देवनागरी लिपि (Devnagri lipi) की परिभाषा और इसकी विशेषताएं
हिंदी और संस्कृत देवनागरी लिपि (Devnagri lipi) में लिखी जाती है । देवनागरी लिपि (Devnagri lipi) का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है । जिसका सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात नरेश जयभट्ट के लिए शिलालेख में मिलता है । आठवीं एवं 9 वीं सदी में क्रमशः राष्ट्रकूट नरेशों तथा बड़ौदा के ध्रुव राज ने अपने देशों में इसका प्रयोग किया था । महाराष्ट्र में इसे बालबोध के नाम से संबोधित किया गया है ।
देवनागरी लिपि (Devnagari lipi) पर 3 भाषाओं का बड़ा महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है ।
1. फारसी प्रभाव :- पहले देवनागरी लिपि (Devnagari lipi) में जिव्हा मूलिय ध्वनियों को अंकित करने के चिन्ह नहीं थे जो बाद में फांरसी से प्रभावित होकर विकसित हुए जैसे – क़ ख़ ग़ ज़ ड़ ढ़
2. बंगला प्रभाव :- गोल-गोल लिखने की परंपरा बंगला लिपि के प्रभाव के कारण शुरू हुए।
3. रोमन प्रभाव :- इससे प्रभावित होकर विभिन्न विराम चिन्हों जैसे कि अर्धविराम, प्रश्न सूचक चिन्ह, विश्मय सूचक चिन्ह उद्धरण चिन्ह एवं पूर्ण विराम में खड़ी पाई की जगह बिंदु का प्रयोग होने लगा ।
देवनागरी लिपि (Devnagari lipi) की प्रमुख विशेषताएं
- इसके ध्वनिक्रम पूर्णतया वैज्ञानिक है ।
- वर्गों की अंतिम ध्वनिया नासिक्य हैं ।
- हस्व एवं दीर्घ में स्वर बटे हुए हैं ।
- उच्चारण एवं प्रयोग में समानता है ।
- प्रत्येक वर्ग में अघोष फिर सघोष वर्ण है ।
- छपाई और लिखाई दोनों समान है ।
- निश्चित मात्राएं हैं ।
- प्रत्येक के लिए अलग लिपि चिन्ह है ।
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