पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय

पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय


पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म


पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर , 1889 ई० को इलाहाबाद में हुआ था, उनकी माता का नाम स्वरूपरानी था | जवाहरलाल जी के चाचा नंदलाल जी वकील थे, उनकी ही तरह उनके पिता मोतीलाल जी भी वकालत भी खूब चमकी।  उन्होंने खूब पैसा कमाया, और खूब शान से रहने लगे।  इलाहाबाद में उन्होंने एक बड़ी कोठी खरीदी और उसे नए सिरे से बनवाया।  सारा परिवार उसमें रहने लगा, उसका नाम आनंद भवन रखा गया।  मोतीलाल नेहरू उन दिनों देश के मशहूर वकील माने जाते थे। बालक जवाहरलाल नेहरू 11 वर्ष की आयु तक इकलौते रहे, दूसरी दो बहने स्वरूप और कृष्णा बहुत बाद में पैदा हुई| इतने दिनों मां-बाप का सारा दुलार जवाहर को ही मिला। 




    मूलतः उनके पूर्वज कश्मीर के निवासी थे, जो सन् 1761 ई० में दिल्ली आ गए थे | उनका मकान नहर के सामने था, इसीलिए परिचितों के बीच में नेहरू कहलाने लगे | सन् 1857 को स्वतंत्र आंदोलन में सब कुछ स्वाहा होने के कारण यह परिवार दिल्ली के आगरा दिल्ली से आगरा चला गया | वहीं पर पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ था।  पंडित मोतीलाल नेहरू बाद में इलाहाबाद में जाकर बस गए थे , उनके घर का खान – पान , रहन -सहन और शिष्टाचार आदि सब अंग्रेजी ढंग का था। 

पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रारंभिक शिक्षा  


      जवाहरलाल नेहरू का लालन-पालन बड़े लाड प्यार से हुआ | प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध उनके घर पर ही किया गया था।  कई अंग्रेज अध्यापक उन्हें घर पर ही पढ़ाने आया करते थे | इनमें मिस्टर एफ. टी. ब्रुक्स मुख्य थे।  जवाहरलाल के जीवन में 15 में बाहर आई तो दिल में अंग्रेजी रहन-सहन के प्रति आकर्षण पैदा हुआ,  तब तक जवाहरलाल की पढ़ाई घर पर ही हुई थी | अंग्रेज  भी रखी गई जो उन्हें उठने बैठने बातें करने का सलीका सिखाती थी |बाद में दूसरे अध्यापक आए एक पंडित जी संस्कृत पढ़ाते थे | पंडित जी के मुंशी मुबारक अली से बालक जवाहर घंटों कहानियां सुनता।




मुंशी जी 1857 के आंदोलन की कहानियां सुनाते थे, घर की औरतें रामायण महाभारत और पुराणों की कहानियां सुनाती थी | इस प्रकार  उनमें बाल मन पर पश्चिमी सभ्यता के साथ-साथ भारतीयता का रंग भी चढ़ता गया |




       घुड़सवारी तैराकी और टेनिस का शौक उन्हें शुरू से ही रहा है , बचपन में 1 दिन घुड़सवारी सीखते समय भी घोड़े से गिर गए काफी चोट आई लेकिन वे डरे नहीं बल्कि घुड़सवारी का शौक और भी बढ़ गया | इन्हीं दिनों जवाहरलाल अपने पिताजी के साथ इंग्लैंड के माताजी और बहन स्वरूप भी साथ थी, मई सन् 1950  को वे लोग लंदन पहुंचे मोतीलाल जी ने लंदन का प्रसिद्ध हैरो स्कूल देखा। स्कूल पसंद आया वह अपने जवाहर को ऐसे विद्यालय में ही पढ़ाना चाहते थे , तो उन्हें वहां पढ़ने के लिए भर्ती करवा दिया |




      2 साल बाद उच्च शिक्षा के लिए भी इंग्लैंड के प्रसिद्ध कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में भर्ती हुए। यहां आकर उन्हें प्रसन्नता हुई, केब्रिज से बी.ए.और एम.ए.की शिक्षा प्राप्त करके बैरिस्टर बनने के लिए वह कानून पढ़ने लगे। 2 वर्ष कानून पड़ा और इंटर टेंपल से बैरिस्टर की परीक्षा पास कर ली, उस समय उनकी आयु 23 साल के आसपास थी | उसी साल में भारत लौट आए और पिता के साथ मिलकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरु कर दी |

जवाहरलाल नेहरू का विवाह



  सन 1916 ई० की वसंत पंचमी को दिल्ली निवासी जे.एल.  कौल की सुपुत्री कल कमलादेवी से उनका विवाह संपन्न हुआ , जवाहरलाल  1916 में ही पहली बार गांधी जी से मिले वह गांधीजी के कामों के बारे में पहले ही पढ़  और सुन चुके थे | और उनकी तारीफ करते थे | 19 नवंबर , सन् 1917 ई० को उनके घर में एक कन्या का जन्म हुआ, जिनका नाम प्रियदर्शनी इंदिरा रखा गया आगे चलकर यही कन्या भारतवर्ष की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनी |




    सन् 1920 ई० तक पर वकालत करते रहे परंतु गांधीजी की विदेशी वस्तु बहिष्कार नीति एवं असहयोग आंदोलन के प्रभाव में आकर नेहरु जी ने वकालत छोड़ दी। और उस आंदोलन में खुलकर भाग लिया, प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अंग्रेजों के वायदे के अनुसार भारतीय शासन में कुछ सुधार लाने के बजाय रौलट एक्ट जैसा दमनकारी कानून बनाकर भारतीय जनता को कुचलना शुरू कर दिया |




इस एक्ट के अंतर्गत किसी भी आदमी को केवल संदेह के आधार पर ही अनिश्चितकाल के लिए बंदी रखा जा सकता था | इसके विरोध में महात्मा गांधी ने असहयोग और अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया। नेहरू जी भी इस आंदोलन में कूद पड़े। मोतीलाल जी ने अपने बेटे को रोकने की कोशिश की लेकिन जवाहरलाल अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहे। उनकी इस अटल प्रतिज्ञा और देशभक्ति से प्रभावित होकर पिता ने अन्यथा उन्हें आशीर्वाद दिया और वे स्वयं भी उनके साथ हो गए।  सन् 1921 में उनको 6 महीने की और सन 1922 ई० में 18 महीने की कैद हुई इस वर्ष में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महामंत्री बनाए गए |

साइमन कमीशन


    30 नवंबर, 1928 को  जब साइमन कमीशन लखनऊ पहुंचा, तो उसका विरोध करने के लिए कई हजार लोग कई दलों में स्टेशन की ओर बढ़ चले थे, जुलूस जब स्टेशन पर पहुंचा, तो पुलिस ने उसे रोका पुलिस के घुड़सवार देशभक्त आंदोलनकारियों को कुचलने लगे। वह लोग उस दल पर टूट पड़े जिसका नेतृत्व नेहरू जी कर रहे थे | पुलिस ने निर्दयता से उन पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी। स्वतंत्रता के इस वीर सेनानी को गोरी सरकार ने लखनऊ बरेली देहरादून अहमद नगर आदि कई स्थानों पर जेल में बंद रखा। जेल से बाहर आते ही वे फिर दहाड़ थे | सिंह की तरह राजनीति में सक्रिय हो जाते थे , कुल मिलाकर उन्होंने 9 वर्ष का कारावास भोगा |




           सन् 1929 ई० में लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में नेहरू जी को अध्यक्ष बनाया गया, वहीं रावी तट पर 26 जनवरी 1929 को पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पारित किया गया, और संवत समस्त देश एक विशाल संघर्ष के लिए तैयार हो गया |


नमक आंदोलन


    सन् 1930 ई० में गांधी जी ने नमक आंदोलन प्रारंभ किया | समूचे देश में नवजागरण की लहर दौड़ गई हजारों देशभक्त नमक कानून तोड़कर जेल जाने लगे इसी बीच नेहरू जी पर विपदा ओं का पहाड़ टूट पड़ा।  जेल में पिताजी का देहांत हो गया, 5 साल बाद पत्नी कमला नेहरू का और 7 साल बाद माता जी का भी स्वर्गवास हो गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी अपनी इस व्यथा को कम करने के लिए भी पूरी तरह भारत मां की सेवा में लग गए |




   20 जून 1938 ई० को पेरिस रेडियो में प्रसारित आपके प्रभावशाली भाषण से विश्व भर में तहलका मच गया था | सन् 1942 ई० में कांग्रेस ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद किया।  इस आंदोलन में नेहरू जी को गिरफ्तार कर लिया गया , वे सन् 1945 ई० तक जेल में रहे अंत में सन् 1947 ई० में सत्ता का हस्तांतरण हुआ | 15 अगस्त , 1947 को भारत स्वतंत्र घोषित हुआ, नेहरू जी स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने |



    गांधीजी आजादी की लड़ाई के प्राण थे, तो नेहरु जी उसकी आशा आजादी के बाद देश की बागडोर उनके हाथों में रहे उन्होंने देश के लोकतंत्र की नींव रखी उसे दृढ़ बनाया , उन्होंने सांप्रदायिकता को दूर करने के लिए राजनीति के धर्म को अलग किया, संसार के झगड़ों को दूर करने के लिए यत्न किए और किसी गुट में शामिल ना हुए अंतरराष्ट्रीय संबंधों में उन्होंने पंचशील की नीति का प्रचार किया |




    नेहरू जी देश को आजाद कराने के बाद भी चैन से नहीं बैठे क्योंकि देश को ऊंचा ले जाने का सबसे बड़ा काम तो अभी बाकी था, इस काम को उन्होंने सच्ची लगन और दूरदर्शिता से किया देश की सबसे बड़ी समस्या गरीबी उनके सामने थी इसके हल के लिए और देश की को संभालने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनाई गई इससे भारत में नए युग का पदार्पण हुआ |   

नेहरु जी ने इस काम में देश का मार्गदर्शन किया नए नए कारखाने बड़े-बड़े पन बिजलीघर बांध और सार्वजनिक विकास की योजनाएं मनी नेहरु जी ने इस काम में कड़ी मेहनत की |

नेहरू  जी एक प्रसिद्ध लेखक और विचारक भी थे,

विश्व इतिहास की झलक भारत की खोज पिता के पत्र पुत्री के नाम उनकी चर्चित पुस्तकें हैं , नेहरू जी विश्व शांति के पक्षधर थे | सन् 1962 ई० में माओवादी कम्युनिस्ट चीन जैसे मित्र देश द्वारा भारत पर  अप्रत्याशित आक्रमण से उनको बहुत दुख पहुंचा |




     आजादी आजादी के बाद के वर्षों में नेहरू की जनता के दिलों के और भी करीब हो गए , वह सबके प्यारे बन गए उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था | मुझे मेरे देश की जनता ने मेरे हिंदुस्तानी भाइयों और बहनों ने ने इतना प्रेम और मोहब्बत भी चाहे मैं जितना कुछ करूं वह उनके एक छोटे से हिस्से का बदला नहीं हो सकता सच तो यह है, कि प्रेम इतनी कीमती चीज है, कि इसके बदले कुछ देना मुमकिन नहीं |




   उन्हें इस देश के लोगों से ही नहीं इस देश की पवित्र मिट्टी और गंगा यमुना से भी प्यार था | तभी तो वसीयत में नेहरु जी ने इच्छा प्रकट करते हुए लिखा था , जब मैं मर जाऊं तो मेरी अस्थियां इलाहाबाद भेज दी जाए, इनमें से मुट्ठी भर गंगा में डाल दी जाए, जिसके पीछे मेरी कोई धार्मिक भावना नहीं है, मुझे बचपन से गंगा और यमुना से लगाओ रहा है , और जैसे-जैसे में बढ़ा हुआ या लगाओ बढ़ता ही गया | मेरी भस्म के बाकी हिस्से का क्या किया जाए, मैं चाहता हूं, कि उसे जहाज में ऊंचाई पर ले जाकर बिखेर दिया जाए, उन खेतों पर जहां भारत की किसान मेहनत करते हैं, ताकि वह भारत की मिट्टी में मिल जाए और उसी का अंग बन जाए |




    प्राणपण  से देश की सेवा करने के उपहार स्वरूप 12 जुलाई सन् 1955 ई० को उन्हें भारतीय प्रजातंत्र की सर्वोच्च सम्मान उत्पादित भारत रत्न से विभूषित किया गया उनके जन्मदिन 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है | भारतीय बालकों के बीच हुए चाचा के रूप में जाने जाते हैं |



     27 मई 1964 ई०  को भारत का यह अमूल्य जवाहर अपनी विश्वव्यापी ख्याति को धरती पर छोड़कर अनंत में विलीन हो गया |

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