोगी से तो लोग सावधान रहते हैं लेकिन स्वस्थ व्यक्ति जो रोगाणुओं का वाहक होता है उसका पता नहीं चल पाता ।

रोग के कीटाणुओं के उत्सर्जन के रास्ते के अनुसार ही संवाहको का वर्गीकरण करते हैं । जैसे पेशाब द्वारा, आंतों द्वारा, नाक के स्राव द्वारा, या खखार द्वारा एवं अन्य तरह के जैसे शरीर की त्वचा में उभरी फुंसियों द्वारा ।

खाने पीने की जगहो में काम करने वाले वाहक आम लोगों के लिए अधिक खतरनाक होते हैं । क्योंकि एक साथ कई कई व्यक्तियों में रोग के कीटाणु फैलाते हैं । उदाहरण के लिए टाइफाइड का स्वस्थ दिखने वाला संवाहक ।




जानवर के (Transmission) द्वारा

कई रोगों के संग्राहक या स्रोत जानवर और पक्षी भी होते हैं । यह खुद भी बीमार हो सकते हैं, और रोगाणुओं के संवाहक भी हो सकते हैं । इस तरह की लगभग 100 से अधिक बीमारियां है जो जानवरों और पक्षियों द्वारा मनुष्य में फैलती हैं । उनमें से कुछ प्रमुख उदाहरण है जैसे- रेबीज, येलो फीवर, इन्फ्लूएंजा इत्यादि । पक्षियों द्वारा मस्तिष्क शोथ और हिस्टोप्लाज्मोसिस जैसे खतरनाक रोग हो सकते हैं । पक्षी एक देश से दूसरे देश में जा सकते हैं । इसलिए इनमें रहने वाले ट्रिक्स कई वायरसों को एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में पहुंचाते हैं ।

 

निर्जीव वस्तुओं वाले संग्राहक (Transmission)

मिट्टी भी विभिन्न संक्रमण के स्रोत या संग्रहक का कार्य करती है । उदाहरण के लिए मिट्टी से टिटनेस, एंथ्रेक्स, माइसेटोमा इत्यादि बीमारियां हो सकती है।

 

संक्रामक रोगों का प्रसार (Transmission) कैसे होता है – How do Infectious Disease spread?

संक्रामक रोग, रोगाणुओं के स्रोत या संग्राहक से विभिन्न रास्तों द्वारा दूसरे व्यक्तियों में फैलते हैं । जैसे सीधे संपर्क से सर्दी की बीमारी लग सकती है । एक क्षय मरीज यानी कि टीवी के बीमार मरीज के खांसने से संपर्क में आए हुए स्वस्थ व्यक्ति को भी टीवी की बीमारी हो सकती है । इसी तरह यौनसंपर्क या दूषित खून से एडस और हेपेटाइटिस बी का संक्रमण फैल सकता है ।

 

संक्रमण रोगो के विभिन्न तरीकों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया गया है। – Different methods of Infectious Disease

रोगों का सीधा प्रसारण – direct spread of diseases

  1. सीधे संपर्क से
  2. लार की छोटी-छोटी बूंदों या ड्रॉपलेट्स द्वारा
  3. मिट्टी के संपर्क से
  4. त्वचा के माध्यम से (इनॉक्यूलेशन Inocilation)
  5. जरायु (प्लेसेंटा placenta) द्वारा मां से बच्चे में

 

रोगो का अप्रत्यक्ष का प्रसार – Indirect spread of diseases

  1. पानी, खाद्य पदार्थों, रक्त दबाव, इत्यादि से
  2. हवा द्वारा संक्रमण का प्रसार
  3. रोगी की गंदगी और उपयोग की वस्तुओं द्वारा
  4. गंदे हाथों एवं उंगलियों द्वारा

रोगो का सीधा प्रसारण

सीधे संपर्क द्वारा

कुछ संक्रमण रोगी या संग्राहक की त्वचा का संपर्क होने पर भी लग सकते हैं इसी तरह श्लेष्मा  के संपर्क में भी रोग हो सकते हैं ऐसे संक्रमण (Infectious Disease) के किसी माध्यस्थ की आवश्यकता नहीं होती । स्पर्श, चुंबन, गले लगने ,यौन संबंधों से इस तरह के संक्रमण रोगी व्यक्ति से अन्य व्यक्ति से पहुंचा जाते हैं इनके उदाहरण है कई यौन जन्य रोग जैसे सिफलिस, गोनोरिया इत्यादि । कुष्ठ रोग एवं कई त्वचा रोग तथा आंखों की बीमारियां ।

 

लार की छोटी-छोटी बूंदों द्वारा संक्रमण फैलना




जब रोगी व्यक्ति बोलता है खांसता है या छींकता है तो उसकी लार में उपस्थित रोग के विषाणु या फिर जीवाणु लाखों की संख्या में बहुत छोटी-छोटी बूंदों के साथ बौछार के रूप में बाहर निकलते हैं। जो आसपास मौजूद व्यक्तियों की सांसो द्वारा अंदर जाकर रोग उत्पन्न कर सकते हैं इन्हे हम ड्रॉपलेट्स कहते है, जो आंखों की झिल्ली के संपर्क में भी आते हैं इस तरह के माध्यम द्वारा शय रोग, तांत्रिका तंत्र संबंधी रोग, सर्दी, कुकर खांसी, मेनिनजाइटिस इत्यादि बीमारियां उत्पन्न होती है।

मिट्टी के संपर्क में होने वाले रोग

मिट्टी के फीता कृमि के लारवा, टिटनेस के कीटाणु अथवा फंगस होते हैं। जिनके सीधे संपर्क से यह रोग हो सकते हैं जैसे मिट्टी यदि खुले घावों  से संपर्क में आए तो टिटनेस की बीमारी हो सकती है।

त्वचा या श्लेष्मा के संपर्क द्वारा होने वाली बीमारिया – Skin contact diseases

बीमारी उत्पन्न करने वाले रोगाणु जब सीधी त्वचा में प्रवेश करते हैं या से श्लेष्मा के संपर्क में आते हैं तो रोग उत्पन्न हो सकते हैं इस तरह से रोगो के प्रसार के उदाहरण है – कुत्ते के काटने से रेबीज का होना, हेपेटाइटिस बी, विषाणु या एचआईवी संक्रमित द्वारा दूषित सुइयों या फिर सीरीज के माध्यम से होना।

जरायू प्लेसेंटा द्वारा होने वाले रोग – Placenta disease

गर्भवती माताओं के गर्भस्थ शिशुओं में बीमारी के रोगाणु सीधे जरायू या प्लेसेंटा  द्वारा रक्त में पहुंच जाते हैं। इस तरह के कुछ उदाहरण है टॉर्च एजेंट्स (टोक्सोप्लाज्मा, रोवेला, साइटोंमेंगेला तथा हरपीज वायरस) एड्स विषाणु, हेपेटाइटिस बी विषाणु इत्यादि संक्रमण इस तरह से हो सकते हैं।

अप्रत्यक्ष प्रसार- Indirect Transmission

अप्रत्यक्ष रूप से संक्रमण का प्रसार (Transmission) कई तरह से होता है अंग्रेजी में इसके लिए ऍफ़ अक्षर से शुरू पांच नाम प्रमुख हैं फ्लाइज, फोमीटस, फूड, फ्लूइड और फिंगर्स यानि की मक्खियां, मरीज के वस्त्र और गंदगी, भोजन, पीने का पानी और उंगलियां।   अप्रत्यक्ष रूप से संक्रमण केवल ऐसे विषाणु अथवा जीवाणुओं द्वारा ही संभव होता है जो मनुष्य के शरीर के बिना बाहरी वातावरण में भी जीवित रह सकते हो।  यही कारण है कि एड्स वायरस द्वारा संक्रमण उपयुक्त माध्यमों से नहीं हो पाता।




पानी खाद्य पदार्थ और रक्त दबाव इत्यादि से होने वाला संक्रमण

इस तरह से संक्रमण के प्रसार में बहुत ही वस्तुएं जैसे:- पानी दूध, कच्ची सब्जियां, आइसक्रीम खून अथवा खून के उत्पाद प्लाज्मा मांस इत्यादि शामिल होते हैं प्रत्यारोपित अंग वाले रोगाणु इन्हीं वस्तुओं से पलते और संख्या बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए हेपेटाइटिस ए नामक वायरस पानी में रह सकता है। इसी तरह सारे वायरस भोजन में उपस्थित रहता है। पानी और भोजन द्वारा उत्पन्न बीमारियां जैसे की पेचिश, टाइफाइड है। जहां पोलियो, हेपेटाइटिस ए, पीलिया भोजन विषाक्तता पेट के कई क्रीमी रोग इत्यादि हो सकते हैं।
रक्त द्वारा उत्पन्न रोग जैसे :- एड्स, हेपेटाइटिस बी,  मलेरिया, साइटोमेंगलो वायरस, ब्रूसेलोसिस (AIDS, hepatitis B, malaria, cytomegalo virus, brucellosis) आदि गुर्दे के प्रत्यारोपण के बाद भी साइटोमेंगलो वायरस द्वारा संक्रमण हो सकता है।

जीव जंतुओं द्वारा होने वाला संक्रमण Animal infection

इस तरह के प्रसार में हिस्सा लेने वाले जीव जंतु बहुत से हैं और उन्हें कई प्रकार से वर्गीकृत भी किया गया है।  लेकिन अधिक गहराई से ना जाकर हम यहां मुख्य नाम वाले और उनके द्वारा उत्पन्न बीमारियों का उल्लेख कर रहे हैं।


  1. मच्छर से होने वाली बीमारी:-  मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू ज्वर, चिकनगुनिया इत्यादि। 
  2. मक्खियां होने वाली बीमारी: हैजा, आंत्रशोथ इत्यादि।
  3. पिस्सू होने वाली बीमारी :-  प्लेग  इत्यादि।
  4. जुएं होने वाली बीमारी:- टाइफस, रिलेप्सिंग  फीवर इत्यादि। 
  5. तिलचट्टा (कॉकरोच) होने वाली बीमारी:- भोजन विषाक्तता, आंत्रशोथ इत्यादि। 
  6. केलनिया और चिचड़ियाँ से होने वाली बीमारी:-  टायफस, रिप्लेसिंग फीवर खुजली इत्यादि। 

जंतु दो प्रकार से संक्रमण रोग (Infectious Disease) का प्रसार कर सकते हैं :-

यांत्रिक प्रसार (Mechanical propagation):- इस तरह के प्रसार में रोग फैलाने वाले जीवाणु या विषाणु की संख्या मच्छर मक्खी या अन्य जंतुओं से नहीं बढ़ते यह केवल रोगाणुओं को एक शरीर या वस्तु से अन्य शरीर में छोड़कर रोग फैलाते हैं।
जैविक प्रसार (Biological propagation):- इस विधि में रोगाणुओं जनन क्रिया द्वारा जंतुओं के शरीर में अपनी संख्या बढ़ाते हैं जैसे प्लेग का जीवाणु पिस्सुओं से, मलेरिया परजीवी और माइक्रोफाइलेरिया मच्छरों में।

हवा द्वारा संक्रमण रोगों का प्रसार The spread of infection by air

मुँह या  नाक से  खांसी और सीखने के दौरान लार भी बहुत बारीक बूंदे जो दिखती नहीं है।  उन्हें ड्रॉपलेट्स न्यूक्लियाई कहते हैं, निकलती है। इनमें लाखों की संख्या में रोगाणु होते हैं।  यह हवा द्वारा फैलती है। ड्रॉपलेट्स न्यूक्लियाई हवा को प्रदूषित करती है। और मीजल्स, चिकन पॉक्स, ट्यूबरकुलोसिस, इनफ्लुएंजा (Measles, Chicken Pox, Tuberculosis, Influenza) इत्यादि रोग फैलाती है।
धूल भी संक्रमण के प्रसार में सहायक होती है।  ड्रॉपलेट्स न्यूक्लियाई को आकार में कुछ बड़े होते हैं। यह फर्श,  कालीनो, कपड़ों और बिस्तरों में बैठ जाते हैं।  और फिर धूल का हिस्सा बन जाते हैं।  इनमें कई तरह के विषाणु जीवाणु और फंगस के स्पोर  मौजूद होते हैं। कुछ अस्पतालों और रहने के कमरों में भी इस तरह के रोगाणु धूल युक्त मिलती है।  जो कपड़े कालीन या फर्श झाड़ते वक्त दोबारा हवा में फैल कर संक्रमण उत्पन्न कर देते हैं। खुले हुए खाद्य पदार्थों पानी और दूध में भी घुल जाती है और संक्रामक रोगों का प्रसार करती है। अस्पतालों में अक्सर इस तरीके से रोग फैलते हैं।

रोगी की गंदगी और उपयोग की हुई वस्तु द्वारा संक्रमण (Infectious Disease) का फैलना




रोगी की गंदगी और उपयोग की वस्तुएं भी रोग फैलाने में बहुत सक्षम होते हैं। उदाहरण के लिए मरीज के गंदे कपड़े, तौलिए, रुमाल, कप ,  चम्मच, पेंसिल, पुस्तक,  खिलौने, गिलास, दरवाजों के हैंडल, शौचालय की जंजीरें, मरहम पट्टी, उपयोग की हुई सीरीज इत्यादि रोग फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस तरह होने वाली कुछ बीमारियां हैं।  घटसर्प अथवा डिप्थीरिया, टाइफाइड ज्वर, पेचिश, हेपेटाइटिस ए, आंखों और त्वचा के संक्रमण (Ghatsarp or diphtheria, typhoid fever, dysentery, hepatitis A, eye and skin infections) .

गंदे हाथों और उंगलियों द्वारा संक्रमण Infectious Disease by dirty hands and fingers

व्यक्तिगत सफाई के अभाव में हाथों द्वारा अक्सर बीमारी उत्पन्न करने वाले रोगाणु त्वचा, नाक एवं शौच की जगह से भोजन में प्रवेश करने वाले रोग फैलते हैं।  इस तरह से होने वाली कुछ बीमारियां हैं जैसे:- आंत्रशोथ, स्टेप्टो और स्टेफिलोकुक्कल संक्रमण, टाइफाइड यानी कि मियादी बुखार, हेपेटाइटिस ए, और आंतों में कृमि (Gastroenteritis, strepto and staphylococcal infections, typhoid, such as periodic fever, hepatitis A, and intestinal worms) इत्यादि।
उपयुक्त वर्णन से स्पष्ट हो गया है कि हमारी कई गलत आदतों और जानकारी के अभाव के कारण दर्जनों बीमारियों  के फैलाने में हम स्वयं सहायक बनते हैं।  यदि साफ-सफाई और बचाव के लिए आवश्यक सावधानियां रखी जाए तो ऊपर बताए हुए बहुत से रोगों से सहज ही बचा जा सकता है।  दोस्तों यह पोस्ट आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताइए।  आपके  द्वारा शेयर किए गए पोस्टों से और कमेंट  के द्वारा हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया हमारा प्रोत्साहन बनाए रखें।

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