Essay on C Rajagopalachari | Biography of C Rajagopalachari | भारत रत्न चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जीवन परिचय

भारत रत्न : 1954 ई० चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

(C Rajagopalachari)

जन्म : 10 दिसम्बर 1878 देहावसान : 25 दिसम्बर 1972

 

 

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म

 

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म तमिलनाडु प्रांत के  थोरापल्ली नामक एक छोटे से गांव में 10 दिसंबर सन 1978 ई० को एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था | यह गांव सेलम जिले के होसुर उपनगर से 7 से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | इनके पिता श्री नल्लन  चक्रवर्ती होसुर में मुंसिफ थे | उन दिनों पूरे भारतवर्ष में और विशेष रूप से दक्षिण भारत में छुआछूत का बड़ा बोलबाला था | वहां पर किसी किसी सड़क पर तो हरिजनों को पांव रखना तक मना था|  सत्य आदेश था कि यदि उन सड़कों पर जाना भी पड़े तो सफाई होने से पहले ही जाएं ताकि हरिजनों की छाया भी उच्च जाति के लोगों पर ना पड़े |




 

राजाजी (C Rajagopalachari) की प्रारंभिक शिक्षा

 

    राजाजी की प्रारंभिक शिक्षा होसुर में हुई थी | नेत्र रोग के बावजूद इन्होंने 12 वर्ष की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी | उसके बाद उन्हें बेंगलुरु के सेंट्रल हिंदू कॉलेज में भर्ती करा दिया गया | वहां से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर लेने के बाद मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज से b.a. और बी. एल. एल. बी. की परीक्षाएं पास की, और सेलम जिला कोर्ट में स्वतंत्र रूप से अपनी वकालत शुरू कर दी |

   उन दिनों नए वकील को अपने से वरिष्ठ वकील के साथ आवश्यक रूप से कुछ समय तक कार्य करना पड़ता था |  आपने इस रिवाज को तोड़ दिया | यह राजाजी का पहला क्रांतिकारी कदम था | तभी पुराने वकील देखते रह गए आप की वकालत चमक उठी | दूसरा विस्फोट तब हुआ जब राजा जी ने धार्मिक पाखंड और छुआछूत के विरोध में अपनी आवाज उठाई सारी उच्च जातियां उनके इस क्रांतिकारी विस्फोट से चकित ही नहीं हुई रुष्ट भी हो गई उन्हें समझाया बुझाया गया , कि वे इन हरकतों को छोड़ दें |

 

परंतु उन्होंने एक भी व्यक्ति की बात नहीं मानी , समाज के प्रभावशाली लोगों ने उन्हें जाति से निकाल दिया | यहां तक कि उनके पिताजी के देहांत के अवसर पर भी कोई सजातीय व्यक्ति उनके दाह संस्कार में शामिल नहीं हुआ परंतु  वे अटल रहे |




C Rajagopalachari का क्रांतिकारी कदम

 

समाजसेवी होने के कारण वे सेलम नगर पालिका के अध्यक्ष चुन लिए गए,  उसी से उनके क्रांतिकारी कदमों का रास्ता और भी आसान हो गया | 2 वर्षों के अपने कार्यालय में उन्होंने अछूतों धार के कई काम कर डालें | अछूतों को सड़कों पर निकालने की आज्ञा दे दी गई उन्हें नगरपालिका के नलों का पानी भी मिलने लगा उनका मंदिरों के आसपास से निकलना गुजर ना और बैठना कानूनी तौर से लागू हो गया, इस कायाकल्प से आम जनता का उत्साह काफी बढ़ता दिखाई दिया |

 

    हिंदू पत्र के संपादक स्वर्गीय कस्तूरी रंगन के आग्रह पर वे मद्रास चले गए , और वहीं पर हाईकोर्ट में वकालत शुरु कर दी |  सन् 1919 ई० में श्री आयंगर के अनुरोध पर जब महात्मा गांधी मद्रास पधारे थे | तब उनके रूट रुकने की अवस्था राजा जी के घर पर ही की गई थी | गांधी जी वहां 2 दिन रूके इसी बीच गांधीजी और राजगोपालाचारी में इतनी  घनिष्ठता हो गई, कि गांधीजी उन्हें राजा जी (C Rajagopalachari) कहकर पुकारने लगे वहां 2 दिन ठहरने के बाद गांधी जी को यह मालूम पड़ा कि राजाजी के अनुरोध पर ही आयंगर ने गांधीजी को यहां आमंत्रित किया था |

    सन् 1920 ई० में जब नागपुर अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया | तब उसके अनुसार देशबंधु, चितरंजन दास, पंडित मोतीलाल नेहरू, आदि वकीलों ने अपना पेशा छोड़ दिया|  और वे आजादी की लड़ाई में फूट पड़े | राजाजी (C Rajagopalachari) इनमें सबसे आगे थे सन 1921 ई० में राजा जी कांग्रेस के महामंत्री बने उन्होंने देश की आजादी के लिए सभी नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया | नमक सत्याग्रह के दिनों में जिस समय महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम में 20 दिन की पैदल दांडी यात्रा की और नमक का कानून तोड़ा उसी समय राजा जी के तिरुचिरापल्ली से 15 दिन पैदल चलकर वेदारण्यम में सागर के किनारे नमक बनाया और गिरफ्तारी दी थी।

 

    दक्षिण जैसे हिंदी प्रदेश में हिंदी का प्रचार प्रसार करने के लिए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव डालना और उसका कार्यालय भी अपने घर में ही खोलना, राजाजी का अगला क्रांतिकारी कदम था |

 

    सन् 1946 ई० में जब पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी तब राजा जी को उद्योग और वाणिज्य मंत्री बनाया गया, उसके बाद शिक्षा और वित्त मंत्रालय भी उन्हें सौंप दिए गए | गवर्नर जनरल का पद उन्हें सौंपते हुए भूतपूर्व गवर्नर लॉर्ड माउंटबेटन ने भी उनकी उन्मुक्त हृदय से प्रशंसा की थी।  उन्होंने कहा था, मेरे उत्तराधिकारी नए गवर्नर जनरल एक महान राजनीतिज्ञ हैं, और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं।

 

    2 वर्ष के बाद ही यद्यपि उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया, तथापि नेहरु जी ने उनकी जागृत महसूस की और सरदार पटेल के निधन के बाद दिसंबर 1950 ई० में उन्हें गृह मंत्रालय सौंप दिया | राजाजी को तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अथवा गांधीवादी राजनीतिक क्षेत्र का चाणक्य कहा जाता था।

 

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वह कट्टर कांग्रेश गांधीवादी होते हुए भी अपनी स्वतंत्र परंतु तर्कसंगत विचारधारा भी रखते थे, और इस बात के लिए उन्होंने बड़े से बड़े व्यक्ति से भी कभी समझौता नहीं किया। परंतु उनके रियल समभाव के कारण नेहरू जी ने भी उनकी नहीं बनी और सन 1951 ई० में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। वह प्रथम आम चुनाव तक इस पद पर बने रहे चुनाव के बाद कुछ समय के लिए फिर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे |

 

क्योंकि वहां की स्थिति बड़ी अशांत और आय स्थिति अपने मुख्यमंत्री काल में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए | सभी स्कूलों में हिंदी विषय को उन्होंने अनिवार्य कर दिया, पर जब हालात सुधर गए और वहां के लोगों ने उनका विरोध आरंभ किया तो वह स्वयं उस पद से हट गए |




 राजाजी (C Rajagopalachari) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे

 

केंद्र सरकार के मंत्री रहे पश्चिम बंगाल के गवर्नर रहे इस इन सबसे बढ़कर लॉर्ड माउंटबेटन के बाद स्वतंत्र भारत के सर्वप्रथम गवर्नर जनरल का सर्वोच्च पद भी उन्हीं को दिया गया। परंतु या फिर विचित्र संयोग की बात है, कि उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष होने का शुभ अवसर कभी प्राप्त नहीं हुआ।

राजा जी ने सदैव भावना पर तर्क को महत्व  दिया यानी जब उन्होंने समझा कि कांग्रेश अपने पति के से भटक रही हैं, तो उन्होंने बरसों के साथ की चिंता ना कर उसे छोड़ दिया।  उनकी कुशाग्र बुद्धि तर्कपूर्ण ढंग से एक पाठ जो निश्चय कर लेती राजाजी उस पर एक दृढ़ भर्ती की तरह अडिग रहते उस समय उन्हें ना काले झंडों की परवाह रहती और ना गलियों की ऐसा उनके जीवन में एक बार नहीं अनेक बार हुआ |

18 मार्च 1919 के दिन सिडनी रौलट की सिफारिशों ने कानून का रूप धारण किया प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारतीयों को युद्ध में अंग्रेजो का सहयोग देने के

 

 फल स्वरुप रौलट एक्ट के रूप में दमन चक्र मिला | उस दिन गांधीजी मद्रास में थे, उन्होंने दूसरे दिन राजा जी (C Rajagopalachari) से कहा रात को मुझे सपने में विचार आया, कि हमें देश में हड़ताल के लिए आसान करना चाहिए।

 

    सत्याग्रह की बात सारे देश में आग की तरह फैल गई हड़ताल हुई। जनता में जोश इतना था, कि कई स्थानों पर हिंसात्मक वारदातें भी हुई।  राजा जी ने मद्रास में सत्याग्रह किया और गिरफ्तार कर लिए गये, इस प्रकार राजा जी का राजनीतिक जीवन बड़े भयंकर तूफानी दिनों में आरंभ हुआ और उन्होंने अपने आपको इसमें झोंक दिया।

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     स्वतंत्र आंदोलन में वह 5 बार जेल गए, उस इस बात पर इन्हें गर्व था।  परंतु जब भी उन्होंने समझा कि कांग्रेस ठीक काम नहीं कर रही है, तो वह बिना झिझक उसके कार्यक्रमों से अलग हट गए और जब उन्होंने देखा की कांग्रेसी उनके तर्क और प्रेणा के अनुसार काम कर रही है, तो उन्होंने उसे पुनः सहयोग देने में आनाकानी नहीं की |  सन् 1945 में ऐसा ही हुआ, अगस्त 1942 में अथवा उसके पश्चात गिरफ्तार नेता 1945 में रिहा कर दिए गए, और ब्रिटेन के मजदूर दल की सरकार ने भारत को स्वतंत्रता देने के संबंध में बातचीत आरंभ की तो राजाजी फिर सक्रिय रूप से कांग्रेसमें आ गए और उन्होंने बहुत ही बुद्धिमता पूर्वक बातचीत को आगे बढ़ाया।

 

   जब गांधीजी “यंग इंडिया” नामक पत्र प्रकाशित करते थे , और वह जेल चले गए तो पत्र का संपादन राजाजी (C Rajagopalachari) ही करते रहे हरिजनों के पृथक निर्वाचन के प्रश्न पर गांधीजी ने अनशन किया। उस समय डॉक्टर अंबेडकर हरिजनों को अधिक प्रतिनिधित्व और अधिक काल तक सुरक्षित सीटें दिलाने की जिद पर अड़े हुए थे। और गांधीजी अनशन के कारण निरंतर कमजोर होते जा रहे थे तब राजा जी ने आंबेडकर को इस बात पर राजी कर लिया, कि इस प्रकार का प्रारंभिक संरक्षित चुनाव बाद में आपसी विचार-विमर्श के बाद तय किया जाए।

 

      गांधी जी के पुत्र देवदास और राजा जी कीपुत्री लक्ष्मी 1927 में विवाह करना चाहते थे | राजाजी ब्राह्मण और गांधीजी वैश्य थे, | हिंदुओं में ऐसे विवाह उन दिनों सरलता से नहीं होते थे | पर दोनों नेताओं ने यह शर्त लगाई कि दोनों 5 वर्ष पृथक रहे उसके बाद भी विवाह करना चाहे तो विवाह होगा।  अंततः 1933 में बड़ी धूमधाम से दोनों का विवाह हुआ।

 

जब द्वितीय महायुद्ध आरंभ हुआ

 

    जब द्वितीय महायुद्ध आरंभ हुआ तो कांग्रेसी और ब्रिटिश सरकार में तनातनी हुई | राजा जी (C Rajagopalachari) ने कांग्रेस समिति में प्रस्ताव रखा कि यदि भारत को पूर्ण स्वाधीनता दे दी जाए, केंद्र में भारतीय सरकार स्थापित हो जाए, तो कांग्रेश देश के प्रति रक्षा के कारगर संगठन के प्रयत्नों में पूरी ताकत लगा देगी।  यह प्रस्ताव गांधीजी इच्छा के विरुद्ध था |  परंतु चर्चिल की हठधर्मिता के कारण कांग्रेस और गांधी जी फिर मिल गए, राजाजी का प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। तात्पर्य कि राजा जी ने अपना तर्कसंगत दृढ़ता पूर्ण रवैया कभी नहीं छोड़ा। भले ही अनेक कांग्रेसी नेता उनसे कई बार सहमत नहीं रहे परंतु वह भी उनकी तलवार की धार से पानी एवं कुशाग्र बुद्धि का सदैव लोहा मानते रहे।

 

    सन् 1937 में जब प्रांतों में कांग्रेसी सरकारें बनी तो राजाजी मद्रास में मुख्यमंत्री बने उस समय कांग्रेसी मंत्री मंडलों में से एक  से बढ़कर एक मेधावी नेता थे | परंतु राजा जी ने जिस कुशलता से मद्रास में राज काज चलाया। उसकी सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की देश में स्वतंत्रता से पूर्व जब केंद्रीय अंतरिम सरकार बनी तो राजाजी को उद्योग मंत्री बनाया गया, और अगस्त 1947 में आजादी के बाद उन्हें पश्चिमी बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। क्योंकि राज्य की हालत आकार और सांप्रदायिक तनाव के कारण बहुत दयनीय थी।




यहां वहां किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी, जो कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ कुशल प्रशासक भी हो। राजाजी उस पद पर बहुत थोड़े दिन रहे क्योंकि जब 1948 में लॉर्ड माउंटबेटन ने गवर्नर जनरल का पद छोड़ा तो सबकी दृष्टि में इस पद के उपयुक्त राजाजी ही प्रतीत हुए और वह नया संविधान लागू होने तक इस पद पर कार्यरत रहे। भारतीय होते हुए भी उन्होंने इस पद की गरिमा कायम रखें, धोती, कुर्ता, चप्पल और काली ऐनक पहने राजा जी को कोई भी पहचान सकता था।

 

वायसराय भवन में वह इसी परिधान में गए और गवर्नर जनरल पद पर रहते हुए भी यही पोशाक पहनते रहे इससे स्पष्ट हो जाता है, कि राजा जी का व्यक्तित्व कितना अनूठा था|  लोगों का विचार था , कि राजा जी इस सर्वोच्च पद पर रहने के बाद संभवत राजनीति से सन्यास ले लेंगे, परंतु कुछ समय बाद ही वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिना विभाग के मंत्री बनाए गए।

 

    राजा जी की वाणी में तर्क और पैनापन  था.  इसी तरह उसकी लेखनी भी पैनापन लिए हुए थी  |वह तमिल और अंग्रेजी के बहुत अच्छे लेखक थे, राजा जी जिस प्रकार थोड़े से सरल शब्दों में अपना वास्तविक अभिप्राय प्रकट कर लेते थे राजा जी भी कठिन से कठिन और पेचीदा मसला बहुत थोड़े से प्रभावपूर्ण शब्दों में व्यक्त कर रहे देते थे |




रामायण और महाभारत का उन का अंग्रेजी अनुवाद अत्यंत सरल रोचक और प्रभावपूर्ण ढंग का है |  उनके अनेक ग्रंथों का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है, “स्वराज” उनका पहला सप्ताहिक पत्र था | उसमें प्रति सप्ताह के राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर उनका स्पष्ट मत पहने भाषा में पढ़ने को मिलता रहा।

 

   राजाजी केवल चतुर राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि एक उच्च कोटि के लेखक और वक्ता भी थे  | रामायण और महाभारत पर लिखी उनकी पुस्तकें अत्यंत लोकप्रिय हुई, उनका जीवन सरल और साधा था | बदन पर धोती और कुर्ता हाथ में घड़ी आंखों पर काला चश्मा बस यही था|  उनका बाहरी सरल रूप धूम्रपान और मद्यपान के कट्टर विरोधी थे | जातिवाद और छुआछूत को वे कतई पसंद नहीं करते थे, आप गांधी जी के परम भक्त थे।

 

    विलक्षण प्रतिभा के धनी इस दूरदर्शी राजनीतिज्ञ को भारत सरकार ने सन् 1954 ई० में भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया |

    बीसवीं सदी के इस चतुर चालक के  प्रकांड सुधारवादी राष्ट्रभक्त का देहावसान 93 वर्ष की आयु में 25 दिसंबर 1972 ई० को हो गया |




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