वायरल बुखार क्या है ? -What is Viral Fever in Hindi
What is Viral Fever in Hindi:- वायरल बुखार अत्यंत संक्रमण रोग है, जिससे कोई भी व्यक्ति किसी भी समय और कहीं भी ग्रस्त हो सकता है | हालांकि बच्चे और बुजुर्ग इसकी चपेट में अधिक आते हैं, इस बुखार का प्रकोप वैसे तो हर मौसम में होता है।
लेकिन बरसात में इसका प्रकोप बढ़ जाता है | इसीलिए इस मौसम में इसके प्रति विशेष सावधान रहने की जरूरत होती है |
आम बोलचाल की भाषा में फ्लू, इनफ्लुएंजा कॉमन, कोल्ड या साधारण सर्दी के बुखार अथवा हड्डी तोड़ बुखार (Flu, influenza common, cold or common cold fever or bone fracture fever) के नाम से पुकारे जाने वाले इस वायरल बुखार के वायरस का एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति तक प्रसार सांस के जरिए होता है।
इस बुखार का मरीज जब खांसता है, तो इसके वायरस पास के व्यक्ति के शरीर में सांस के जरिए और मुख्य रास्ते प्रवेश कर जाते हैं और एक-दो दिन में वह व्यक्ति भी इस बुखार से पीड़ित हो जाता है |
वायरल बुखार के लक्षण – Viral Fever Symptoms in Hindi
Viral Fever Symptoms in Hindi :- वायरल बुखार के लक्षण अन्य बुखार की तरह ही है, अचानक तेज बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द, सुखी तेज खांसी, जुकाम, गले में खराश , नाक से पानी, छींक, यह तेज बुखार के सामान्य लक्षण है (Sudden high fever, headache, body ache, dry high cough, cold, sore throat, watery nose, sneeze, are common symptoms of high fever)
इस बुखार में कई बार कमर में भी दर्द होता है। जी मिचलाता है, भूख नहीं लगती हैं , और उल्टी होती है, इससे शरीर का तापमान 101 से 103 डिग्री है, और ज्यादा हो जाता है, बुखार धीरे धीरे चढ़ता है, और बीच में उतरता नहीं है।
बुखार निवारक दवाइयां लेने पर ही बुखार कुछ समय के लिए उतरता है, कुछ वायरल बुखार 3 दिन में कुछ 5 दिन में और कुछ 7 दिन में उतरते हैं। 7 दिन से अधिक समय तक बुखार कम वायरल बुखार रहते हैं |
वायरल बुखार के उपचार – Treatment of Viral Fever (Medicine)
वायरल बुखार (Viral Fever) का कोई विशेष इलाज नहीं है। वायरल बुखार के लिए एक कहावत है। कि यह इलाज के बिना 7 दिनों तक रहता है, और इलाज करने पर 1 सप्ताह तक इसके इलाज के तौर पर सबसे जरूरी है, बुखार को कम रखना।
इसके लिए रोगी के कपड़े उतारकर पंखे या एयरकंडीशन वाले कमरे में या ठंडी जगह पर लिटा कर उसके सिर और माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखनी चाहिए। इसके बाद भी अगर बुखार कम नहीं हो तो पेरासिटामोल, क्रोसिन अथवा एस्प्रिन जैसी बुखार निवारक दवाइयां देनी चाहिए।
लेकिन पेप्टिक अल्सर के मरीजों को एस्प्रिन नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि यह दवा लेने पर उन्हें खून की उल्टी हो सकती है। इसी तरह डेंगू ज्वर के मरीज को भी एस्प्रिन नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि एस्प्रिन लेने पर उनमें प्लेटलेट्स और कम हो जाता है।
इसीलिए बुखार की सबसे सुरक्षित दवा पेरासिटामोल है, जो सभी जगह आसानी से उपलब्ध है, और सस्ती भी है। दिन में चार चार या पांच 5 घंटे के अंतराल पर इस दवा के 500 मिलीग्राम की गोली ली जा सकती है | जिन लोगों को पेरासिटामोल से एलर्जी हो एंटीहिस्टामिन की कोई भी गोली ले सकते हैं |
इस बुखार में रोगी के शरीर में पानी की कमी हो जाती है, इसलिए रोगी को गर्म पानी, गर्म सूप, गरम दूध, जूस आदि का अधिक सेवन करना चाहिए, और आराम करना चाहिए।
वायरल बुखार उतर जाने के बाद भी रोगी का शरीर कमजोर रहता है, और थकावट रहती है, इसीलिए विटामिन बी और सी का अधिक सेवन करना चाहिए, और पौष्टिक आहार लेना चाहिए, यह देखा गया है, कि करीब 1 ग्राम विटामिन सी का रोजाना सेवन करने से वायरल बुखार से काफी हद तक बचाव होता है , और यदि बीमारी हो भी जाती है, तो बीमारी का असर कम होता है |
वायरल बुखार के बचाव – Prevention of Viral Fever
वायरल बुखार से बचाव के लिए यह जरूरी है, कि जब वायरल बुखार की महामारी फैली हो तो, भीड़भाड़ वाली जगहों जैसे:- स्कूल, कॉलेज, बस, ट्रेन, आदि में मुंह और नाक पर साफ कपड़ा या रुमाल रख लेना, मुंह पर रखने वाले सर्जिकल पैड कीटाणु रहित होते हैं।
इसीलिए इन्हें लगाना अधिक लाभप्रद रहता है। मौसम के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए। सर्दी के मौसम में गर्म कपड़े पहने और मुंह तथा नाक को छोड़कर शरीर के बाकी हिस्से को ढक कर रखें। इसके अलावा भोजन प्रोटीन एवं विटामिन युक्त ग्रहण करना चाहिए।
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मलेरिया बुखार – Malaria Fever
मलेरिया (Malaria) खतरनाक बीमारी है, इसका कारण एक परजीवी प्लाज्मोडियम है, इस परजीवी की 4 प्रजातियां इंसान में रोग पैदा करती हैं, जिसमें सबसे खतरनाक प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम है।
यह परजीवी शरीर के अंदर पहुंचकर रक्त के लाल कणों के अंदर प्रवेश करके अपनी वंश वृद्धि करता है, और रक्ताणुओं को नष्ट कर देता है, इससे ठंड के साथ जोर आता है, तथा शरीर में अन्य दूसरे दुष्प्रभाव भी पैदा होते हैं।
मलेरिया बुखार कैसे होता है :- How does malaria fever occur
मलेरिया रोग केवल मादा एनाफिलीज मच्छर के द्वारा काटने से होता है। जब यह मच्छर किसी मलेरिया संक्रमित व्यक्ति को काटता है, तो रक्त के साथ उस व्यक्ति के शरीर से मलेरिया के परजीवी भी मच्छर के शरीर में चले जाते हैं।
कुछ समय तक परजीवी मच्छर के अंदर रहते हैं। इसके बाद जब वह मादा मच्छर किसी अन्य स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो परजीवी उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
यह परजीवी यकृत में स्थाई रूप से बस जाते हैं, और अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं, फिर किसी समय में खून में पहुंचकर लाल रक्ताणुओं पर हमला कर देते हैं।
इससे रोग के लक्षण पैदा होने लगते हैं, रक्त में भी परजीवी संख्या में वृद्धि करते हैं, संक्रमित मच्छर द्वारा काट लिए जाने के बाद रोग के लक्षण सप्ताह भर से लेकर 6 सप्ताह में दिखने लगते हैं , कई परजीवी लीवर में कई महीनों अथवा सालों तक रह सकते हैं, इसके बाद जब वह रक्त के लाल रक्ताणुओं पर आक्रमण करते हैं ,तो रोगी खुद को बीमार महसूस करता है।
मलेरिया बुखार के लक्षण :- Symptoms of malaria fever
Symptoms of malaria fever :- मलेरिया बुखार का प्रमुख लक्षण तेज बुखार है, जिसके साथ साथ रोगी को जोर की ठंड लगती हैं, दांत बजने लगते हैं, और रोगी कांपता रहता है| रोगी को कई कंबल व रजाइया उड़ने की जरूरत पड़ती है| रोगी का बुखार 102 से लेकर 106 डिग्री तक हो सकता है |
बुखार के बाद रोगी को तेज पसीना आता है , और बुखार उतर जाता है, आमतौर पर सिर दर्द, बदन दर्द, जी मिचलाना व उल्टियां होती हैं। रोग के कारण कब्ज की शिकायत हो सकती है।
होंठ सूखते हैं, अगले दिन रोगी अपने को स्वस्थ महसूस करता है | तथा तीसरे या चौथे दिन फिर से ठंड लगना, बुखार आना आदि शुरू हो जाता है| यानी बुखार क्रम से आता जाता रहता है।
रोग के आरंभ में बुखार फिर से आने लगता है, यह अनियमित होता है, परंतु बाद में यह दो तीन या चार दिन के अंतर से आता है, यह इस पर भी निर्भर करता है, कि संक्रमण प्लाज्मोडियम की कौन सी जाति द्वारा है, फेल्सीपेरम मलेरिया में कई बार बुखार ठंड लगना, आदि का क्रम अनियमित रह सकता है।
मलेरिया यदि प्लाज्मोडियम फेल्सीपैरम के संक्रमण से हो तो लक्षण तीव्र होते हैं, और तुरंत उपचार न करने पर मौत संभव है। इसमें ज्वर का क्रम भी अनियमित होता है।
मलेरिया होने के कारण जो जटिलताएं होती हैं, वह खून में लाल रक्त कणों की कमी या एनीमिया जो बहुत गंभीर रूप में हो सकती है।
यकृत पर असर होने से पीलिया हो सकता है। और प्लीहा पर भी असर होता है| प्लाज्मोडियम फैंसीपेरम के संक्रमण की कई गंभीर जटिलताएं होती है| जिससे रोगी की मौत हो सकती है।
- सेलीब्रल मलेरिया – इसमें मस्तिष्क पर असर होता है, जिससे ऐठन होना, दौरे पड़ना, या मूर्छा आना होता है।
- ब्लैक वाटर बुखार – इसमें बहुत अधिक मात्रा में लाल रक्त कणिकाएं नष्ट हो जाती हैं, और गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं।
गर्भावस्था में शिशु की जन्म से पूर्व मृत्यु हो सकती हैं , यह समय से पूर्व प्रसव हो सकता है। जो बच्चे को माता के लिए खतरनाक है।
उपचार ना करने पर बहुत समय से चले आ रहे संक्रमण में प्लीहा के आकार में वृद्धि हो सकती है। जिसके कारण एनीमिया हो जाता है, एनीमिया के रोग को श्वसन तंत्र के संक्रमण, त्वचा के संक्रमण व सेप्टीसीमिया का खतरा बना रहता है।
ऊपर वर्णित चार में से किस परजीवी के आक्रमण से मलेरिया हुआ है, इन लक्षणों की जांच कर इसका उपचार किया जाता है| मलेरिया में खून का परीक्षण भी अहम होता है।
मलेरिया बुखार के उपचार :- Treatment of malaria fever
मलेरिया का उपचार एंटी मलेरिया दवाइयों से हो सकता है, आज मलेरिया के कुनेन और क्लोरोक्वीन दवा प्रसिद्ध है, लेकिन बगैर डॉक्टरी सलाह के इन्हें न लें।
कौन सी दवा कितनी ले, कितने समय के लिए उपचार चले आदि प्रश्नों का उत्तर इस बात पर निर्भर करता है, कि प्लाज्मोडियम की कौन सी जाति द्वारा संक्रमण हुआ है |
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