प्रत्यय की परिभाषा और उदहारण

प्रत्यय की परिभाषा और उदहारण

 

प्रत्यय से तात्पर्य- भाषा के वे लघुतम सार्थक खंड जो शब्द के अंत में जुड़कर नए-नए शब्दों का निर्माण करते हैं, प्रत्यय कहे जाते हैं।

हिंदी के प्रत्यय

1. रूप साधक प्रत्यय-हिंदी में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया के विभिन्न रूपों की रचना रूप साधक प्रत्ययों से होती है।

संज्ञाएँ-लिंग, वचन, कारक की कोटि के लिए , सर्वनाम-पुरुष, वचन, कारक के लिए तो क्रियाएँ काल, पक्ष, वृत्ति, वाच्य आदि के लिए रूप परिवर्तित करती हैं। कुछ उदाहरण देखिए

संज्ञा के रूप

सामान्य एकवचनसामान्य बहुवचनतिर्यक एकवचनतिर्यक बहुवचन
लड़कालड़केलड़के (ने)लड़कों (ने)
धोबीधोबीधोबीधोबियों
साधुसाधुसाधुसाधुओं
राजाराजाराजाराजाओं
लड़कीलड़कियाँलड़की (ने)लड़कियों (ने)
बहनबहनेंबहनबहनों
मालामालाएँमालामालाओं
बहूबहुएँबहूबहुओं

 

क्रिया के रूप-ता है रूप वर्तमान काल, नित्यपक्ष पुल्लिग रूप की तुलना देता है (प्रत्यय की परिभाषा) जैसे-

 

एकवचनबहुवचन
1.वह घर जाता है।वे घर जाते हैं।
2. वह घर जाती है।वे घर जाती हैं।
3. मैं घर जाता हूँ।हम घर जाते हैं।
4.मैं घर जाती हूँ।हम घर जाते हैं।
5. तुम घर जाते हो।तुम (लोग) घर जाते हो।
6. तुम घर जाती हो।तुम (लोग) घर जाती हो।

2. शब्द साधक या व्युत्पादक प्रत्यय

 

हिंदी में तत्सम, तद्भव तथा विदेशी तीनों ही प्रकार के प्रत्यय मिलते हैं, जो नए-नए शब्दों की रचना में काम आते हैं जैसे-

  1. आवश्यक + ता = आवश्यकता
  2. फंदा + बाज़ = फंदेबाज
  3. परीक्षा + क = परीक्षक
  4. ख़जाना + ची = ख़जानची
  5. भूल + अक्कड़ = भुलक्कड़
  6. त्याग + ई. = त्यागी

संस्कृत प्रत्यय या तत्सम प्रत्यय (प्रत्यय की परिभाषा)

 

संस्कृत में दो प्रकार के प्रत्यय होते हैं-एक वे जो क्रियाधातु के बाद लगकर संज्ञाविशेषण बनाते हैं। इनको कृत प्रत्यय कहा जाता है जैसे-पढ़ाई, लिखाई, पठनीय, गणनीय आदि। दूसरे प्रत्यय वे जो संज्ञा, विशेषण आदि शब्दों में जुड़कर संज्ञा और विशेषण बनाते हैं। इनको तद्धित प्रत्यय कहा जाता है जैसे-बचपन, धार्मिक, औपचारिक, गुणवान, रूपवती आदि।

1. कृत प्रत्यय

ये प्रत्यय क्रिया के धातु रूपों में लगकर संज्ञा, विशेषण आदि शब्द बनाते हैं। कृत प्रत्ययों से बने शब्दों को कृदंत कहा जाता है। क्रिया रूपों के साथ कृत प्रत्यय निम्नलिखित स्थितियों में प्रयुक्त हो सकते हैं।

(i) क्रिया को करने वाला

संस्कृत या तत्सम प्रत्यय

  • क – गायक, सेवक, नायक, पाठक।
  • ता – नेता, अभिनेता, विक्रेता।
  • उक – भिक्षुक, भावुक।

हिंदी या तद्भव प्रत्यय

  1. हार – होनहार, खेलनहार, सेवनहार।
  2. अक्कड़ – पियक्कड़, भुलक्कड़, घुमक्कड़।
  3. ऐया/वैया – गवैया, खिवैया।
  4. ऊ – खाऊ, उड़ाऊ।

अन्य (आगत)

  1. दार – लेनदार, देनदार।
  2. आलू  – झगड़ालू।
  3. इअल – सड़ियल, अड़ियल।
  4. आक – तैराक।

(ii) क्रिया का कर्म

हिंदी प्रत्यय – नी चटनी, फूंकनी, सूंघनी।

ना – खाना, बिछौना।




(iii) क्रिया का परिणाम (भाववाचक संज्ञाएँ बनाने के लिए)

हिंदी प्रत्यय

  1. ना – लिखना, पढ़ना।
  2. आवट – सजावट, लिखावट।
  3. आन – उड़ान, मिलान, उठान, पहचान।
  4. ई – हँसी, बोली।
  5. आई-  पढ़ाई, लिखाई।

(iv) क्रिया करने का साधन

संस्कृत प्रत्यय = अन – भवन, करण, चिंतन।

हिंदी प्रत्यय = नी – चलनी, पूँकनी।

                      ई – फाँसी, धुलाई।

                      ना – ढकना, पिटना, बेलना।




(v) क्रिया करने के योग्य होना

संस्कृत प्रत्यय

  1. व्य – श्रव्य, मंतव्य, कर्तव्य।
  2. य – देय, गेय, पेय।
  3. अनीय करणीय, कथनीय, पठनीय, गोपनीय।

2. तद्धित प्रत्यय (प्रत्यय की परिभाषा)

ये प्रत्यय क्रिया से अन्य शब्दों जैसे-संज्ञा, विशेषण, अव्यय आदि के बाद लगते हैं और प्राय संज्ञा विशेषण बनाते हैं। उदाहरण




(1) संज्ञा से संज्ञा

  1. पन – लड़कपन, बचपन।
  2. ई – पहाड़ी, रस्सी, चोरी, खेती, हँसी, बोली।
  3. ता/त्व – मानवता, मनुष्यत्व।
  4. वाला – घोड़ेवाला, ताँगेवाला, चायवाला, दूधवाला।
  5. कार – कलाकार, पत्रकार, साहित्यकार।
  6. दार – ज़मींदार, दुकानदार, किरायेदार।
  7. पा बुढ़ापा, मोटापा।
  8. ड़ा – मुखड़ा, दुखड़ा।
  9. आर – सुनार, लुहार।
  10. वान – धनवान, गाड़ीवान।
  11. गर – जादूगर, बाजीगर, सौदागर।
  12. इया – डिबिया, खटिया, बिटिया, लठिया।
  13. हारा – लकड़हारा।

(ii) विशेषण से संज्ञा

  1. ता/त्व – लघुता, सुंदरता, अपनत्व।
  2. आस – मिठास, खटास।
  3. ई – ग़रीबी, अमीरी, रईसी, बुद्धिमानी, ईमानदारी।
  4. आहट – कड़वाहट, चिकनाहट, लिखावट।
  5. आई – अच्छाई, बुराई, मिठाई, लड़ाई, पढ़ाई, लिखाई।

(ii) संज्ञा से विशेषण

    1. ई – ऊनी, गुलाबी, नागपुरी, भोजपुरी।
    2. ईन- नमकीन, रंगीन, शौकीन।
    3. ई – बंगाली, चीनी, जापानी, रूसी।
    4. एलू – घरेलू।
    5. इक – धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक।
    6. ईला – ज़हरीला, बर्फीला, शर्मीला।
    7. आ – प्यासा, भूखा।
    8. इया – बंबइया, कलकतिया।
    9. एरा – चचेरा, ममेरा, फुफेरा, मौसेरा।
    10. आना – सालाना, रोज़ाना, मर्दाना।




(iv) क्रियाविशेषण से विशेषण

  • ला – अगला, पिछला, निचला, मझला।

(v) लिंगबोधक प्रत्यय

  1. आ – भैंसा, मौसा, जीजा

(vi) स्तरबोधक प्रत्यय-तर तथा तम जैसे

उच्च – उच्चतर – उच्चतम

(vii) व्यवसायसूचक प्रत्यय

  1. आर – सुनार, लुहार, कुम्हार।
  2. वाला – चायवाला, पानवाला, ताँगेवाला।

(viii) गुणवाचक विशेषण बनाने वाले प्रत्यय

  1. लू – कृपालु, दयालु, शंकालु।
  2. ऊ/आरू – गँवारू, बाज़ारू।
  3. आऊ – टिकाऊ, बिकाऊ।
  4. ई – बसंती, बैंगनी।
  5. इया – घटिया, बढ़िया।
  6. वना – सुहावना, लुभावना, डरावना।




(ix) कर्तृवाचक संज्ञा बनाने वाले प्रत्यय

  1. अक्कड़ – घुमक्कड़, पियक्कड़।
  2. आक – तैराक, उड़ाक।
  3. वैया – गवैया, सुनवैया।

(x) भाववाचक संज्ञा बनाने वाले प्रत्यय

  1. आस – मिठास, खटास, भड़ास।
  2. आकू – लड़ाकू, पढ़ाकू।
  3. इयल – मरियल, अड़ियल।
  4. ता – मित्रता, आवश्यकता, सरलता।
  5. आई – भलाई, कठिनाई, चतुराई।
  6. आवट – मिलावट, बनावट, सजावट, लिखावट।
  7. पन – अपनापन, बचपन, पीलापन।
  8. पा – बुढ़ापा, मोटापा।
  9. आहट – घबराहट, झल्लाहट, चिकनाहट।

(५) विदेशी (आगत) तद्धित प्रत्यय-ये प्रत्यय उर्दू-फारसी के शब्दों के अंत में जुड़ते हैं (प्रत्यय की परिभाषा) जैसे-

  1. आना – सालाना, मेहनताना, रोज़ाना। ईना कमीना, महीना, नगीना।
  2. नाक – खतरनाक, शर्मनाक, दर्दनाक।
  3. अंदाज़ – तीरंदाज़, गोलंदाज़।
  4. दार – दुकानदार, ईमानदार, मालदार।
  5. दान – कलमदान, थूकदान, पीकदान।
  6. बाज – धोखेबाज़, पतंगबाज, चालबाज़ ।
  7. मंद – दौलतमंद, ज़रूरतमंद, अकलमंद।




उपसर्ग और प्रत्ययों का एक साथ प्रयोग

कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनमें उपसर्ग और प्रत्यय दोनों का प्रयोग होता है जैसे-

शब्दउपसर्गमूल शब्दप्रत्यय
निर्दयतानिरदयता
अभिमानीआभिमान
परिपूर्णतापरिपूर्णता
निश्चिततानि :चिंतता
बदचलनीबदचलन
अनुदारताअनउदारता
बेचैनीबेचैन
बेकारीबेकार
उपकारकउपकार-अक
अपमानितअपमानइत
सुलभतासुलभता
लंबनिनिलंबितइत




प्रत्ययों के आधार पर शब्द-निर्माण के कुछ प्रमुख बिंदु

प्रत्यय लगाकर शब्द बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

मूल शब्द में एक बार में केवल एक ही प्रत्यय जोड़ा जाना चाहिए जैसे-स्वतंत्र से स्वातंत्र्य या सुंदर से सौंदर्य तो बन सकता है पर दूसरा प्रत्यय ता नहीं जोड़ा जा सकता जैसे- स्वातंत्र्यता तथा सौंदर्यता शब्द गलत हैं। इसी तरह से पूजा शब्द में दो अलग-अलग प्रत्यय जोड़कर पूज्य तथा पूजनीय शब्द तो बन सकते हैं पर पूज्यनीय नहीं। शब्दों में -य,-व तथा प्रत्यय जोड़ते समय शब्दों के स्वरूप में होने वाले ध्वनि परिवर्तनों का ध्यान रखना चाहिए।

 

इसी तरह विशेषणों में -इक प्रत्यय जोड़कर भाववाचक संज्ञा बनाने से पहले संधि नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि मूल शब्द के आरंभिक अक्षर में आ स्वर हो तो उसका रूप नहीं बदलेगा जैसे-व्यापार + इक = व्यापारिक और कुछ शब्दों में वृद्धि दो स्थानों पर भी हो सकती है जैसे-परलोक + इक = पारलौकिक

ध्यान देने योग्य

1. वाक्य में प्रयुक्त शब्द पद कहलाता है।
2. उपसर्गों, प्रत्ययों एवं समास द्वारा शब्द-निर्माण की प्रक्रिया हो सकती है।
3. उपसर्ग वे शब्दांश हैं, जो शब्द के आरंभ में लगकर नए शब्दों का निर्माण करते हैं।
4. उपसर्ग तत्सम, तद्भव या विदेशी होते हैं।
5. प्रत्यय वे शब्दांश हैं, जो शब्द के अंत में लगकर अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं।
6. उपसर्ग एवं प्रत्ययों का स्वतंत्र प्रयोग नहीं होता।




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